चाचा चौधरी और राका खेल (Chacha Chaudhary Aur Raka Ka Khel)
चाचा चौधरी और राका का यह टकराव वर्षों पुराना हैं। कंप्यूटर से भी तेज़ दिमाग के खिलाड़ी – चाचा चौधरी एवं जुपिटर ग्रह के निवासी साबू ने अपने जीवन में इससे खूंखार और भयानक शैतान से शायद कभी मुकाबला नहीं किया था। डायमंड कॉमिक्स के सौंवें अंक में इसने अपना पदार्पण किया और डाकू ‘राका’ पाठकों में बेहद लोकप्रिय हो गया। कार्टूनिस्ट प्राण ने बहुत ही सोच समझ कर इसकी रचना की होगी और इसे आप डायमंड कॉमिक्स के हर शतकीय पारी (अंको) में देख पाएंगे। अगर चाचा चौधरी दमदार हैं तो राका भी किसी से कम ना था, साबू को कड़ी टक्कर देने वाला इकलौता अपराधी था राका जिसने वैधराज चक्रमाचार्य की अद्भुद दवाई पी और अमर हो गया। हर बार राका चाचा चौधरी के बिछाए शिकंजे से बाहर निकल जाता और उत्पात मचाता, अब क्या एक बार फिर दुनिया में बरसेगा राका का कहर!!
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कार्टूनिस्ट प्राण कृत चाचा चौधरी और राका खेल (Cartoonist Pran’s Chacha Chaudhary Aur Raka Ka Khel)
कहानी शुरू होती है एक भारतीय विमान के अपहरण से जिसमें हाईजैकर्स की एक ही डिमांड है – चाचा चौधरी (Chacha Chaudhary)! मिनिस्टर्स और पुलिसवाले चाचा चौधरी से गुजारिश करते है कि वह ममाले को देखें, दूसरी ओर चाची, साबू एवं राकेट (चाचाजी का कुत्ता) भी किसी अनहोनी की आशंका से चिंतित है। चाचाजी अपने आर्मी के मित्र कैप्टेन किशोर के हैलीकॉप्टर की मदद से विमान का शीशा तोड़ते हुए उसमें धमाकेदार प्रवेश करते है और फिर वो हाईजैकर्स विमान के सभी बंदी यात्रियों को छोड़ देते है। यह आतंकवादी असल में ‘राका गिरोह’ के सदस्य है जो अपने सरदार ‘राका’ (Raka) की रिहाई चाहते है जिसका पता सिर्फ चाचा चौधरी को ही है। चौधरी उन्हें बताते है की राका फिलहाल पृथ्वी से बहुत दूर एक सुदूर ग्रह जालूबार में है जहाँ से उसका लौटना नामुमकिन है इसलिए राका को छुड़ाने का ख्याल वह सभी मन से निकाल दें। इससे राका के साथी क्रोधित हो जाते है और चाचा चौधरी को मारना चाहते है लेकिन उनकी तलाशी लेने पर उनके जेबों से कुछ मीठे पान बरामद होते है जिसे वो चौधरी को मारने से पहले खाते है, बस इसके बाद ही दोनों बेहोशी के संसार में गोता लगाने लगते है और चाचाजी सकुशल विमान से बाहर आ जाते है। बाद में वह पुलिसवालों को बताते है कि पान ने नींद की दवाई मिली हुई थी जिसके कारण दोनों हाईजकर्स बेहोश हो गए (चाचा चौधरी का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज़ चलता हैं *)।
जालूबार ग्रह में राका अपने पृत्वी पर वापस लौटने की राह ताक रहा होता है (राका अमर है क्योंकि उसने वैधराज चक्रमाचार्य की दवाई पी रखी है *)। तभी उसे वैज्ञानिकों का एक अन्तरिक्ष यान नजर आता है जो जालूबार ग्रह से कुछ नमूने लेकर उन्हें जांचना चाहता है। राका यह मौका नहीं गंवाता और उन वैज्ञानिकों का काम तमाम कर उनसे अन्तरिक्ष यान हंथिया लेता है जो अब उसके मुख्य राकेट की ओर बढ़ रहा था। अब मुख्य यान पृथ्वी की ओर बढ़ चला जो राका को लेकर आ रहा है। राका राकेट के अन्य वैज्ञानिकों की जान बक्श देता है क्योंकि वो लोग उसे वापस धरती पर लेकर आए (राका दयावान भी है, अचरज होता है जानकार)। यहाँ लौटकर आने के बाद उसे तेज़ भूख और प्यास लगती है जो एक तरबूज़ के खेत में जाकर मिटती है लेकिन खेत का मालिक राका पर अपने उजड़े खेत देखकर हमला कर देता है जो राका को नागवार गुजरता है, राका गुस्से में तमतमाते हुए उसकी हत्या कर देता है और इसके बाद शुरू होता है – “राका का खेल” (Raka Ka Khel)।
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चित्रकथा में और भी मुख्य पात्र है जो चाचा चौधरी और राका के साथ मिलकर इस खेल को आगे बढ़ाते है जिनमें जुपिटर ग्रह का निवासी साबू, कुत्सित मानसिकता वाली विचारधारा का प्राणी डॉक्टर नोम्बें और हिमालय की गोद में तपस्या करते बाबा भोलारोला जी प्रमुख है। पदमश्री कार्टूनिस्ट प्राण जी ने एक शानदार कहानी और चित्रों का निर्माण किया जो किसी भी अच्छे कॉमिक्स का आदर्श है। कहानी में बहुत ही कम हास्य है और इसमें डाकू राका की क्रूरता ज्यादा झलकती है। चाचा चौधरी और राका का खेल एक बेजोड़ कॉमिक्स है जो पाठकों को पहले भी पसंद थी और आगे भी पसंद आएगी।
इसे प्राण’स फीचर द्वारा फिर से पुन:मुद्रित किया गया है और कॉमिक्स के पीछे एक नया पिन-अप आर्टवर्क भी है। कॉमिक्स का मूल्य 300/- रूपये है जिसमें कुछ छूट भी दी जा रही है। हालाँकि इसमें कुछ कटौती जरुर होनी चाहिए क्योंकि हिंदी कॉमिक्स वैसे भी पाठकों की पहुँच से दिन ब दिन दूर होती जा रही है इसलिए अब प्रकाशकों को निर्णय सोच-समझ कर लेने पड़ेंगे। ‘राका सीरीज़‘ डायमंड कॉमिक्स के इतिहास का मील का पत्थर है जिसके लगभग सभी अंक शानदार है, पाठकों का इन कॉमिक्स से परिचय ज़रूर होना चाहिए, आभार – कॉमिक्स बाइट!!
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Purchase: Chacha Chaudhary and Raaka Ka Khel