कॉमिक्स बाइट: क्यूँ है कॉमिक्स पढ़ना अच्छा? (Comics Byte: Why You Should Read Comics)
कॉमिक्स बाइट ‘कॉमिक्स’ के प्रचार प्रसार के लिए बनी है, खासकर भारत के ‘कॉमिक्स जगत’ के लिए और ऐसे में एक दुसरे का साथ देकर ही हम इस शानदार और जबरदस्त माध्यम को बचा सकते है एवं इसके कल्याण के बारे में सोच सकते है, लेकिन ‘कॉमिक्स’ के वो कुछ मूलभूत सत्य जो ‘भारत’ में वैसा प्रभाव ना डाल सके जैसा विदेशों में दिखता है. आईये आज यहाँ हम जानेंगे की वो कौन सी बातें है जो कॉमिक्स को एक बेहतरीन माध्यम बनाती है और क्यों ये बस एक मनोरंजन का जरिया मात्र नहीं बल्कि बदलते शिक्षा पद्धति का स्वरुप भी है.
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- कॉमिक्स से बच्चों को, नौजवानों को एवं बड़ो को भी पढ़ने सीखने में मदद मिलती है चाहे भाषा कोई भी हो.
- कॉमिक्स हमें अलग ढंग और अलग अंदाज़ में सोचने पर मदद करती हैं, सजीव चित्रण का इसमें खासा योगदान है.
- कहानियां आपके मस्तिष्क के लिए अच्छी होती हैं, आप इन्हें पढ़कर, देखकर और समझकर अपने विवेक से फैसला लेते है की ये सही है या गलत. सीख जो कहानी के माध्यम से अकसर प्रेषित की जाती है, उसे समझकर कोई भी गलत काम करने से पहले सौ बार सोचेगा.
- कॉमिक्स भी ज़माने के साथ बदलती है, उसकी कहानियाँ भी. ये माध्यम अप टू डेट रहता है और समय अनुसार इसके बदलाव भी दिखते है, चाहे चित्रकारी ही, लेखन हो, कलरिंग हो, कैलीग्राफी हो या संपादन हो. इसे आज के ‘कूल’ पॉप कल्चर में गिना जाता है.
- कॉमिक्स मात्र सुपरहीरोज का घर नहीं है, कॉमिक्स और ग्राफिक नॉवेल इतना सशक्त माध्यम है की आप इस से कोई भी संदेश इस समाज को दे सकते है, अपराधों से लेकर सामाजिक न्याय जैसे मुद्दे भी बड़ी सरलता से यहाँ कहे एवं दिखाए जा सकते है.
- कॉमिक्स बौद्धिक विकास में सहायक होती है, चित्रों और शब्दों के मेल से बहोत ही आसान तरीके से चीज़ों को समझाया जा सकता है.
- अगर आप लेखनी, चित्रकारी, कलरिंग (रंग संयोजन) एवं कैलीग्राफी में व्यवसायिक रूप से कुछ करना चाहते है तो आप यहाँ काफी कुछ सीख सकते है.
- कई लोग इसे शौक के रूप में भी अपनाते है और किताबों से बेहतर दोस्त भला कौन हो सकता है.
- बच्चों में विकास बेहतर ढंग से एवं चरणबद्ध तरीके से हो सके तो उन्हें कॉमिक्स जरुर पढ़ने को दीजिये – चाचा चौधरी से लेकर सुपर कमांडो ध्रुव तक और सुपंडी से लेकर अमर चित्रकथाओं तक का ये विस्मित करने वाला संसार आपको एक नयी दृष्टी प्रदान करेगा.
- क्या सही है और क्या गलत, इसका भेद कॉमिक्स से अच्छा किसी और माध्यम में नहीं बताया गया है, ना ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर और ना आज के मोबाइल गेम्स इसका कोई उदहारण देते है.
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अगर उपर लिखे गए इन उल्लिखित बातों से आप जरा भी इत्तेफाक़ रखते है तो आप भी ये समझ रहे होंगे की मैंने इन बिन्दुओं पर प्रकाश क्यों डाला है, आप 500 रूपए का स्मार्टफ़ोन रिचार्ज कर सकते है लेकिन वही 80 रूपए की 32 पन्नों की किताब आपको महंगी लगती है. माता पिता अभी भी कॉमिक्स को बच्चों का शौक समझते है लेकिन अगर मैं सिर्फ ‘अमेरिका और कैनेडा’ की बात करूँ तो वर्ष 2018 में कॉमिक्स इंडस्ट्री ने 1.095 बिलियन $ का व्यवसाय किया इसे अगर आप भारतीय मुद्रा में देखें तो कुछ ये संख्या मिलती है 8,27,55,172.50 (8 करोड़ 27 लाख 55 हज़ार 172 रूपए), वही भारतीय बाज़ार में भी इन विदेशी ग्राफिक नॉवेल की अच्छी डिमांड है. भारत का कॉमिक्स इतिहास भी बहोत पुराना है लेकिन बदलते चक्र में तकनीक के साथ ऐसी प्रतिस्पर्धा हुई की काफी सारे हिंदी कॉमिक्स पब्लिकेशन हाउस इस दौड़ में हार गए और कुछ बदलाव के साथ आगे बढे. कुछ नए पब्लिकेशन्स ने अंग्रेजी माध्यम से पकड़ बनाने की कोशिश की जैसे ‘ग्राफ़िक इंडिया’, ‘होली काऊ’, ‘याली ड्रीम क्रिएशन्स’ और ‘कैम्प फ़ायर’ एवं ये पिछले एक दशक से सक्रिय है.
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साभार: ग्राफ़िक इंडिया
अब तो भाषा का भी चुनाव उपलब्ध है लेकिन लोगों का उदासीन रवैया इसे और गर्त में धकेल सकता है, गनीमत है तकनीक के सहारे (सोशल प्लेटफ़ॉर्म जैसे फेसबुक/इन्स्टाग्राम) में लोगों ने ग्रुप्स और एक दुसरे से ‘कनेक्शन’ जोड़ते हुए यथासंभव कोशिश की और कर भी रहे है, लुप्त हो गई कई कॉमिक्स पब्लिकेशन के कवर्स और सॉफ्ट कॉपी संरक्षित कर इन्हें ज़मींदोज़ होने से भी बचा लिया. ये कुछ कुछ वैसा है कार्य है जैसा ‘ग्रैंड कॉमिक्स डेटाबेस‘ में लोग स्वतंत्र रूप से करते है, वहाँ सुनहरे काल की कई कॉमिक्स जो कहीं भी उपलब्ध नहीं है डिजिटल संस्करण में उसकी पूरी जानकारी मिल सकती है.
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रचनात्मकता भी एक अलग पहलू है और कई बड़े फाइन आर्ट्स के चित्रकार है जिन्होंने कॉमिक्स इंडस्ट्री में अपना योगदान दिया है. स्वर्गीय ‘प्रताप मुल्लिक’ जी हों या श्री ‘संजय अष्टपुत्रे’ जी, सभी फाइन आर्ट्स के बड़े नाम थे और आज भी है. श्री ‘सुखवंत कलसी’ जी के जूनियर जेम्स बांड पर तो टीवी पर एनीमेशन श्रृंखला भी प्रसारित होती है, स्वर्गीय पदमश्री ‘कार्टूनिस्ट प्राण’ के चिरंजीवी किरदार ‘चाचा चौधरी’ टीवी से लेकर एनीमेशन तक में नज़र आ चुके है. भारत में ‘नागराज’ और ‘ध्रुव’ के नाम से भला कौन परिचित नहीं होगा, श्री ‘संजय गुप्ता’ जी और श्री ‘अनुपम सिन्हा’ जी ने कॉमिक्स की छवि अवश्य बदली है लेकिन आज भी इसी उदासीनता ने कॉमिक्स को वो मुकाम हासिल नहीं करने दिया जिसकी वो हकदार है, कहने का तात्पर्य ये है की कार्य करने के लिए बहोत से क्षेत्र है लेकिन एक ‘शब्द’ काफी कुछ बदल देता है इसलिए कॉमिक्स पर कृपया कोई ‘लेबल’ ना लगायें, नहीं तो भारत का ये युवा ‘यूथ’ कही ‘सस्ते मनोरंजन’ के चक्कर में अपना बचपन भी ना भूल जाएँ.
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उम्मीद करता हूँ इस लेख को पाठक पढ़े और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाऍ, अब कोई आपसे सवाल करे तो उसे उपर लिखे गए तर्क जरूर दिखायें. कॉमिक्स पढ़े और दूसरों को भी प्रोत्साहित कीजिए, यकीं मानिये आज भी इससे बेहतर ‘मीडियम’ और कोई नहीं है, आभार – कॉमिक्स बाइट!!
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