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आत्महत्या!

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वर्ष 1996 राज कॉमिक्स द्वारा एक कॉमिक्स प्रकाशित हुई थी जिसका नाम था ‘आत्महत्या’. इसे ‘भोकाल’ सीरीज़ के अंतर्गत विज्ञापित किया गया था, कॉमिक्स का आवरण भी बड़ा मार्मिक था, तुरीन की ‘लाश’ पड़ी है, दुःख में तड़पता भोकाल उसके सिरहाने बैठा है और अपनी तलवार अपने सीने में पैवस्त करने की कोशिश करने वाला है, दूर से उसका दोस्त ‘शूतान’ उसे रोकने का इशारा करते हुए उसकी ओर भागा चला आ रहा है एवं उसके पीछे खड़े लोग जो अचंभित मुद्रा में ‘भोकाल’ को देख रहे है.

जिन्हें भोकाल के बारे में जानना हो वो यहाँ क्लिक करके पढ़े – भोकाल

इस कथानक के रचियता है श्री ‘संजय गुप्ता’ जी जो राज कॉमिक्स के स्टूडियो हेड भी है और आज उन्होंने आज शेयर किया है एक फेसबुक पोस्ट, चलिए देखें की ‘थ्रेड’ क्या है –

Sanjay Gupta - Raj Comics - Sushant Singh Rajput

जैसा की आप देख सकते है उन्होंने दिवंगत अभिनेता स्वर्गीय ‘सुशांत सिंह राजपूत’ के बारे में दो शब्द लिखे है और ये बताया है की कैसे वो ‘ध्रुव’ बनना चाहते थे, उसके प्रशंसक थे और उन्होंने ‘सुपर कमांडो ध्रुव’ की कॉमिक्स भी पढ़ने के लिए मंगवाये थे. लेकिन कुछ विषम परिस्थितियों के चलते उन्होंने एक घातक निर्णय लिया और इस दुनिया को छोड़ कर चले गये. कम उम्र में ऐसे कदम आपको इस मृत्युलोक से मुक्ति भले हीं देदे लेकिन आपके परिवार, मित्र और निकट संबंधितों पर क्या बीतती है देखने के लिये आप जिन्दा रहते ही नहीं है, अगर ऐसे कदम उठाने से पहले आप दो पल उनके बारे में सोच लें, उनकी मनोदशा का आंकलन कर लें तो हो सकता है की आपके कदम पीछे हट जाएँ और आपके प्रियजन इन दुखों से बच सकें, ‘आत्महत्या’ नामक कॉमिक्स में भोकाल का ‘मित्र’ शूतान पहली बार उसे ऐसा करने से रोकता है और दूसरी बार बिलखते भोकाल को शूतान ने ही अपने सम्मोहन के बल से बचाया, कहने का तात्पर्य ये है की अपने मित्रों से बात करते रहें, कम से कम जो बहोत खास है, जिन्हें आपकी फ़िक्र है अगर आप भी ऐसे ही किसी बुरे दौर से गुजर रहे है तो अपने परिवार से बात करें.

कई बातें परिवार से भी नहीं की जा सकती, कुछ बातें मित्रों से भी छुपानी पड़ती है तो क्या करें फिर? लिखिये अपने दर्द को, अपने फ़साने को, डायरी में, कॉपी में या फ़ोन पर, जहाँ भी आपका दिल करें. जो आपको सबसे पसंद हो वो काम कीजिये, जैसे मुझे कॉमिक्स पसंद तो जब भी मैं ‘लो फील’ करता हूँ तो कॉमिक्स उठा लेता हूँ, मन नहीं लगता फिर भी पढ़ता हूँ, यकीं मानिये थोड़ी देर बाद काफी अच्छा महसूस होता है, इन कहानियों से बहोत कुछ सीखा जा सकता है और ये आपको आत्मबल भी प्रदान करती है. लेकिन अगर किसी को ‘ध्रुव’ पसंद हो लेकिन उसने ध्रुव के जीवन दर्शन को आत्मसात ना किया हो तो फिर आप किस बात के फैन? भाई जीवन की कठनाइयों से जूझकर ही महान बना जाता है, ये कॉमिक्स में भी अपरोक्ष रूप से बताया भी जाता है. अब किसी को विडियो गेम्स पसंद होते है, कोई खाना पसंद करता है. किसने रोका है आप वो करें जो आपको पसंद हो फिर ठंडे दिमाग से सोचें की जिस राह पे आप चल रहें है उसका अंत क्या है और उसके कैसे परिणाम होंगे, अपना नहीं अतएव दूसरों के दुखों का भी भान लीजिये, हो सकता है आपकी सोच बदल जाएँ.

भोकाल की कॉमिक्सों में भी सच्चाई को काफी करीब से छुआ है संजय जी ने, एक किरदार या मनुष्य के जीवन में कई कठिन समय आते है लेकिन उन परेशानियों से डर कर भागा नहीं जा सकता, बल्कि उसका मुकाबला किया जाता है, आखिरी जीवन के कतरे तक अगर उससे लड़ते हुए आप अपने प्राण गवां दें तो कोई बुराई नहीं है क्योंकि आपका कर्म वही कहता है मगर ऐसे हालातों से मुहं मोड़कर और अपने हाल में उसे छोड़कर कुछ नहीं बदलने वाला. ‘डिप्रेशन’ क्या है इसे समझना बहोत कठिन है लेकिन इसका इलाज आसन हो सकता है अगर आप उसे बाँट सके तो. मनोचिकित्सक और अपनों के साथ आप इससे लड़ सकते है और उसका कोई सकारात्मक पक्ष भी ढूँढ सकते है. चित्रकथाओं के माध्यम से इसे पता नहीं शायद अनगिनत बार समझाया गया है लेकिन आपको उसका सार समझना होगा, ज्ञान इतना आसन नहीं क्योंकि उसको थामने के लिए बुद्धिमत्ता की जरुरत पड़ती है, कमज़ोर होना बुरा नहीं लेकिन उस कमज़ोरी को अपना लेना गलत है. संजय जी ने बड़ी ही खूबसूरती से इन तथ्यों को ‘भोकाल’ के कहानियों में पिरोया है और मैं क्या अगर कोई भी पाठक उन्हें ध्यान और मगन से पढ़ेगा तो इन गूढ़ बातों को बड़ी आसानी से समझ लेगा. अंत में यही कहूँगा – “जीत और हार आपके सोच पर निर्भर करती है, मान लो तो हार, ठान लो तो जीत”

अंत में कुछ मार्मिक पंकित्यों के साथ अब लेख की इति करूँगा –

दो वक्त की रोटी जुट जाएं तो डी-प्रेशन में जाऊं मै,
है खाली पेट परिवार का कैसै तुम्हें बताऊँ मैं,
मर गया किसी का पति बार्डर पर, 6 माह का उसका बच्चा है,
कोई छोड़ गया भरा पूरा परिवार, कोरोना का भय सच्चा है,
मृत्यु अटल सत्य है इसको झुठला ना पाओगे,
हो सके तो बात करों, समस्या से निदान पा जाओगे,
माता-पिता यार मित्र, सब समाज का हिस्सा है,
बात करना सीखो सबसे, फिर डी-प्रेशन भी मस्का है,
हंसते खेलते जीवन को जियो, सब संभव है हारना नही,
डी-प्रेशन के नाम से, जिंदगी यूँ ही गुज़ारना नहीं,
मौत का कोई कल नहीं, सर्वविदित सत्य यही,
जीना है आज जियो, क्योंकि कल का कोई कल नहीं,
कल का कोई कल नही…!!

आभार – मैनाक बनर्जी (कॉमिक्स बाइट)

Comics Byte

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