कॉमिक्स के समकालीन: विभिन्न पहलू और यादें भाग – 2 (Contemporary to Comics: Different Aspect & Memories Part – 2)
Advait Avinash Sowale [अद्वैत अविनाश सोवले (मराठी ‘सोवळे’)]: अद्वैत पुणे के रहनेवाले है । उनका बचपन विदर्भ मे गुजरा। माता पिता शिक्षा के क्षेत्र मे कार्यरत होने की वजह से बचपन से ही उन्हे पढ़ने और लिखने मे विशेष रुचि रही है। घर मे बचपन से ही किताबों का मेला रहता इसकी वजह से सिर्फ मराठी ही नहीं बल्कि हिन्दी और अंग्रेजी साहित्य मे भी उनकी रुचि बढ़ती रही। अद्वैत ने रसायनशास्त्र मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है। साहित्य मे रुचि होने के कारण उन्होने अंग्रेजी साहित्य मे स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। उनके मराठी लेख और कवितायें काफी पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी है। उनको सूचना प्रौद्योगीकी संबधित लेख और ब्लॉग आंतरराष्ट्रीय माध्यमों मे प्रकाशित हो चुके है। पुणे मेट्रो के लिए घोष वाक्य प्रतियोगिता, विज्ञान वर्ग पहेली निर्मिति प्रतियोगिता उन्होने जीती है। पिंपरी चिंचवड स्थित रामकृष्ण मोरे नाट्यगृह के रंगमच के ऊपर उन्होने लिखा हुआ सुभाषित नक्काशीत किया गया है। फिलहाल वो पुणे एक सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी मे संगणक प्रणाली गुणवत्ता विश्लेषक के पद पर कार्यरत है।
कॉमिक्स के समकालीन: विभिन्न पहलू और यादें भाग – 2 (Contemporary to Comics: Different Aspect & Memories Part – 2)
कॉमिक्सके समकालीन के पहले भाग मे हमने देखा के कॉमिक्स जब अपने प्रसिद्धी के उफान पर थे तब और कौन कौन से फिल्मी मासिक एवं पत्रिकाएं प्रसिद्ध होती थी। आज इस दूसरे भाग मे हम कुछ और अलग अलग विषयों की पत्रिकाओं से जुड़ी यादों को ताज़ा करेंगे।
पढ़ें – कॉमिक्स के समकालीन: विभिन्न पहलू और यादें भाग – 1
आज ढेरों न्यूज चैनल अपने टीवी पर देखने को मिलते हैं, मगर एक वो जमाना था जब केवल और केवल दूरदर्शन एकमात्र चैनल था जहाँ पर न्यूज देखने को मिलती थी। तब तो वो न्यूज भी सिर्फ एक बार रात के समय आती। धीरे धीरे फिर सुबह और दोपहर को भी न्यूज प्रसारण होता गया। दूसरा कोई और जरिया था तो वो था रेडियो जहाँ पर दिन मे दो-तीन बार अलग अलग केंद्रों से समाचार प्रसारित किए जाते थें। इसके अलावा समाचार प्रसारण के इक्का दुक्का कार्यक्रम हुआ करते। स्थानीय समाचार तो गाँव के चौपाल पर, पान की दुकान पर या पड़ोसवाली चाची के मुहँ से हम आप तक पहुँच जाते थे। समाचार चाहे फिर वो स्थानीय, राष्ट्रीय या फिर आंतरराष्ट्रीय हो; उनका गहराई में विश्लेषण पाने का एकमात्र जरिया हुआ करती थीं पत्रिकाएं।
राजनीति, समाज, अर्थ, संस्कृती, क्रीडा, शिक्षा जैसे यदि विषयों से जुड़े समाचार और उनका विश्लेषण जिन पत्रिकाओं मे आता वो उन मे सबसे ऊपर थी इंडिया टुडे, ऑर्गनायजर, धर्मयुग, आउटलुक, क्रोनिकल, इल्यूस्ट्रेटेड वीकली। मुझे यकीन हैं के नाम पढ़ते से ही दुकानों मे रखी हुई वो सब पत्रिकाएं आपके सामने आ गई होंगी।
दूरदर्शन पे फोकस नाम का एक कार्यक्रम आता था जिसमे एक विषय को लेकर उसपे चर्चा हुआ करती थी। उस कार्यक्रम को देखने वाले भी काफी दर्शक थे। आजकल तो कोई किसी न्यूज चैनल पर किसी विशेष कार्यक्रम की प्रतीक्षा नहीं करता। मगर उपरोक्त दिए गए पत्रिकाओं मे प्रकाशित अलग अलग आलेख एवं स्तंभ वाचकों के खासे प्रिय थे। उसमे सबसे प्रसिद्ध था “With Malice towards One and All” जो खुशवंत सिंह जी द्वारा लिखा जाता था। इन पत्रिकाओं के केवल स्तंभ ही नहीं बल्कि व्यंग चित्र भी काफी प्रसिद्ध थे। चाहे वो “आर के लक्ष्मण” जी के कॉमन मैन हो या फिर “हरीश शुक्ला” जी का काक नाम का किरदार हो।
इंडिया टुडे तो आज एक सफल न्यूज माध्यम बन गया हैं और उसका अलग आग न्यूज चैनलों का परिवार हैं। इल्यूस्ट्रेटेड वीकली और धर्मयुग तो मास्टरपीस थे। अब तो दोनों का प्रकाशन बंद हो चुका हैं। इल्यूस्ट्रेटेड वीकली पढ़ना तो एक जमाने मे बहोत बड़ी बात होती थी। अभी किसी को यकीन नहीं होगा मगर सही मापदंड की अंग्रेजी बोलने के लिए विद्यार्थी इल्यूस्ट्रेटेड वीकली पढ़ना और उससे सीखने की कोशिश करते थे।
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आज तो केवल अंग्रेजी ही नहीं बल्कि दुनिया अलग अलग भाषाओं को सीखने के लिए कई संसाधन उपलब्ध हैं। कुछ संस्थानों, विश्वविद्यालयों मे तो कुछ ऑनलाइन। कुछ भाषाएं तो पहली कक्षा से अभ्यासक्रमों का हिस्सा हैं। मगर आज से तीस पैतीस साल पहले ऐसा नहीं था। तब अंग्रेजी माध्यमों के विद्यालय भी काम हुआ करते थे। तो कई छोटे शहरों और गाँव के लोग अंग्रेजी सीखने के लिए जिसका सहारा लेते थे वो पुस्तक थी रैपिडैक्स इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स। १९७६ मे पहली बार प्रकाशित इस पुस्तक ने विद्यार्थी से लेकर महिलाओं तक और विभिन्न क्षेत्रों मे काम करनेवाले लोगों के लिए अंग्रेजी सीखना आसान कर दिया। यह किताब भी दुकानों मे प्रथम दर्शन के लिए रखी जाती।
खेल जगत की बात करे तो बहोत ही कम पत्रिकाएं हमको याद आएगी और वो भी ज्यादातर क्रिकेट को ही समर्पित थी। स्पोर्ट्स एंड पासटाइम, स्पोर्टसवीक जो के बाद मे स्पोर्टसवीक एंड लाइफ स्टाइल नाम से प्रकाशित हुई। मगर समय के साथ धीरे-धीरे सभी बंद हो गयी। एक क्रिकेट सम्राट नाम की पत्रिका थी जो क्रिकेट और खिलाड़ियों के हर पहलू पर नजर डालती थी मगर पिछले वर्ष उसका भी ४२ साल का सफर समाप्त हो गया।
इसके अलावा सबसे ज्यादा पत्रिकाएं थी जो प्रतियोगिता परीक्षाओं के लिए प्रकाशित होती थी और आज भी होती हैं। उसमे सुप्रसिद्ध हैं प्रतियोगिता दर्पण, सामान्य ज्ञान दर्पण, सक्सेस मिरर और भी कई। इनमे प्रतियोगिता दर्पण १९७८ से प्रकाशित होती या रही हैं।
आरोग्य से जुड़ी पत्रिकाएं जैसे निरोग धाम, दीर्घायु मित्र, निरोग संजीवनी तथा ज्योतिष विद्या से संबंधित ज्योतिष सागर, तंत्र ज्योतिष आदि पत्रिकाएँ आपको बस तथा रेल स्थानको की दुकानों पर देखने को मिल जाती थीं। मगर आज जब हाथ मे मोबाइल आया हैं तबसे प्रसिद्ध किताबों का दिखना ही कम हो गया हैं एवं कई प्रसिद्ध पत्रिकाएँ मानो जैसे गायब ही हो गई हैं।
साथ ही मे विज्ञान, व्यापार और भी अलग अलग क्षेत्रों के लिए पत्रिकाएँ प्रकाशित हुआ करती थी मगर समय चलते विभिन्न कारणों से वो बंद हो गयी। आज भी कही न कही उनकी यादें हमारे दिल मे हैं। इस आलेख के अगले और अंतिम भाग मे हम कुछ ऐसे प्रकाशनों के बारे मे लिखूँगा जो आपको यादों की अलग दुनिया मे ले जाएंगे।
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