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कॉमिक्स के समकालीन: विभिन्न पहलू और यादें भाग – 1 (Contemporary to Comics: Different Aspect & Memories Part – 1)

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Advait Avinash Sowale [अद्वैत अविनाश सोवले (मराठी ‘सोवळे’)]: अद्वैत पुणे के रहनेवाले है । उनका बचपन विदर्भ मे गुजरा। माता पिता शिक्षा के क्षेत्र मे कार्यरत होने की वजह से बचपन से ही उन्हे पढ़ने और लिखने मे विशेष रुचि रही है। घर मे बचपन से ही किताबों का मेला रहता इसकी वजह से सिर्फ मराठी ही नहीं बल्कि हिन्दी और अंग्रेजी साहित्य मे भी उनकी रुचि बढ़ती रही। अद्वैत ने रसायनशास्त्र मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है। साहित्य मे रुचि होने के कारण उन्होने अंग्रेजी साहित्य मे स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। उनके मराठी लेख और कवितायें काफी पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी है। उनको सूचना प्रौद्योगीकी संबधित लेख और ब्लॉग आंतरराष्ट्रीय माध्यमों मे प्रकाशित हो चुके है। पुणे मेट्रो के लिए घोष वाक्य प्रतियोगिता, विज्ञान वर्ग पहेली निर्मिति प्रतियोगिता उन्होने जीती है। पिंपरी चिंचवड स्थित रामकृष्ण मोरे नाट्यगृह के रंगमच के ऊपर उन्होने लिखा हुआ सुभाषित नक्काशीत किया गया है। फिलहाल वो पुणे एक सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी मे संगणक प्रणाली गुणवत्ता विश्लेषक के पद पर कार्यरत है।

कॉमिक्स के समकालीन: विभिन्न पहलू और यादें भाग – 1 (Contemporary to Comics: Different Aspect & Memories Part – 1)

कॉमिक्स हम सब के बचपन का अहम हिस्सा हैं। हम सब की कॉमिक्स की पसंद अलग अलग होगी, पात्र एवं पसंदीदा किरदार भी अलग होंगे, यहाँ तक के हमने अलग अलग भाषाओं के कॉमिक्स पढ़ें होंगे मगर इन कॉमिक्स और उनके किरदारों की हमारी एक अलग ही दुनिया थीं और आज भी हैं। वैसे कॉमिक्स पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती और हर कोई बड़े चाव से इन्हे पढ़ता हैं। कभी तो हमने कॉमिक्स पुस्तकालय से पढ़ने के लिए ली होगी या फिर खरीद कर अपने संग्रह मे रखी ही होगी।

Comics Library
कॉमिक्स/बुक्स लाइब्रेरी
साभार: पिनट्रस्ट

कुछ साल पहले तक कॉमिक्स आसानी से दुकानों मे मिल जाया करती थी मगर आज कुछ कॉमिक्स कंपनियाँ बंद हो चुकी है, कुछ कम ही प्रकाशित होती हैं और अब हाल ऐसे हैं की यह दुकानों मे मिलती तक नहीं है। फिर बदलते जमाने के साथ आजकल MRP BOOK SHOP जैसे ऑनलाईन विक्रेता हैं जो हर प्रकार की कॉमिक्स रखते हैं या आपके लिए उन्हें उपलब्ध कर देते हैं, इसके साथ ही Hello Book Mine, Comics Adda, Umacart जैसे वेब पोर्टल्स हैं। आजकल के प्रकाशक भी अपनी खुद की ऑनलाईन दुकानें खोलकर कॉमिक्स आदि बेचते हैं ताकि दुनिया के किसी भी कोने मे भी कॉमिक्स की जानकारी आसानी से फैल सके और साथ ही लोग उसे आसानी से खरीद सके। कॉमिक्स बाइट (Comics Byte) भी काफी सराहनीय न्यूज पोर्टल हैं जो कॉमिक्स जगत की खबरे देता रहता हैं।

Comic Book Sellers
कॉमिक बुक सेलर्स

यह तो हैं आज की बात मगर पहले के जमाने मे एक जगह ऐसी थी जहां हर तरह की कॉमिक्स तथा पत्रिकाएँ आसानी से मिल जाती थी। वो जगह है बस तथा रेल स्थानकों पर पुस्तकों की दुकानें। शहरों मे, गावों मे जो दुकानें होती थी वहाँ खासकर शिक्षात्मक, कादंबरी, साहित्य, साहित्यिक रचना अथवा उसी से जुड़ी हुई किताबें मिलती थीं मगर पत्रिकाएँ, कॉमिक्स, अखबार तथा विभिन्न संग्रह मिलने की विश्वसनीय जगह थी इन बस स्थानकों या रेल स्थानकों पर उपलब्ध किताबों की दुकानें।

AH Wheelers - Railway Book Stall
ए. एच. व्हीलर – रेलवे स्टेशन
साभार: पत्रिका

वैसे ये दुकानें किसी सुपर स्टोर से कम नहीं थी। यहाँ जरूरत की काफी चीजें मिल जाती। इन दुकानों पर कॉमिक्स के अलावा उस समय की कई अलग अलग चर्चित किताबें/नॉवेल्स मिला करती थीं। उस वक्त मोबाइल नहीं थे तो सफर मे एक तो लोगो से बातें और पहचान होती थी या फिर किताबें पढ़ी जाती। बहोत कम बार ऐसा होता था की किसी के पास रेडियो हुआ करता और जैसे जमाना बदलता गया तो कुछ लोग सफर मे वॉकमन पे गाने सुनते पाए गए। ऐसे में अगर याद करते गए तो काफी कुछ हैं लिखने को मगर हम अब मुड़ते हैं मुख्य विषय की ओर। पाठकों को समझ या गया होगा के इस लेख मे जिस समय का जिक्र हो रहा हैं वो दौर है सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक का।

90's Percy Candy Print Ad
नब्बे के दशक में बच्चों की पसंदीदा ‘पर्सी कैंडी’

अलग अलग उम्र के लोग, अलग अलग किताबें अपनी रुचि के अनुसार खरीदते थे। उसमे कॉमिक्स तो हर कोई खरीदता था मगर इसके अलावा कुछ अलग किताबें तथा पत्रिकाएं भी थी जो खरीदी जाती थीं। इतना ही नहीं बल्कि उसकी अपनी अलग दुनिया थी। आज हम उन्हीं कुछ बातों को याद करेंगे।

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सबसे पहले बात करते हैं फिल्मी पत्रिकाओं की। पिछले लेख मे मैंने फिल्मी चित्रकथाओं के कॉमिक्स की यादों को ताजा किया था। उस समय अलग अलग हिन्दी सिने जगत से जुड़ी हुईं खबरे लेकर कई हिन्दी और अंग्रेजी पत्रिकाएं प्रकाशित होती थी। उसमे सबसे प्रसिद्ध थी फिल्म इंडिया, फिल्म क्रिटिक, सिनेमा इंडिया, स्टार एंड स्टाइल, पिक्चर पोस्ट, फिल्म मिरर, फिल्म वर्ल्ड, फिल्म लाइफ, सिल्वर स्क्रीन, सुपर सेन्सेशन, स्टार मूवी, वीडियो स्टाइल, जी ऊपर दिए गए कुछ नामों से पाठक अच्छी तरह से परिचित होंगे। उपरोक्त पत्रिकाओं में सबसे पुरानी हैं ‘फिल्म इंडिया’ जो १९३५ मे प्रकाशित हुई और १९६१ तक प्रकाशित होती रही।

Film India Magazine 1952
फिल्म इंडिया मैगज़ीन
साभार:
पिनट्रस्ट

अगर फिल्मी पत्रिकाओं के बारे मे लिखना शुरू करे तो हमे १९२४ तक जाना पड़ेगा मगर वो हमारे लेख का विषय नहीं हैं। तो जब आप अपने बचपन मे रेल स्थानक या बस स्थानक पर जाते थे तो वहाँ पर आपको ये पत्रिकाएं दिखी होगी। अगर हम इन दुकानों मे रखी फिल्मी पत्रिकाएं याद करे तो हम खास तौर पे याद आएगी फिल्म फेयर, स्क्रीन, स्टार डस्ट, सिने ब्लिट्ज और सबसे महत्वपूर्ण जो हर वर्ग की पसंद थी वो है ‘मायापुरी‘। जैसे कॉमिक्स के साथ नागराज, अग्निपुत्र-अभय, परमाणु के स्टिकर मिलते थे वैसे ही इन फिल्मी पत्रिकाओं के साथ फिल्म कलाकारों के स्टिकर या फिल्म के पोस्टर मिला करते थे। मायापुरी जैसी पत्रिकाओं मे किसी कलाकार या फिल्मों से संबंधित व्यक्ति विशेष के बारे मे लेख आता तो उसके अंत मे उनके घर का पता भी दिया होता ताकि पाठक उन्हे फैन मेल भेज सके।

Mayapuri - Hema Malini
मायापुरी पत्रिका

वैसे मायापुरी में “दर्पण झूठ न बोले” नाम का स्तंभ भी काफी प्रसिद्ध था। साथ ही इन पत्रिकाओं मे कलाकारों के कई फोटो छपकर आते थे और उनके फैन उसके कटिंग्स जमाकर के रखते थे। कई बार तो इन पत्रिकाओं मे छपी फोटो को लेकर काफी विवाद भी होते। 

१९९२ मे केबल टीवी का प्रसारण भारत मे शुरू हुआ और उसपर फिल्मों से संबंधित कई कार्यक्रम शुरू हुए और इन पत्रिकाओं के पाठक कम होते गए और एक एक करके पत्रिकाएं बंद होती गई।”

जैसे हिन्दी फिल्म जगत को समर्पित हिन्दी और अंग्रेजी पत्रिकाएँ थी वैसे ही भारत की हर भाषा मे हिन्दी फिल्मों तथा उन भाषाओं की फिल्मों के लिए समर्पित पत्रिकाएं थी। जो उन राज्यों मे या पड़ोस के राज्यों मे तक मिलती। उनमे से कुछ है चंदेरी, सुषमा, माधुरी, जी (मराठी), चलचित्रम, चित्रभूमि (मलयालम), रूपतारा (कन्नड), रूपकर (असमीज), चित्रपंजी, आनंदलोक (बंगाली)। यहाँ केवल कुछ ही पत्रिकयों के नाम दिए हैं मगर इसके अलावा भी कई और पत्रिकाएं भी हैं।

Regional Cinema Magazine - India
भारत की क्षेत्रीय सिनेमा पत्रिकाएं

ये थी कॉमिक्स के जमाने के समकालीन प्रकाशित फिल्मी पत्रिकाएं। ये पढ़ते पढ़ते आपकी यादें ताजा हो गई होगी के कैसे हम कॉमिक्स खरीदते और हमारे पापा या फिर हमारे साथ आए बड़े बुजुर्ग कौन-कौन सी किताबें खरीदते थें। इसके अगले भाग मे हम अलग विषय की पत्रिकाओं के बारे मे बात करेंगे, तब तक आप मेरे पुराने प्रकाशित आलेख भी पढ़ सकते है। आभार।

पढ़ें – भारतीय कॉमिक्स: साहित्य की दुर्लक्षित धरोहर और फिल्मी कॉमिक्स का यादगार सफर

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