नए प्रकाशनों के लिए पाठकों का उदासीन रवैया क्यों? – कॉमिक्स बाइट (Why the indifferent attitude of readers towards new publications? – Comics Byte)
एक तो गिन चुनकर कुछ ही हिंदी काॅमिक्स पढ़ने वाले पाठक भारत में बचे हैं (पाठक बहुत हैं पर पहुँच कम हैं) और दूसरा नए पब्लिकेशन को लेकर जो उदासीनता दिखाई पड़ती हैं उसे देखकर मुझे हंसी भी आती हैं और दुःख भी होता है।
हंसी का कारण – अरे क्यों भाई इस काॅमिक्स के धंधे में क्यों हो?
दुःख का कारण – भाई, काॅमिक्स के ही धंधे में क्यों हो?
हांलाकि सभी की कोशिश जारी हैं और प्रकाशक अच्छा करने का प्रयत्न भी कर रहें हैं, यह पैशन ही इस कला को अभी तक भारत में बचा पाया हैं। कई भाषाओं में प्रकाशित होना आपको नए मौके भी देता हैं, फिर सोशल मीडिया भी मददगार हैं और यूट्यूब सरीखें प्लेटफार्म भी। पर इस बात को कोई नकार नहीं सकता की 1000 – 2000 प्रतियां (ज्यादा बता रहा हूँ, कई जगह इतना भी नहीं हैं) बेच कर आप कुछ बदलना चाहते हैं या बदल पा रहें हैं। हाँ अगर कोई “आई. पी.” (आपकी मौलिक कहनी या किरदार, पेटेंट* में इस्तेमाल होने वाला) चल निकला तो वारे न्यारे हो सकते हैं। जहाँ पहले कॉमिक्स की लाखों प्रतियाँ छापी जाती थीं और करोड़ों लोग इसे पढ़ते थें लेकिन पिछले दो दशकों में यह आंकड़ा करोड़ पाठकों से सीधे हज़ार पाठकों तक आ गया हैं। गलती कहाँ हो रही हैं, 140 करोड़ + के देश में मात्र हजार पाठकों के दम पर क्या हो सकता हैं। इस दयनीय स्तिथि का जिम्मेदार कौन हैं और क्यूँ आज भी इनको लेकर कहीं चर्चा नहीं की जाती, शायद उदासीनता ही सबसे बड़ा कारण हैं जो इस विधा को अपने समकक्ष प्रतिद्वंदियों से पीछे ले जाता हैं।
सुपरहीरो क्रेज के चलते फिल्म और वेब सीरीज़ का बाज़ार गर्म हैं। अगर कोई इसे अपना ले तो रायल्टी से ही काफी कुछ बदला जा सकता हैं। आज के दौर में अगर काॅमिक्स की बात करें तो चाचा चौधरी से बड़ा ब्रांड और कोई नहीं हैं। वो नमामि गंगे प्रोजेक्ट के ब्रांड एम्बेसडर हैं, क्लोथिंग लाईन अभिनेत्री अनुष्का शर्मा के ब्रांड ‘नुष’ से भी जुड़े हैं, भारत सरकार का स्वस्थ भारत मिशन हो या कोरोना से बचने के उपाय, सभी जगह उनकी धूम हैं। वो भारत के उन चुनिंदा पात्रों में से एक हैं जिनके कार्टून टी.वी. पर आते हैं और लाइव सीरीज भी बन चुकी हैं।
राज कॉमिक्स के पात्र भी बेहद लोकप्रिय रहे हैं, हरे शल्कों और सर्प शक्तियों वाला नायक – नागराज हो या मोटरसाइकिल पर गड़गड़ाती हुई आवाज के साथ नीली-पीली चुस्त पोशाक में सुपर कमांडो ध्रुव, मुंबई का रखवाला – डोगा एवं और भी भिन्न-भिन्न किरदारों ने अपना जादू एक तबके पर आज भी कायम रखा हैं। हाॅलांकि काॅमिक्स के पाठक अब कम ही बचे हैं और वो भी मूल्य वृद्धि एवं गुणवत्ता के मानकों पर खरा ना उतरने पर अपना मन विडिओ गेम्स (जैसे पबजी) और इन्स्टाग्राम रील्स पर बिता रहें हैं।
सन 2000 के आस पास असमय ही कई प्रकाशकों ने काॅमिकों को नमस्कार कह अपने अन्य कार्यों में निकल गए, जब धंधा ही मंदा हो तो और पैसा कौन लगाए? पर अब फिर समय करवट बदल रहा हैं। नए प्रकाशक भी मैदान में हैं और कुछ पुराने खिलाड़ी भी, पर क्या वाकई में हिंदी के पाठक इन सबसे जुड़ पाएंगे? इस पहुँच को कैसे बढ़ाया जाएगा? और कौन कौन से कदम इस इंडस्ट्री की साख को फिर से कायम कर सकते हैं?
मैंने आयरन मैन का कार्टून नब्बें के दशक में ‘स्टार प्लस’ चैनल पर देखा था और मार्वल की फिल्म के बाद उसका प्रशंसक भी बन गया, वही कहानी स्पाइडर-मैन के साथ रही। सुपरमैन एवं बैटमैन का मैं दूरदर्शन के दिनों से फैन रहा हूँ इसलिए इन्हें पर्दे पर देखना एक अनोखा एहसास हैं। इनकी काॅमिक्स का वर्ग ही अलग हैं, अस्सी वर्षों से ज्यादा पुराना इतिहास हैं। अंग्रेजी के पाठक इन्हें चाव से पढ़ते है और अब तो इनका प्रभुत्व मर्चेंटडाईज मार्केट पर भी हैं। भारतीय प्रकाशकों ने ना इस श्रेणी में ध्यान दिया और ना ही आगे कोई संभावना दिखाई पड़ती हैं, वैसे दौर बदलाव का हैं क्या नए और क्या पुराने एवं इस गर्म लोहे में हथौड़ा मारने का यह प्रयास बिलकुल भी इन्हें चूकना नहीं चाहिए। ब्रम्हास्त्र, शक्तिमान और हाल ही में कैप्टेन व्योम पर फिल्मों की घोषणा इसके सबसे बेहतर उदहारण हैं।
भारत के पुराने प्रकाशक ही अभी इनसे पीछे हैं, तो नए की हम चर्चा ही क्या करें। पैसा भी एक मुख्य पक्ष हैं जो विदेशी प्रकाशकों को खुली छूट देता हैं की वो अपने मन मुताबिक कार्य कर सकें और यहाँ तो हजार दो हजार काॅपीज बेचने में ही दम उखड़ जाता हैं। लाइब्रेरी का जमाना भी लद गया पर वह उद्योग बड़ा ही अच्छा प्रतीत होता था, पाठकों के पास काफी ऑपशन उपलब्ध होते थें और साथ में लोगों को रोजगार भी मुहैया होता था।
वो दौर भी गया, वो ठिकाने भी छूट गए। आज तेजी से टेक्नोलाजी बदल रही हैं। गेम्स, ओ.टी.टी. और स्मार्ट फोन के नित नए प्रवधानों नें हमें जकड़ रखा हैं। ऐसे में पाठकों को चाहिए की वो नए प्रकाशकों से जुड़े और सभी को मौका भी दें। वहीं प्रकाशकों को चाहिए की पाठक तक अच्छी चित्रकथा पहुँचाई जाए।
आजकल प्रोपोगेंडा फैला हुआ हैं, कई काॅमिक्स में भी यह दिखाई पड़ता हैं, कृपया ऐसे सड़ांध मारते कहानीयों/प्रकाशकों से दूर रहें और अच्छे प्रकाशकों को मौका दें। आशा हैं ये दुःख या कहूँ उदासीनता जल्द समाप्त हो और काॅमिक्स को कुछ नए पाठकों से जुड़ने का मौका भी मिलें – जय हिन्द, आभार – काॅमिक्स बाइट!!
Naye publishers se jyada lagaav na hone ka ek main reason har kisi ka har issue mein jo reader ko chahiye wo na deliver kar paana bhi raha hai !! Allied content toh door ki baat hai yahan same storyline ya arc complete hogi uska bhi ya nahi iska bhi darr laga rehta hai… ( for example maze comics and their premam series )
विनीत जी आपकी बात सही हैं लेकिन जब वो बेच ही नहीं पा रहें तो कॉमिक्स कहाँ से प्रिंट करेंगे, यही सवाल प्रकाशकों से भी हैं वो लोगों तक पहुँचने के लिए क्या कर रहें हैं! आशा करता हूँ पिछले साल जो कॉमिक्स के पाठकों में बढ़ोतरी दिखी वो आगे भी जारी रहे क्योंकि दौर अब सुपर हीरोज का ही आने वाला हैं, अगर यहाँ मौके को नहीं भुनाया गया तो फिर हिंदी कॉमिक्स की दुर्दशा आगे भी जारी रहेगी जो हम-आप जैसे पाठक तो बिलकुल भी नहीं चाहते हैं!
Very good article. Main apni baat karoon to maine lagbhag 2000 se 2011 tak Indian comics nahi padhi. Uske baad Comic Con ke daur se independent comics khareedni shuru kari aur padhi aur review bhi kare. 4-5 saal mein thoda bore ho gaya…wahi saare issues, us vs them mentality, trying to sound too cool and different, focus on too dark stories,trying to peddle political agenda, high prices no novelties…fir RC ki beech mein comics khareedi aur appreciate bhi ki on and off. Abhi maine wapas 3-4 months se comics khraeedni shuru ki hain, aur mujhe to RC ka hi lena jyada waajib lagta hai…so many titles, books, stories, amazing reprints and new events and releases too, and something for everyone. Not everything is rosy there too but Independent publishers ne content 10 saal mein jyada change nahi kiya hai despite few exceptions. Jab kuch acha dikhta hai to zaroor try karta hoon but considering we have limited money to spend, I tend to buy RC more. One tip I have is there is high time we have more comic magazines like your website jo jyada freely uplabdh ho. Jo log movies dekhne jaaye wahaan unko kuch copies free mein di jaaye. Just imagine if there was Comics News or some monthly magazine which would details and ads of all new Indian comic books, it would help everyone so much in the industry.
Thanks for pouring your emotions bro. I completely agree whatever points you’ve written above. RC is the pioneer but ppl should try other publication as well. I know most of them & the selling count is miserable. We are also planning for a Annual book which will have all the details of Indian publication & other details. We don’t have any as of now. Thanks again for your esteemed views.
Thanks for the reply. Comics & emotions/passion are always intertwined. 🙂
That is great news(annual book). I remember something called ‘Comic World’ used to be there by Diamond Comics I think.