ट्रेन का सफ़र और कॉमिक्स – भाग 1 (Train Journey and Comics)
वक्त बदलता है, दौर बदलता है पर कुछ चीज़े हमेशा वैसी ही रहती है जैसे “ट्रेन का सफ़र और कॉमिक्स”! (Times change but some things always remain the same like “Train Journey and Comics”!)
बड़े दिनों बाद भारतीय रेल के सौजन्य से यशवंतपुर संपर्कक्रांति एक्सप्रेस ट्रेन में ‘भोपाल से पुणे’ आना हुआ। मुझे यकीन था की कॉमिक्स अब दुकानों, बुक स्टाल और रेलवे स्टेशन पर पहले की तरह उपलब्ध नहीं होती। आज के दिन इन्हें आप ऑफलाइन या ऑनलाइन पुस्तक विक्रेता बंधुओं से खरीद सकते है, हालाँकि आज भी इतने प्रमोशन, विज्ञापन, सोशल मीडिया में प्रचार के बाद भी कई पाठकों का सवाल एक ही है – “क्या आज भी कॉमिक्स मिलती है?“, जो पता नहीं कैसे हल हो सकता है! मैं हमेशा सफ़र पर कोई ना कोई कॉमिक्स डाइजेस्ट साथ पढ़ने के लिए ले जाता हूँ। मोबाइल और टेबलेट्स के इस डिजिटल युग में इन्हें हाँथ में लेकर पढ़ने में जो सुकून मिलता है वो शायद ही किसी अन्य गतिविधि में मिले एवं यात्रा में समय को व्यतीत करने का इससे बेहतर माध्यम और कोई हो नहीं सकता। इस यात्रा पर मेरे साथ थी राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित ‘कोहराम’ कॉमिक्स (Kohram Comics) जिसके प्रशंसक आज भी कॉमिक्स पढनें वाले वर्ग में शामिल है।
ट्रेन में काॅमिक्स पढ़ने का अलग ही आनंद है। वह भी जब वो राज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित “कोहराम” हो तो क्या ही कहने। इस काॅमिक्स ने वर्ष 2000 को सही मायनों में मिलेनियम वर्ष घोषित कर दिया था एवं कुछ वर्ष पहले एक धूमकेतु के पृथ्वी के पास से गुजरने की सम-समायिक घटना को भी कहानी के केंद्र में स्थान दिया गया था। जहां अन्य कॉमिक्स के प्रकाशन वर्ष 2000 में अपने अस्तित्व की लडाई लड़ रहे थे वहीं राज काॅमिक्स और श्री अनुपम सिन्हा ने काॅमिक्स पाठकों ऐसा उपहार दिया की क्या ही कहने! एक्शन से लबरेज़ हर एक पृष्ठ और सभी महानायकों का गठजोड़ एक सर्वश्रेष्ठ बेंचमार्क बन गया। चाय की चुस्कियों के साथ हरु प्राणी के प्यादों द्वारा फैलाएं उत्पात और नागराज के साथ अन्य ब्रह्मांड रक्षकों की उससे कड़ी टक्कर वाकई में एक बेमिसाल कॉमिक्स की गाथा है जिससे राज कॉमिक्स का पाठकवर्ग बिलकुल भी अंजान नहीं है।
इस ट्रेन यात्रा में कॉमिक्स को हाँथ में लेकर पुराने दिनों को याद किया और पढ़कर यात्रा का मजा दोगुना भी हुआ, लेकिन जब भोपाल स्टेशन पर ‘ए.एच.डब्लू वीलर्स’ की दुर्दशा देखी तो मन बेहद दुखी हुआ। किताबों की जगह अब पानी, कोल्ड ड्रिंक, चिप्स ने ले ली है पर अख़बार ज्यों का त्यों है, कुछ ओशो की किताबें धूल फांकती आज भी उपर की दराज से झांक रही थी जिन्हें शायद किसी पाठक की उम्मीद थी। कॉमिक्स ही नहीं अन्य किताबों की डिमांड ना के बराबर है, दुकानदार भी बड़े निराश दिखें और बताया की मोबाइल युग के कारण आजकल कोई इन्हें खरीदता क्या पूछता भी नहीं है! पता नहीं इस आधुनिकता के दौर में कहाँ गलतियाँ हो रही है जो हमारे अच्छे-खासे साहित्यिक और पॉप कल्चर के इतिहास को निगल जाने को तत्पर है।
आशा है काॅमिक्स एवं किताबों का वह स्वर्णिम दौर फिर से आए जिसके लिए सभी पाठकों के प्रयास की सतत आवश्यकता है। कोहराम कॉमिक्स का कोहराम इतने वर्षों बाद भी जारी है और कोशिश करेंगे की आगे भी रहे। राज कॉमिक्स मनोरंजन के पांचवे दशक से छठवें की ओर अग्रसर हो एवं अन्य प्रकाशन भी अपनी पकड़ पाठकों से मजबूत करें, बहुत जल्द मिलेंगे भाग – 2 के साथ। पोस्ट अच्छी लगी हो तो इसे अन्य पाठकों एवं मित्रों के साथ अवश्य शेयर करें, आभार – मैनाक (कॉमिक्स बाइट)!!
Rajnagar Ki Tabahi Special Collector’s Edition | Nagraj & Super Commando Dhruva | Raj Comics