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अख़बार और कॉमिक्स की पट्टिकायें (कॉमिक्स स्ट्रिप) – भाग 1 (News Paper and Comic Strips – Part 1)

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मित्रों एक सवाल है आज! सबसे पहले आप किस सुपर हीरो से रूबरू हुए और कैसे? यहाँ पर कई पाठक है तो जाहिर है जवाब भी कई होंगे, लेकिन एक बच्चा अपने बचपन में कॉमिक्स को ना जानता है ना समझता है, वो तो बस रंगबिरंगे पात्रों और स्पीच बलून्स को देखकर अचंभित होता है और मन ही मन सोचता है ये क्या बला है? ये क्यों हो रहा है? कौन है ये लोग? क्योंकि तब ना वो ठीक से बोल पाता है ना ही शब्दों को पढ़ पाता है, फिर भी ईश्वर ने हमे इन्द्रियां प्रदान की है जैसे देखने लिए आँखे और सुन सकने के लिए कान, तो बच्चें जो देखते सुनते है उसी को पकड़कर आगे की रूपरेखा बनाते है क्योंकि मस्तिष्क की जटिलता ही कुछ ऐसी है!

साभार: कॉमिक गाए

अब हमने तो बचपन में ही कॉमिक्स पढने से पहले ये समझ लिया था की इन 4-5 फ्रेम्स की बात पूरे अख़बार से अलग है, भई चित्रकथाओं की बात ही निराली थी, है और हमेशा रहेगी. ऐसी ही एक चित्रकथा थी ‘द फैंटम’. हमारें घर में ‘समय’ नाम का अख़बार आता था जो शहडोल (जो की हमारा जिला भी था) वहां से छपता था, नब्बे का दशक था और अख़बार श्वेत-शाम रंग में आता था मतलब ब्लैक एंड वाइट, कोई भी कलर पेजेज नहीं होते थे उसमें, लेकिन बच्चों को राजनीति, खेल, सम-सामायिक घटनाओं से क्या लेना देना भाई, उन्हें तो बस चित्रकथा देखनी/पढ़नी है वो भी हिंदी में! अकसर क्लब में हम दोस्त बड़े चाव से इन्हें पढ़ते, थोड़े बड़े होने पर भाषा पर पकड़ भी बनी, कॉमिक्स से भी जान पहचान हुयी, डायमंड कॉमिक्स, राज कॉमिक्स और इंद्रजाल का जादू चला, लेकिन हर रोज़ इन कुछ फ्रेम्स पर दिल अटका रहता और सरसरी निगाहों से हम बस इन्हें ही ढूँढ़ते.

तब शायद मनोरंजन के साधन कम थे, इसलिए भी ये अच्छा आमोद प्रमोद का जरिया था, मैं तो अभी भी कहता हूँ, अपने बच्चों, पड़ोस, और समाज में इस कला को पनपने का मौका दीजिये, स्मार्टफोन जरुरी है लेकिन एक सही उम्र के बाद ही, इन चित्रकथाओं से सीख भी मिलती है और बेहतर चरित्र निर्माण भी होता है.

फैंटम को हिंदी में वेताल भी कहा जाता है, वो देंकाली के जंगलो में रहता है, खोपड़ीनुमा गुफा में उसका घर है, उसके साथ उसके बीवी बच्चें भी रहते है, सारे काबिले वाले उसे पूजते है, उसके बारे में दंतकथाएं प्रचलित है, लोग कहते है ‘वेताल’ अमर है, वो कई सौ सालों से जिंदा है, उसका एक पालतू कुत्ता भी है (बड़े होने पर पता चला की वो एक भेड़िया था, हाय रे बाल मन!), वेताल के हाँथ भी बहोत तेज़ चलते है – एक प्रचलित कहावत है “आपके पलक झपकने से पहला उसका घूँसा आपको पड़ चुका होगा”, वह दोनों हाँथों में अंगूठी पहनता है, दुश्मनों के चेहरे पर एक खोपड़ी का निशान छोड़ना उसकी छाप है.

फैंटम के जनक रहे ‘ली फ़ाॅक’, वो भारत से काफी प्रेरित रहें इसलिए उनकी कहानियों के पात्रों के नाम भारतीय लोगों से काफी मेल खाते है, 1936 को फैंटम पहली बार अमेरिका के एक दैनिक अख़बार में छपा, उसके बाद की कहानी फिर सभी जानते है. उसका रंग रूप गठीला है, उसके आँखों पर नकाब है एवं उसकी पोशाक गुलाबी है. फैंटम के पास एक सफ़ेद घोड़ा भी है जो उसका पालतू है. किंग फीचर्स जिसके पास फिलहाल फैंटम के अख़बारों में ‘प्रिंट’ होने के अधिकार है, उनके एक आश्चर्यचकित करने वाले आंकड़े ये बताते है की फैंटम को 583 अख़बारों ने छापा और लगभग 100 मिलियन लोग इस दैनिक स्ट्रिप को रोज पढ़ते थे, हैं न चौंकाने वाले आंकडे!

पहली फैंटम कॉमिक्स स्ट्रिप – सिंह ब्रदर्सहुड

भारत में फैंटम

भारत में, ‘द फैंटम’ पहली बार 1950 के दशक में द इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया में दिखाई दिया। 1964 में, भारतीय प्रकाशक इंद्रजाल कॉमिक्स ने अंग्रेजी में फैंटम कॉमिक बुक प्रकाशित करना शुरू किया, बाद में इंद्रजाल के कई भारतीय भाषाओं में भी ‘द फैंटम’ प्रकाशित हुई। इन वर्षों में, अन्य भारतीय प्रकाशकों ने भी फैंटम की कॉमिक्स को प्रमुखता दी जिनमें सबसे प्रमुख रही डायमंड कॉमिक्स, यूरो बुक्स (पूर्व में इग्मेंट इमेजिनेशन इंडिया) और रानी कॉमिक्स। तेलुगु क्षेत्रीय दैनिक ‘ईनाडु’ ने भी अपने संडे सप्लीमेंट्स के शुरुआती दिनों के दौरान फैंटम कॉमिक्स के अनुवादित संस्करणों को प्रकाशित किया, ‘प्रेत’ (द घोस्ट हु वाक्स) स्थानीय समाचार पत्रों में बंगाली और हिंदी भाषा में भी प्रकाशित होता है। हिंदी में इसे इंद्रजाल कॉमिक्स ने चरित्र नाम वनभैरव के रूप में प्रकाशित किया है, उन्होंने इसे बंगाली में चरित्र नाम ‘बेताल’ के रूप में भी प्रकाशित किया है. अग्रणी बंगाली प्रकाशन गृह, आनंदबाजार पत्रिका ने बंगाली में इसे वर्ण नाम से प्रकाशित किया था, वर्ण का मतलब जंगल का देवता से है, उन्होंने बाद में अपनी पत्रिका ‘देश’ और बच्चों की पत्रिका आनंदमाला में इन स्ट्रिप्स प्रकाशित करना जारी रखा और साथ ही उनके बंगाली अखबार, आनंदबाजार पत्रिका में भी इसका प्रकाशन लगातार जारी रहा.”

साभार : विकिपीडिया

‘ली फ़ाॅक’ तो 1999 को इस संसार को अलविदा कह गए लेकिन आने वाली सदियाँ फैंटम के जनक को हमेशा याद करेंगी और फैंटम निरंतर अपने अपराध उन्मूलन के सफ़र पर डटा रहेगा, वैसे भी सबको एक दिन इस दुनिया से रुखसत होना है पर “फैंटम” तो अमर है, आभार – कॉमिक्स बाइट!

बाद में फैंटम के रंगीन चित्रकथायें भी आने लगीं, पेश है पाठकों के लिए कुछ संलग्न किये हुए कलर स्ट्रिप्स!

Comics Byte

A passionate comics lover and an avid reader, I wanted to contribute as much as I can in this industry. Hence doing my little bit here. Cheers!

6 thoughts on “अख़बार और कॉमिक्स की पट्टिकायें (कॉमिक्स स्ट्रिप) – भाग 1 (News Paper and Comic Strips – Part 1)

  • jag singh

    Great Article

  • आपको जानकर हैरानी होगी कि विकिपीडिया पर फैंटम और फ्लैश गॉर्डन का हिन्दी अनुवाद भी मैंने ही लिखा था !!
    अब यहाँ दुबारा उसे पढ़कर अच्छा लगा !!

    • ये जानकार हार्दिक ख़ुशी हुयी की हिंदी में इसका अनुवाद आपने किया है. मैंने भी इसका अंग्रेजी वर्शन का ही अनुवाद किया है ताकि ब्लॉग पोस्ट में वो पढ़ा जा सके, आभार.

      • बहुत खूब !! उम्मीद है हम सभी में कॉमिक्स को लेकर एक तरह जागरूकता संभवत ला सकेंगे !! मैं आगे भी आपके ब्लॉग्स पढ़ने को बेकरार हूं !!

        • जी धन्यवाद आपका, बिलकुल उम्मीद पर दुनिया कायम है और ये इंडस्ट्री भी, कोशिश करने में हर्ज़ तो नहीं!

  • Pingback: द फैंटम (The Phantom) - रीगल पब्लिशर्स - Comics Byte

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