भारतीय हिंदी कॉमिक्स की दोयम दर्जे की गुणवत्ता का जिम्मेदार कौन! (Quality Issues In Hindi Indian Comics)
काॅमिक्स के दोयम दर्जे की गुणवत्ता के पीछे क्या कारण है? क्यों इतने वर्षों बाद भी इसमें सुधार नहीं लाया जा रहा है। रेलगाड़ी कभी पटरी पर रहती है कभी उतर जाती है। एक स्टैनडर्ड मेंटेन करने में इतनी तकलीफ क्यों है? क्या गुणवत्ता की जांच के लिए लोगों को रखा नहीं जाता या पैसा कमाना ही प्रकाशकों का मुख्य उद्देश्य बन चुका है? काॅमिक्स बाइट ने हमेशा प्रकाशकों/सेलर्स का सहयोग किया है पर अब हमें लगता है की भारतीय काॅमिक्स प्रकाशकों ने अपने पाठकों और उनके मूल्यों को हल्के में ले रखा है। हजारों मूल्य खर्च करने बाद भी सही प्रोडक्ट का ना मिल पाना और पुस्तक विक्रेताओं का ढुलमुल रवैया देखकर तो यही लगता है की मार्वल और डी.सी. सरीखें पब्लिकेशन पर ही संग्राह बनाया जाए और उन्हीं का पठन-पाठन किया जाए।
असल में बात यह भी है की ना अब पुराने लोगों मे वह जस्बा है और ना ही उसे पढ़ने के लिए पाठक। बस एक चक्र सा घूम रहा है और हर बार वही गलतीयाँ रह रह कर प्रकाशक दोहराते जा रहे है। जब हजारों रूपये की काॅमिक्स मंगाने वाले हमारे ब्लाॅग के लिए ही दर्जनों बार डैमेज प्रोडक्ट भेजे जा सकते है तो अन्य पाठकों का क्या ही हाल होगा। ऐसे इतने उदाहरण है मात्र पिछले वर्ष के ही उत्पादों की त्रुटियाँ गिनने से ही एक पुस्तक के कई पृष्ठ भर जाएँगे।
काॅमिक्स हम पाठकों के लिए शौक हो सकता है पर प्रकाशन के लिए एक व्यवसाय है। उंचे की दाम पर काॅमिक्स खरीद कर पाठक खुद को ठगा महसूस करता है। बहुत दिनों से मैं इसपर कुछ लिखना चाह रहा था पर हर बार यही सोचकर रूक जाता कि शायद प्रकाशक गुणवत्ता पर संज्ञान जरूर लेंगे और आगे चलकर इसपर कार्य भी करेंगे। ऐसा होता भी ही हैं की कई कॉमिक्स गुणवत्ता के नए आयाम स्थापित करती हैं लेकिन अगले सेट में कहानी वही “ढाक के तीन पात” वाली हो जाती हैं।
बहुत दुःख होता हैं जब आप गलत सिद्ध होते हैं और हमें लगता हैं पुस्तक विक्रेताओं को भी ज्यादा जिम्मेदार बनना चाहिए, एक तो कॉमिक्स लेट आती हैं, फिर गुणवत्ता की जाँच नहीं होती, उसके बाद रिटर्न का झंझट, मतलब कहीं कोई छोटा-मोटा गैप नहीं बल्कि पूरी खाई खुदी पड़ी हैं जिसमें सिर्फ और सिर्फ पाठक पिस रहा हैं। चाहें आप 10 लेयर की पैकेजिंग कर लें, पर डैमेज उत्पाद हमेशा डैमेज ही रहेगा। काॅमिक्स बाइट ने हमेशा सकारात्मक होकर कॉमिक्स जगत में अपना योगदान दिया हैं लेकिन भारतीय हिंदी काॅमिक्स जगत ने अब सभी को ‘Taken For Granted’ ले लिया हैं।
काॅमिक्स बाइट को आप लोगों ने काफी प्रेम दिया है और शायद आगें भी देंगे और अब हमारी कोशिश यही रहेगी की आपको हमारे लेखों से बेहतर गुणवत्ता मिलें। हिंदी काॅमिक्स की दुनिया बड़ी ही शानदार है पर अब यहाँ के लोग अब उतने शानदार व्यक्तित्व के धनी नहीं रह गए है लगता हैं। हमारी शुभकामनाएं तो हमेशा से प्रकाशको के साथ हैं पर क्या अब प्रकाशकों भी इस हिंदी कॉमिक्स के सिमट चुके दायरे के बारें में नहीं सोचना चाहिए? क्या गुणवत्ता के लिए एक टीम नहीं बनानी चाहिए? क्या इसके लिए विस्तृत चर्चा नहीं करनी चाहिए। सवाल कई हैं पर जवाब सिर्फ और सिर्फ प्रकाशकों के पास ही हैं और हाँ यहाँ पर छोटे बड़े सभी प्रकाशकों की बात हो रही है इसलिए आप सभी का नाम यहाँ समझ सकते है। कई प्रकाशनों का उदय भी इस वर्ष हुआ हैं और कुछ पुरानी पब्लिकेशन फिर से एक बार पुनः सक्रिय हुई हैं।
उदहारण के लिए –
- कॉमिक्स के कभी मोटे, कभी पतले आवरण
- मुद्रण की त्रुटियाँ
- संग्राहक संस्करणों के बाइंडिंग
- शिपिंग में डैमेज, बेकार पैकेजिंग
- कॉमिक्स में अंदरूनी पृष्ठों में लकीर, मुड़ाव
- हल्की कलरिंग और प्रिंटिंग की दिक्कतें
यह पूरा आंकलन पिछले वर्ष में खरीदें गए काॅमिक्स के उपर आधारित है जिसका मूल्य कई हजारों से ज्यादा ही होगा, भिन्न भिन्न पुस्तक विक्रेताओं और प्रकाशकों की कॉमिक्स हमनें मंगवाई हैं। आशा करता हूँ हिंदी काॅमिक्स जगत में इस वर्ष अच्छे बदलाव देखने को मिलेंगे और गुणवत्ता की इसमें एक अहम भूमिका होगी, क्योंकि अगर इस पहलु पर ठोस कदम ना उठाएं गए तो ‘दीपक बुझने से पहले जो आग का भबका उठता हैं’ कुछ कुछ वैसा ही भारतीय हिंदी कॉमिक्स जगत के साथ होगा, आभार – काॅमिक्स बाइट।
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