हँसी के दो सितारे: असरानी और सतीश शाह – एक युग का अंत (Asrani and Satish Shah: The End of an Era in Indian Comedy)
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गोवेर्धन असरानी जी और सतीश शाह जी, वो कलाकार जिनकी हँसी और अभिनय सदैव हमारे दिलों को गुदगुदाता रहेगा। (Two Legends Of Laughter, Asrani And Satish Shah, Whose Humor Carried Heart And Their Legacy Will Forever Echo In Indian Cinema.)

विगत कुछ दिनों के अंतराल में असरानी जी और सतीश शाह जी का जाना मात्र एक संयोग नहीं बल्कि भारतीय फिल्म जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है। यह वे दो नाम हैं जिन्होंने हास्य को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक जीवन दृष्टि बनाया।
असरानी जी ने सिनेमा में छह दशक से भी अधिक समय तक लगातार अपनी उपस्थिति बनाए रखी। “शोले” में जेलर साहब का किरदार हो या “छोटी सी बात” जैसी फिल्मों में नागेश नामक आम आदमी का सरल पर संवेदनशील रूप, असरानी जी हर फ्रेम में सहज, जीवंत और सच्चे लगते थे। हाल ही में “छोटी सी बात” फिर से देखने पर एहसास हुआ कि उस दौर के सिनेमा में कितनी ईमानदारी थी, न कोई शोर, न कोई भव्यता, बस एक सुकूनभरी कहानी, जो मन में धीरे-धीरे उतर जाती है। असरानी जी सिर्फ हँसाते नहीं थे, बल्कि जिंदगी की गहराइयों को मुस्कान में बदल देते थे।

सतीश शाह जी की बात करें तो वे हर माध्यम के कलाकार थे – फिल्म, रंगमंच और टेलीविजन, सभी में समान रूप से लोकप्रिय, सभी प्लेटफॉर्म्स पर सामान रूप से सक्रिय रहे। ज़ी टीवी पर “फिल्मी चक्कर” का टाइटल सॉन्ग – “देख भाई देख जरा आगे पीछे आजू बाजू हो जाएं ना टक्कर…फ़िल्मी चक्कर देखो, देखो, देखो….फ़िल्मी चक्कर ये..” आज भी कानों में गूंजता है। वहीं “साराभाई वर्सेस साराभाई” का इंद्रवदन साराभाई शायद उनके लिए ही लिखा गया था, बेमिसाल कॉमिक टाइमिंग, गजब की ऊर्जा और दिल में उतर जाने वाला अपनापन। “जाने भी दो यारो” में उन्होंने लाश बनकर भी अभिनय का वो स्तर छुआ जो अमर हो गया। रामसे ब्रदर्स से लेकर राजश्री प्रोडक्शन्स तक, 90s हर कहीं बस सतीश जी ही नजर आते थें।

दोनों ही कलाकारों ने यह साबित किया कि कॉमेडी अभिनय नहीं, एक कला है और कलाकार वही, जो हर उम्र में प्रासंगिक बना रहे। आज के दौर में जब हास्य अक्सर कृत्रिम और व्यावसायिक हो गया है, असरानी और सतीश शाह जैसे कलाकारों का जाना हमें याद दिलाता है कि असली कॉमेडी दिल से आती है।
कॉमिक्स में भी उनका असर (Asrani Ji & Satish Shah Ji In Indian Comics)
कम ही लोग जानते हैं कि ये दोनों दिग्गज कॉमिक्स की दुनिया में भी अपनी छाप छोड़ चुके हैं। गोवर्धन असरानी जी ग्राफिक इंडिया की “शोले/गब्बर” कॉमिक्स सीरीज़ में नजर आए थे, जबकि “साराभाई वर्सेस साराभाई” के कई संस्करण स्टार वन कॉमिक्स सीरीज़ के अंतर्गत प्रकाशित हुए थे। इससे साफ होता है कि उनका प्रभाव केवल पर्दे तक सीमित नहीं था, वे हमारे सांस्कृतिक अनुभव का हिस्सा बन चुके थे।
क्या उपर दी गई छवि में आपको राज कॉमिक्स के लोकप्रिय पात्र बांकेलाल और राजा विक्रमसिंह नजर नहीं आ रहे! शायद नियति के खेल अलग है पर कास्टींग के लिए तो यह दोनों ही उस दौर में पहली पसंद होते।
समापन श्रद्धांजलि (Closing Tribute)
भारतीय सिनेमा के दो मुस्कुराते चेहरे, दो विनम्र आत्माएँ, असरानी जी और सतीश शाह जी को कोटि-कोटि नमन। उनकी मुस्कानें, संवाद और जीवन दृष्टि हमेशा हमारे हृदय में जीवित रहेंगे। एड गुरु पियूष पांडे जी को भी नमन जिन्होंने सभी 90s किड कहे जाने वाले मिलेनियल्स का बचपन शानदार बनाया, उनके विज्ञापन आइकोनिक थे और हमेशा रहेंगे! दिल्ली दूरदर्शन के लगभग सभी विज्ञापन उनके द्वारा ही बनाए जाते थे। अंत में बस यही कहूँगा पियूष जी के शब्दों में, जब तक भी है पर “क्या स्वाद है जिंदगी में”!!
🙏 आभार — मैनाक बनर्जी (कॉमिक्स बाइट)
Pandeymonium : Piyush Pandey on Advertising





Had always imagined Satish shah as raja vikram singh and vrijesh hirjee as bankelal if a webseries had ever been made in 90’s. RIP Satishji!!
Actually Vrijesh Hirjee is also a good choice. His face is bit cunning as well which suits Bankelal. Satish ji = Vikarm singh, Same Aura.