फिल्मी कॉमिक्स का यादगार सफर (Memorable Journey Of Filmy Comics)
Advait Avinash Sowale [अद्वैत अविनाश सोवले (मराठी ‘सोवळे’)]: अद्वैत पुणे के रहनेवाले है । उनका बचपन विदर्भ मे गुजरा। माता पिता शिक्षा के क्षेत्र मे कार्यरत होने की वजह से बचपन से ही उन्हे पढ़ने और लिखने मे विशेष रुचि रही है। घर मे बचपन से ही किताबों का मेला रहता इसकी वजह से सिर्फ मराठी ही नहीं बल्कि हिन्दी और अंग्रेजी साहित्य मे भी उनकी रुचि बढ़ती रही। अद्वैत ने रसायनशास्त्र मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है। साहित्य मे रुचि होने के कारण उन्होने अंग्रेजी साहित्य मे स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। उनके मराठी लेख और कवितायें काफी पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी है। उनको सूचना प्रौद्योगीकी संबधित लेख और ब्लॉग आंतरराष्ट्रीय माध्यमों मे प्रकाशित हो चुके है। पुणे मेट्रो के लिए घोष वाक्य प्रतियोगिता, विज्ञान वर्ग पहेली निर्मिति प्रतियोगिता उन्होने जीती है। पिंपरी चिंचवड स्थित रामकृष्ण मोरे नाट्यगृह के रंगमच के ऊपर उन्होने लिखा हुआ सुभाषित नक्काशीत किया गया है। फिलहाल वो पुणे के एक सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी मे संगणक प्रणाली गुणवत्ता विश्लेषक के पद पर कार्यरत है।
फिल्मी कॉमिक्स का यादगार सफर (Memorable Journey Of Filmy Comics) – अद्वैत अविनाश सोवले की कलम से
मैं और मेरा एक दोस्त हम पुरानी फिल्मों के चाहनेवाले है । वो फिल्मे हिन्दी, इंग्लिश, मराठी या फिर दक्षिण भारतीय भाषाओं की क्यों न हो। वैसे ‘पुरानी’ यह शब्द कालसापेक्ष भी है और व्यक्तिसापेक्ष भी । अगर आपने सत्तर के दशक मे जन्म लिया है तो आपके लिए पुरानी की परिभाषा कुछ और होगी, यदि आपने अस्सी और नब्बे के दशक मे जन्म लिया है तो कुछ और!! एवं अगर आप दो हजार की सदी मे जन्मे है तो ये आपके लिए कुछ अलग ही होगी। खैर आप कहोगे के कॉमिक्स के संदर्भ मे ये फिल्म इतिहास क्यों बताया जा रहा है ? तो चलो वो भी बता देता हूँ । जिस विषय पर ये लेख लिखा है वो विषय फिल्मों से संबंध रखता है । जी नहीं मैं बैटमेन और मार्वल कॉमिक्स की बात नहीं कर रहा हूँ।
फ़िल्में पहले फिल्मे थिएटर मे आती थी । फिर वीडियो मे आने लगी। दरअसल वीडियो याने थिएटर जैसे ही छोटे होते थे और वहाँ परदा छोटा हुआ करता था और फिल्मे प्रोजेक्टर पे दिखाई जाती थी । फिर फ़िल्में टीवी पर आने लगी और अस्सी के दशक मे वी.सी.आर और वी.सी.पी लाकर विडियो कैसेट लाकर फिल्मे देखी जाती थीं । आज कल मूवी चैनल, इंटरनेट एवं ओटीटी प्लेटफार्म पर फ़िल्में घर बैठे अपने मोबाइल पर भी देखी जा सकती है। ये हुई फिल्मे देखने की बात मगर क्या आपने फिल्मे पढ़ी हैं ?
चौंकिए मत ये सच है । आज से करीब तीस साल पहले फिल्मों का रूपांतरण भी कॉमिक्स के प्रारूप में हो चुका हैं । वो सीमित समय के लिए और सीमित ही फिल्मों के लिए प्रकाशित हुए थे और वैसे उन्हे औसत ही लोकप्रियता मिली थी मगर उनका भी अपना एक प्रशंसक वर्ग था। ये दौर था करीब १९८५ से लेकर १९९५ तक का।
चाचा चौधरी, बिल्लू, पिंकी, ताऊजी जैसे कॉमिक्स लोकप्रियता प्राप्त कर चुके थे । एक वक्त था जब दूरदर्शन ही एकलौता मनोरंजन को जरिया था और वो भी सीमित समय के लिए प्रसारित हुआ करता था । तब लोग किताबों से काफी जुड़े रहते थे और उसमें भी कॉमिक्स (राज कॉमिक्स, मनोज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स, अमर चित्र कथा) एवं बाल पत्रिकाएं जैसे चंपक, चंदामामा, टिंकल जैसे आदी प्रकाशन उफान पे थे । तब एक अलग प्रयोग के रूप ये फिल्मों के कॉमिक्स भी प्रकाशित हुये थे ।
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बात ये नहीं की जिन फिल्मों के कॉमिक्स प्रकाशित हुये वो ज्यादा प्रसिद्ध थी या नहीं पर कुछ ही फिल्मों के लिए ये कॉमिक्स प्रकाशित हुये वो फिल्मे आज भूल सी गयी है। ‘पाले खान’(१९८६), ’जॉन जानी जनार्दन’(१९८४), ‘दरिया-दिल’(१९८८), ‘जुर्म’(१९९०) ये वो फिल्मे है जो कॉमिक्स के रूप मे प्रकाशित हुई और ख़ासी लोकप्रिय रही ।
फिर इनकी लोकप्रियता देखकर‘महासंग्राम’(१९९०), ‘वंश’(१९९२), ‘हस्ती’(१९९३), ‘लक्ष्मणरेखा’(१९९१), ‘तहलका’(१९९२) जैसी फिल्मों की भी कॉमिक्स आयी। जैसे केबल टीवी की लोकप्रियता बढ़ती गयी और केबल टीवी ऑपरेटर नयी फिल्मे तुरंत दिखाने लगे वैसे इन कॉमिक्स की लोकप्रियता घटती गयी । मगर फिर भी ‘दामिनी’(१९९३), ‘इम्तिहान’(१९९४) जैसे फिल्मों की चित्रकथा कॉमिक्स के रूप मे आयी ।
मनोरंजन के बदलते दौर मे किताबों पर ही असर करना शुरू कर दिया उस तूफान मे फिल्मी चित्रकथा कॉमिक्स का टिकना बहोत ही कठिन होता गया । फिर भी ‘सर’(१९९३), ‘संगीत’(१९९२), ‘एक ही रास्ता’(१९९३), ‘इंसानियत के देवता’(१९९३), ‘निगाहें’(१९८९),‘ लव’(१९९१), ‘एक ही रास्ता’(१९९३), ‘अफसाना प्यार का’(१९९१), ‘जमाने से क्या डरना’(१९९४), ‘हम है राही प्यार के’(१९९३) और भी कई फिल्मों के कॉमिक्स आये थे।
सभी कॉमिक्स डायमंड कॉमिक्स की तरफ से ही प्रकाशित हुये थे। मगर कुछ चित्रकथा हिंदुस्तान टाइम्स प्रकाशन की तरफ से भी आए थे वो है ‘अवतार’(१९८३), ‘रज़िया सुल्तान’(१९८३), ‘दीवार’(१९७५), ‘यह इश्क़ नहीं आसाँ’(१९८४), ‘रिश्ता कागज़ का’(१९८३) । इसके अलावा तुलसी कॉमिक्स ने भी कुछ फिल्मी कॉमिक्स प्रकाशित की थी.
मगर उनका भी करीब करीब कुछ समय का सफर और मजा था । उन कॉमिक्स मे फिल्मों की कथा और कलाकार चित्ररूप मे छपकर आते। साथ ही उनके संवाद और गीत भी उसमे लिखे होते थे। ऐसे ही फिल्मे पढ़कर फिल्मों का अलग अनुभव लिया जाता था।
इस लेख को शुरू करते वक्त मैंने ऐसा कुछ लिखा था के पढ़ानेवालों को लगे शायद यह पुरानी फिल्मों के संदर्भ मे ही हो मगर वैसा लिखने का कारण आगे बताता हूँ । बहोत पुराने जमाने मे माने चालीस पचास के दशक मे फिल्मों के बुकलेट बनते थे । इन बुकलेट मे फिल्म की कहानी, फिल्मों के मुख्य कलाकार तथा पर्दे के पीछे के कलाकारों की जानकारी और फिल्म से संबंधित कुछ और मनोरंजक किस्से लिखे होते थे । फिल्म प्रदर्शन के वक्त वो यादगार तथा अभिलिखित के तौर पे रखे जाते । साथ ही थिएटर के बाहर करीब पाच दस पैसे मे बेचे भी जाते। इस से जुड़े कई किस्से है मगर वो कभी किसी अलग लेख मे किसी अलग संदर्भ मे लिखुंगा ।
तो इन फिल्मी कॉमिक्स का सफर काफी छोटा रहा मगर फिर भी इसमे कुछ अलग ही बात थी और इसी वजह से २०१९ मे मुंबई कॉमिक कॉन मे शेमारू एंटर टेन मेंट ने कुछ फिल्मों को कॉमिक्स रूप मे प्रकाशित किया है। वो फिल्मे है,’अमर अकबर एंथोनी’ (१९७७), ‘जब वी मेट’ (२००७), ‘खाकी'(२००४) और ‘मस्ती’ (२००५), ‘इश्किया'(२०१०) । इसी बात से इन कॉमिक्स की लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
शायद ही ये फिल्मी कॉमिक्स या फिल्मी चित्रकथा फिर से आए मगर इनका पुराना सफर हमेशा यादगार रहेगा।
टिप्पणी : फिल्मों नाम के आगे कोष्ठक मे दिये गए वर्ष फिल्मों के प्रदर्शन के वर्ष है न के कॉमिक्स के।
अद्वैत जी का लेख पहले भी कॉमिक्स बाईट मे प्रकाशित हो चुका है ।
पढ़ें – भारतीय कॉमिक्स: साहित्य की दुर्लक्षित धरोहर
Superman: The War Years 1938-1945 (DC Comics: The War Years)