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पुराने टी.वी. विज्ञापन(राज कॉमिक्स) भाग-3: सुपर कमांडो ध्रुव (Super Commando Dhruv)

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स्वागत है आप सभी का एक बार फिर पुराने टी.वी. विज्ञापनों की श्रृंखला में और आज हम बात करेंगे राज कॉमिक्स के ही एक और पुराने टी.वी. विज्ञापन की, वर्ष 1998 में आई थी ‘सुपर कमांडो ध्रुव’ (Super Commando Dhruv) की कॉमिक्स ‘जंग’, राज कॉमिक्स में इसकी संख्या थी ‘स्पेशल’ #121 और ध्रुव की ये 59वीं कॉमिक्स थी, अब ध्रुव की सोलो कॉमिक्स (32 पृष्ठों वाली) आना बंद हो चुकी थीं और सिर्फ विशेषांक आते थे. यक़ीनन कॉमिक्स पाठकों को ध्रुव पसंद आ रहा था और 32 पृष्ठ शायद उसकी कहानियों के लिए कम पड़ रहे थे.

सुपर कमांडो ध्रुव

इससे पहले के अंक में ध्रुव ‘शक्ति’ से टकरा चुका था और अब उसकी जिंदगी में तूफ़ान आने वाला था ‘नक्षत्र’ नाम का तूफ़ान. राज कॉमिक्स अगर कहूँ तो प्रचार प्रसार के मामले में भी काफ़ी आगे थी, जैसे उनके पुराने विज्ञापन वीसीपी/वीसीआर पे आते थे, ज्यदा जानने के लिए आप हमारे पुराने राज कॉमिक्स विज्ञापनों के आर्टिकल जरूर पढ़े –

पुराने विज्ञापन भाग – 1 : किरीगी का कहर

पुराने विज्ञापन भाग – 2: सुपर कमांडो ध्रुव

जंग कॉमिक्स का विज्ञापन मैंने ध्रुव शक्ति कॉमिक्स में ही देखा था, लेकिन जब टी.वी. पर भी उसका विज्ञापन देखा तो बस पूछिए मत मज़ा ही आ गया (टी.वी. पर कुछ आ जाये तो सहूलियत रहती थी देखने दिखाने की, मांग चढ़ाने की) , मुझे याद है इस विज्ञापन का प्रचार अन्य कॉमिक्सों के लिए भी हुआ था, शायद अंत में कॉमिक्स का नाम बदल दिया जाता, अपने प्रिय पात्र का विज्ञापन देखना टी.वी. पर सुखद एहसास है वो भी 1997 के दौर में, मैं शायद 6’ठवीं कक्षा में था या 7’तवीं में ठीक से याद नहीं लेकिन ये विज्ञापन खूब याद है वो कहते हैं ना ‘पसंद अपनी अपनी’.

आर्ट: अनुपम सिन्हा
साभार: राज कॉमिक्स

आज से करीब 23-24 साल पहले ऐसा कुछ देख पाना, वो भी राज कॉमिक्स की ओर से! भाई बड़ा ही शानदार रहा झूठ नहीं कहूँगा, एक बात ध्यान देने योग्य ये भी है की राज कॉमिक्स हमेशा समय के साथ ही चली है इसीलिए आज भी टिकी है, वो समय था स्टार प्लस पे स्पाइडर-मैन कार्टून के प्रसारित होने का ऐसे माहौल में अगर ध्रुव भी अपने दुश्मनों को किक मरता दिख जाये वो भी कार्टून में तो फिर क्या कहने!. मुझे दिल्ली दूरदर्शन के धारावाहिक का नाम तो याद नहीं है लेकिन उस वक़्त धारावाहिक को मैं सिर्फ इसीलिए देखता था ताकि “कैप्टेन” को एनिमेटेड रूप में एक्शन करते हुए देख सकूँ. आप लोगों के साझा कर रहा हूँ एक बार फिर – जंग कॉमिक्स का विज्ञापन!

साभार: राज कॉमिक्स

इस विज्ञापन की खासियत ये थी कि इसमें स्कूल के बच्चों को कॉमिक्स पढ़ते दिखाया गया और उनके सुपर हीरो के बारे में पुछा भी गया, सभी बच्चें जोर से चिल्लाते है, “ध्रुव/ध्रुव/ध्रुव” एवं अंत में मास्टर जी खुद बच्चों से कॉमिक्स मांगते नज़र आये, ये एक बदलाव की निशानी थी, जब माता पिता बच्चों को कॉमिक्स से दूर रहने की हिदायत देते थे वहां पर स्कूल के माध्यम से विज्ञापन बना के प्रचार करना ये दर्शाता है की राज कॉमिक्स अपने पाठकों के प्रति जागरूक भी रही और उनकी तकलीफ दूर करने की कोशिश भी की (नब्बे का तकिया कलाम – कॉमिक्स से समय और पैसा दोनों बर्बाद होते है, ये तो बच्चों के पढ़ने की चीज़ है, और भी बहोत कुछ) ऐसे में कॉमिक्स को स्कूल से जोड़कर एक बेहतरीन उदहारण पेश किया गया.

उपर से मज़ेदार बात ये भी रही की इसमें पाठकों एवं दर्शकों को ‘डॉक्टर वायरस’ के एक पालतू ‘वृक्ष पशु’ से भी मिलने का मौका मिला, हमें ‘पागल कातिलों की टोली’ भी दिखाई पड़ी और उसके किरादार ‘चीरकर’ को भी देखा एवं “वैम्पायर” कॉमिक्स के एक विलेन पात्र से भी ध्रुव की लड़ाई को देखने का हमें मौका मिला, विज्ञापन मात्र 20 सेकंड्स का था, तो आप समझ ही सकते है सब कुछ समेटने की जल्दी, उपर से सही ‘स्लॉट’ नहीं मिलता, सीधे शब्दों में कहूँ तो दूरदर्शन तब ‘हॉट केक’ था और सबसे ज्यदा देखा जाने वाला चैनल भी, वहां पर विज्ञापन देना मतलब सीधे लाखों घरों तक पहुँच. ध्रुव का किरदार एक आदर्श किरदार है, इसलिए मुझे लगता है टी.वी. पर उसे ही ज्यदा अहमियत दी गई.

प्रतिशोध की जवाला
साभार: राज कॉमिक्स

यहाँ पर हमें ध्रुव के कुछ कॉमिक्सों के दर्शन भी हुए जैसे – ‘प्रतिशोध की जवाला‘ जनरल संख्या #74 (जो सुपर कमांडो ध्रुव की पहली कॉमिक्स भी थी), ‘आदमखोरों का स्वर्ग’ जनरल संख्या #92, ‘चैम्पियन किलर’ जनरल संख्या #285 (ये दो पार्ट वाली कॉमिक्स मेरी पसंदीदा है) और ‘पागल कातिलों की टोली’ जनरल संख्या #400.

जंग (प्रथम आवरण), मूल्य – 16 रूपए

जाहिर है इस विज्ञापन को देखने के बाद मैंने पापा से ‘जंग’ कॉमिक्स की जिद की और उन्होंने उसे मुझे लाकर भी दिया (इस कॉमिक्स के उपर चर्चा और किसी दिन), एक तरह से पिता बच्चों का पूरक ही होता है, उन्होंने कभी भी मुझे इसे पढ़ने से नहीं रोका और टोकने का तो सवाल ही नहीं था, हाँ कई बार वो मुझसे जरुर पूछते की “इतने कॉमिक्सों का तू क्या करेगा” और मेरे पास कभी इसका जवाब नहीं होता क्योंकि मन ही मन मैं जनता था वो खुद भी कॉमिक्सों से बहोत प्रेम करते थे और गर्मियों की छुट्टियों के दौरान ऑफिस जाने से पहले वो रोज़ एक कॉमिक्स जरुर पढ़ा करते थे, मुझे लगता है आज के युग में जब संस्कारों की किल्लत साफ़ दिखाई पड़ती है बच्चों में, ऐसे कठिन समय में कॉमिक्सों के योगदान काफ़ी महत्वपूर्ण हो जाता है. कॉमिक्स भी बहोत से प्रारूपों में उपलब्ध है, बुद्धि एवं विवेक से आप अपने बच्चों और बड़ो के अनुरूप कॉमिक्सों का चुनाव कर सकते है और मनोरंजन के साथ साथ बेहतर शिक्षा भी प्रदान कर सकते है, आभार – कॉमिक्स बाइट!

Comics Byte

A passionate comics lover and an avid reader, I wanted to contribute as much as I can in this industry. Hence doing my little bit here. Cheers!

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