फिल्म समीक्षा – किल (Movie Review – KILL)
मूवी रिव्यु: एक्शन की पराकाष्ठा – “किल” (Movie Review: Pinnacle of Action – “KILL”)
वैसे कॉमिक्स बाइट पर फिल्मों की समीक्षा कम ही आती है पर कुछ फ़िल्में ऐसी होती है जिनपर अगर ना लिखा जाए तो यह एक तरह का अन्याय ही होगा उस सम्पूर्ण टीम पर जिसने अपने मेहनत और कुशलता से कुछ अनोखा, नया, प्रयोगात्मक और जबरदस्त फिल्म का निर्माण किया हो। कहानी इतनी रफ़्तार से चलती है की दर्शक भी उसमें शामिल हो जाता है। इस फिल्म का निर्माण धर्मा प्रोडक्शन और ऑस्कर अवार्डी गुनीत मोगा ने मिलकर किया है एवं कहानी और निर्देशन है निखिल नागेश भट का। हॉलीवुड भी इसके निर्माण से दंग था, इसलिए जॉन विक यूनिवर्स के चैड स्तहेल्स्की ने इस फिल्म के पुन: निर्माण के अधिकार खरीद लिए और इसे बहुत जल्द हॉलीवुड में भी एडाप्ट किया जाएगा। लोएँसगेट के ओपनिंग क्रेडिट को देखकर लगता है की कोई विदेशी फिल्म शुरू हो रही है, वैसे ‘किल’ (KILL) फिल्म के उपर कॉमिक्स या ग्राफ़िक नॉवेल भी जरुर आना चाहिए जो इसके स्टोरी एवं प्लाट से मेल खाता हो। पाठकों और दर्शकों को बता दूँ कि यह फिल्म 18 वर्ष से अधिक आयुवर्ग के लिए उपयुक्त है और कमजोर हृदय वाले ‘किल’ फिल्म से दूर ही रहे।
किल मूवी समीक्षा (Kill Movie Review)
कहानी भारतीय एन.एस.जी कमांडोज पर आधारित है जो अपने मिशन से वापस आएं है। बेसकैंप पर मोबाइल ऑन करते ही नायक को दनादन मैसेज प्राप्त होते है। नायिका की सगाई होने जा रही है जो हीरो का नागवार गुजर रही है, वो अपने एक घानिष्ट मित्र के साथ उस लड़की के सगाई वाले जगह पर पहुचं जाता है, अब कहानी बिहार की पृष्ठभूमि पर आ चुकी है। पर लड़की के पिता एक बड़े व्यवसायी है जिनकी पॉवर और रसूख अलग है। कोई बड़ा सीन क्रिएट ना हो करके लड़की ‘नायक’ को बाद में मिलने को कहती है क्योंकि अगले दिन ट्रेन से उन्हें रवाना भी होना था। नायिका के परिवार के साथ नायक भी अपने दोस्त के साथ उसी ट्रेन में सवार है, बस कोच अलग-अलग है। अपराधी भी अगले स्टेशन से ट्रेन के एसी कोचेस को अपना निशाना बना लेते है, इनकी संख्या दसियों में है और फिर शुरू होता है ट्रेन में भयानक लूट-पाट का दौर। दो एन.एस.जी कमांडो और लगभग 40 डकैत, क्या हुआ उस ट्रेन में सफ़र कर रहे पैसेंजर्स का? कौन थे यह नए ज़माने के डाकू? क्या देश के कमांडोज के आगे वो टिक सके? फिल्म का नाम ‘किल’ ही क्यों है? डिस्नी हॉटस्टार पर देखें एक्शन से लबरेज़ ‘किल’ फिल्म।
ये खालिस कच्ची यनि Raw फिल्म है जो आप के मन मस्तिष्क पर प्रभाव डाल सकती है। इतना भयानक और बेदर्द एक्शन तो हाॅलीवुड की फिल्मों में भी नहीं देखा जाता। फिल्म के साथ आप भी ट्रेन के सफर पर निकल पड़ते है। आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे कई दृश्यों को देखकर। फिल्म का एक काॅमन पांइट ‘गजनी’ फिल्म से मिलता है और यहां भी आपको दुःख जरूर होगा। नायक से लेकर खलनायक तक, सभी ने बेहतरीन अभिनय किया है और इतनी गति है कहानी में कि दर्शकों से रूका भी नहीं जाएगा। ऐसा एक्शन आज तक तो किसी हिंदी फिल्म में नहीं देखा पर विदेशी फिल्मों के कुछ कट सीन्स यहाँ दिखते है। एक शानदार एक्शन फिल्म जो रोमांच, नृशंसता और प्रेम के इर्द-गिर्द घूमती है। यहाँ सभी अपराधी क्रूर है तो नायक को भी उन्हें वैसा ही ट्रीट करना होगा। अभिनेता लक्ष्य ने अपने पात्र के साथ पूरा न्याय किया है, राघव जुयाल इस फिल्म की हाईलाइट हैं, बिलकुल कुछ अलग ही नजर आएं है वो, डांस इंडिया डांस का क्रोक्क्रोच की छवि से अब वो बाहर आ चुके है। फिल्म की नायिका ‘तनया’ का किरदार छोटा मगर महत्वपूर्ण है, हर्ष छाया और आशीष विद्यार्थी का कार्य भी सराहनीय है। हालाँकि इस फिल्म का मुख्य बात इसकी गति है जो आपको पलक झपकने का मौका भी नहीं देती और इसका इंटेंस एक्शन आपको चीखें मारने पर मजबूर कर देगा।
इस फिल्म में डर भी दिखता है चाहे वो नायक का अपने गर्लफ्रेंड, उसके परिवार या मित्र के लिए हो या फिर अपराधीयों का जो अपने साथियों के हौलनाक अंजाम देखकर विचलित दिखाई पड़ते है। ‘डर’ के आगे जीत है और हो सकती है ‘मौत’ भी, इसलिए संभलकर! निर्देशक ने एक अलग जोनरा की घातक एक्शन फिल्म बनाई है जिसे भारतीय फिल्म जगत इतिहास में दर्ज करेगा। फिल्म एक और संदेश भी देती है की जब मुसीबत सामने हो तो हाथ पर हाथ धरकर ना बैठे, उससे लड़े और निकलने की कोशिश करे।
कुछ अनकहे शब्द (Some Unsaid Words)
किल जैसी फिल्मों से मैं खुद को जुड़ा पाता हूँ, ज्यादा नहीं पर कुछ 12-15 साल पहले ही हमारे शहर (मध्यप्रदेश बिलासपुर-कटनी) के रेल रूट पर ट्रेन पर डाकुओं ने धावा बोला था, यहाँ घुनघुटी के जंगल बहुत घने और फैले हुए है जिसका फायदा ये लुटेरे उठाते थे। इनका आतंक बड़ा भयानक था जिसे शायद ही वहां का कोई निवासी भूला होगा। हाँथो में राइफल्स लिए गार्डस आपको लगभग हर बोगी में दिखाई देते थे। आज इस बात पर यकीन करना थोड़ा मुश्किल हो सकता है पर अपना देश वाकई में बहुत विशाल है और हम-आप कई बातों से अनिभिज्ञ। इस रिव्यु को सुबह के 4.30 बजे लिखा जा रहा है एवं क्योंकि फिल्म देखकर लिखने से रूका नहीं गया। दिल की धडकनें कई बार इन हाई ऑक्टेन दृश्यों को देखकर बढ़ जाती है, जरा संभलकर! आभार – कॉमिक्स बाइट!!
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