मनोज कॉमिक्स: क्या रीप्रिंट होनी चाहिए?
भारत में कई कॉमिक्स पब्लिकेशन सक्रिय थी और इतने सारे पब्लिकेशन में से सबसे ज्यादा जो आज की मांग है वो बनी है ‘मनोज कॉमिक्स‘ (Manoj Comics) की, क्योंकि वो काफी साल पहले बंद हो चुकी है और कहानी एवं आर्टवर्क के मामले में वो बाकियों को कड़ी टक्कर देती रही है. लेकिन अगर मैं आपसे पूँछु की क्या ‘मनोज कॉमिक्स’ रीप्रिंट होनी चाहिए? तो आपका जवाब क्या होगा? अगर आपका जवाब “ना” है तो ये आर्टिकल आपके लिए नहीं है क्योंकि आपको इस इंडस्ट्री की कोई खास चिंता नहीं है और आप अपने जीवन में खुश है लेकिन अगर आप भी मेरी तरह ‘हाँ’ कहेंगे तो पहले हम कॉमिक्स प्रेमियों को एक जगह एकजुट होने की जरुरत है. आज वो पुराना दौर नहीं रहा जब बच्चें माता पिता के साथ बाहर जाएँ और दुकानों में लटकते कॉमिक्स देख कर उसकी मांग करें या फिर गली चौराहों पर खुली लाइब्ररी जहाँ से आप हफ्ते की एक खुराक लें आये. आज समीकरण बदल गए है और सबसे बड़ी चोट की है इस ‘बच्चे’ वाले लेबल ने. अंग्रेजी माध्यम स्कूल्स में पढ़ते बच्चों को को ‘हिंदी कॉमिक्स’ से भला क्या प्रेम होगा? लेकिन यहाँ हम गलत है कॉमिक्स बच्चों के ही नहीं बड़ों के भी मनोरंजन का बेहतरीन जरिया है और उसके अपने फ़ायदे भी है.
कॉमिक्स बाइट: क्यूँ है कॉमिक्स पढ़ना अच्छा? – पढ़े
जब भारत की 70% आबादी गाँव में ही रहती है और लगभग 30% शहर में तो हिंदी भाषी पाठकों के लिए जानी जाने वाले कॉमिक्स अपनी दुर्दशा की ओर क्यूँ चल पड़ी? ‘हिंदी’ को राज भाषा होने का गौरव भी प्राप्त है, दूसरा कॉमिक्स पब्लिकेशन हाउसेस ने कई किताबों के ‘अंग्रजी’ संस्करण भी निकाले लेकिन गाड़ी जब ढलान में हो तो नियम यही कहता ही ‘ब्रेक’ मार के धीरे धीरे चला जाएं ना की जल्दबाज़ी में कोई गलत कदम उठा लें जिसका नुकसान लंबा चले(2000-2010 का काल जब अधिकतम कॉमिक्स पब्लिकेशन हाउसेस बंद हो गए). अब तो अंग्रेजी के भी काफी पाठक है तो फिर लोगों का कॉमिक्स के प्रति ये रवैया इतना उदासीन क्यूँ दिखाई पड़ता है? भारत की जनसंख्या वर्तमान में 135 करोड़ के आस पास है ऐसे में अगर गरीबों का प्रतिशत जो की 27 फीसद है को छोड़ दिया जाए तो फिर भी करीब 60% प्रतिशत लोग इन्हें खरीद सकने का सामर्थ्य रखते है जो की काफी बड़ा आंकड़ा है.
हम अकसर सोशल मीडिया पर कई जगह ये लिखा देखते है की ‘अब वो दौर नहीं रहा’, ‘वो दिन कभी नहीं आयेंगे’, ‘सुनहरा समय’ और भी बहोत कुछ लेकिन इसे बचाने के लिए हम क्या कर रहे है ये एक बड़ा सवाल है और ये जरुरी भी नहीं की हर कोई ‘योद्धा’ बन जाए एवं ‘कॉमिक्स’ को बचाने का बीड़ा उठा लें. उसकी कोई जरुरत नहीं है फिलहाल क्योंकि पाठक जागरूक हो रहे है, ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म पर आप आसानी से घर बैठे कॉमिक्स मंगा सकते है लेकिन जब तक ज्यादा ‘आर्डर’ नहीं गिरेंगे तब तक कोई भी पब्लिशर कॉमिक्स क्यों छापेगा?, मैं जनता हूँ बड़े पब्लिकेशन और नए उद्यम अपने अपने प्रयासों में लगे हुए है लेकिन ये नाकाफ़ी है. जब तक ‘आर्डर’ बड़ी संख्या में ना मिलें तब तक ‘री-प्रिंट’ की बात मुझे समझ नहीं आती. कोई भी व्यवसायी अपना नुकसान करा के व्यवसाय क्यों करेगा, अगर विश्वास ना हो पता कीजिए मुश्किल से 500 आर्डर भी पूरे नहीं पड़ रहें है और हम डिमांड करते है ‘मनोज कॉमिक्स’ के रीप्रिंट की!
या तो हम इस सच को मान लें की ये कभी नहीं होगा या इसे बदलने की चेष्टा करें. लेकिन एक व्यक्ति कितने ऑर्डर्स दे सकता है?, उसके भी अपने वित्तीय खर्चे है और हिंदी में प्रचलित कहावत भी है की ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता‘ जिसका अर्थ है – ‘अकेला मनुष्य अपने दम पर किसी बड़े काम को अंजाम नहीं दे सकता‘। इसलिए हमें चाहिये की ज्यादा से ज्यादा ‘कॉमिक्स’ का प्रचार करें, इसकी बातें करें, घर-परिवार को इसके गुण बताईये और अपने दोस्तों को भी इनसें जुड़ने को बोलें. बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े-बूढों का भी स्वस्थ मनोरंजन अगर करना हो तो कॉमिक्स और बाल पत्रिकाओं से बेहतर और कुछ नहीं. मानता हूँ डगर कठिन हैं फिर भी इतना मुश्किल नहीं अगर सभी कॉमिक्स प्रेमी एक मन से इसके लिए प्रयास करें.
नीचे कुछ लिंक्स दे रहा हूँ इनसे आप जरुर जुड़े और कॉमिक्स खरीदें, बांटे और अन्य लोगों को प्रोत्साहित भी करें ताकि वाकई में ‘खूनी दानव‘ फिर से ‘महाबली शेरा‘ और ‘काला प्रेत‘ से टक्कर ले सके!
मनोज कॉमिक्स: क्या लौटेगा पुराना दौर? – पढ़े
है तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को ‘कॉमिक्स’ के प्रति
जागरूक करना होगा? क्या हम लोग इस प्रयास में
साथ हैं?
हैलो बुक माइन ने कुछ ही महीनों में पाठकों और कॉमिक्स प्रेमियों में अपनी अच्छी पकड़ बना ली है, ज्यादा से ज्यादा कॉमिक्स प्रेमियों को इनका साथ देना चाहिये.
फेसबुक ग्रुप: हैलो बुक माइन
मात्र 4 महीनों में “तुलसी कॉमिक्स” के ‘री-प्रिंट’ अधिकार प्राप्त कर ‘कॉमिक्स इंडिया’ ने कॉमिक्स जगत में सनसनी मचा दी और अपने दूसरे सेट के साथ उपस्थित है, लॉकडाउन के बाद उसकी भी शिपिंग की शुरुवात हो सकती है, कोशिश कीजिये की उन्हें ज्यादा से ज्यादा आर्डर मिलें और पाठकों द्वारा ‘MCK‘ – ‘मैक्सिमम कॉमिक्स कैप्चरड’ की जा सके.
फेसबुक ग्रुप: कॉमिक्स इंडिया
अपने ‘अनकन्वेंशनल’ प्रयासों से एमआरपी बुक शॉप ने कॉमिक्स प्रेमियों को यह बताया की अभी भी बहोत से ऐसे पब्लिकेशन और कॉमिक्स है जिसे पाठकों के प्यार एवं स्नेह की जरुरत है और उस प्रयास में वो काफी हद तक सफल भी रहे.
फेसबुक ग्रुप: एमआरपी बुक शॉप
इनके अलावा भी कई नाम है जैसे संजीव ट्रेडर्स और व अन्य जिनसे आप कॉमिक्स उचित मूल्य पर प्राप्त कर सकते है, मैंने ‘राज कॉमिक्स’ का नाम जानबूझ कर नहीं लिखा क्योंकि पहला वो खुद पब्लिश करते है दूसरा उनके फेसबुक ग्रुप में भी 20000 से ज्यादा पाठक जुड़े है फिर भी आर्डर ज्यादा नहीं आते (एंड गेम वाले सेट की बात अलग थी) लेकिन सिर्फ एकल कॉमिक्स वाले सेट 1000 से उपर नहीं जाते. मित्रों की सुविधा के लिए राज कॉमिक्स के डिटेल्स भी नीचे प्रस्तुत है!
फेसबुक ग्रुप: राज कॉमिक्स
इसके अलावा भी ‘फेनिल कॉमिक्स‘ और ‘फिक्शन कॉमिक्स‘ जैसे पब्लिकेशन है जो चुपचाप आपना कार्य कर रहे है और पाठकों का प्रतिसाद भी अच्छा मिल रहा है उन्हें, अब अगर इस इंडस्ट्री को फिर से स्थापित करना है और ‘मनोज कॉमिक्स‘ (Manoj Comics) जैसे अन्य प्रकाशनों को वापस पढ़ना है तो लोगों को एकत्रित कीजिये, इस पोस्ट को साझा कीजिये, बाँटिये जहाँ आपको लगे की प्रोत्साहन की जरुरत है. वो क्या है की ‘भीड़’ की कोई ‘शक्ल’ नहीं होती पर ‘बल’ बहोत होता है, कोरोना काल में जब कॉमिक्स की ‘पीडीऍफ़’ वाट्सएप्प और अन्य सोशल चैनल्स में अंधाधुंद बंट रही है तो क्या ये पोस्ट नहीं जा सकती? चुनाव आपका, आभार – कॉमिक्स बाइट!!
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