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बाल पत्रिका – चंपक (Children’s Magazine – Champak)

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आइए आज बात करते हैं हम सबकी पसंदीदा बाल पत्रिका ‘चंपक’ के बारें में।(Let’s talk about our favorite children’s magazine – “Champak”.)

चंपक (Champak): पहले तो यह नाम सुन कर ही हंसी छूट जाती हैं। ‘चंपक’ भला ये कैसा नाम हैं? कई बार मोहल्ले के लड़कों को हम लोगों ने यह कहते सुना हैं ‘वो देखों चंपक जा रहा हैं’ या “क्या चंपक लग रहा हैं आज”। वैसे ‘चंपक’ का असली अर्थ तो चंपा फूल की कलियाँ होती हैं पर पता नहीं इतिहास में कैसे इसे हास-परिहास से जोड़ दिया गया। “आज की ताज़ा खबर” नामक फिल्म में असरानी जी का किरदार का नाम भी ‘चंपक भूमिया’ था। ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ फेम ‘चंपक चाचा’ भी कई वर्षों से टीवी पर हमें मनोरंजन प्रदान कर रहें हैं। सच कहूँ तो चंपक पत्रिका से हम लोगों के तार भी जुड़े हैं क्योंकि बच्चों में दो -चार दशक पहले यह बेहद लोकप्रिय थीं और हम सभी ने कभी ना कभी इसे पढ़ा ज़रूर होगा। अच्छी बात तो ये रही की चंपक अपने समकालीन प्रकाशनों से छपने वाली बाल पत्रिकाओं की तरह ठप्प नहीं हुई और आज भी वर्तमान दौर में लगातार प्रकाशित हो रही हैं। चंपक की कहानियाँ ‘चंपकवन’ के रहवासियों के इर्द-गिर्द घूमती थीं जो की हम जैसे मनुष्य ना होकर बस जानवर थें, हालाँकि पाठक उन्हें मनुष्यों के कपड़ों में पाते। यह एक बड़ी ही सुंदर काल्पनिक दुनिया थीं जहाँ हम लोगों का सुनहरा बचपन बीता हैं।

Champak Magazine
Champak Magazine

चंपक की शुरुवात हुई वर्ष 1968 में जब दिल्ली प्रेस से इसे पहली बार प्रकाशित किया गया। चंपक के संस्थापक और संपादक थें स्वर्गीय विश्वनाथ जी जिन्होंने दिल्ली प्रेस की स्थापना वर्ष 1939 में की थीं और यहाँ बहुत से लोकप्रिय पत्रिकाओं का प्रकाशन होता था। ‘सरिता’, ‘मुक्ता’, ग्रहशोभा, वुमन्सएरा एवं और भी अन्य मैगज़ीन। ऐसे में छोटे बच्चों के लिए भी कोई पत्रिका होनी चाहियें थी और शायद विश्वनाथ जी की इसी सोच ने जन्म दिया होगा चंपक को। चंपक को माह में दो बार प्रकाशित किया जाता था और हम इसे चंपक (हिंदी) के आवरण पर भी देख सकते हैं जहाँ कोष्ठक में प्रथम या द्वितीय लिखा होता था या अंग्रेजी में First या Second। पाठकों में चंपक की भारी मांग थीं शायद इसलिए दिल्ली प्रेस को इसे हर पंद्रह दिनों में प्रकाशित करना पड़ता होगा।

Champak Magazine - English
Champak Magazine – English

मेरी चंपक पढ़ने की शुरुवात तो शायद 4-5 मूल्य से हुई थीं और हर माह बेसब्री से इसका इंतज़ार रहता था की कब अखबार वाले भैया चंपक को लेकर आयेंगे। एक कारण यह भी था की कॉमिक्स तो बहुत जल्दी पढ़कर खत्म हो जाया करती तो पढ़ने की आदत बनी रहें, शौक भी पूरे हो और खर्चा भी कम से कम इसलिए ‘चंपक’ अक्सर हम जैसे माध्यमवर्गीय घरों की शोभा बढ़ाती। कहनियों के साथ-साथ दिमागी कसरत और चित्रकथाएं भी चंपक का हिस्सा थीं तो बोरियत का सवाल ही नहीं था। चंपक को 6 भाषाओँ में प्रकाशित किया जाता था और इसकी पाठक संख्या लाखों में थीं।

Champak Magazine - Hindi
Champak Magazine – Hindi

चंपक के खंड (Blocks Of Champak)

चंपक पत्रिका में कुछ मुख्य खंड थें जैसे सुनो कहानी, ज्ञान बढ़ाओ, मजेदार चित्रकथाएं, मन बहलाओ, जानो-बूझों और गाओगुनगुनाओ। सुनों कहानी में अक्सर लेखकों की कहानियाँ प्रकाशित होती जिसमें चंपकवन का वर्णन होता एवं इन कहानियों को और दिलचस्प बनाने के लिए रंगबिरंगे चित्र भी होते। मजेदार चित्रकथाओं में “चीकू, रोबो एवं राजू और नन्हीं गिलहरी” के कारनामें भला किसे याद नहीं होंगे, एक जासूस मेंढक की चित्रकथा भी अक्सर हमें कई अंकों में देखने को मिल जाया करती थीं। ज्ञान बढ़ाओं में जहाँ ‘चंपक समाचार’ होते वहीँ मन बहलाओं में “देखों हंस ना देना और नन्हीं कलम से जैसे स्तंभ दिखते। जानों-बूझों में ‘पहेली और चित्र मिलाओं’ जैसे दिमागी कसरतें होती तो गाओगुनगुनाओं में ‘कविता या गीत’। बीच-बीच में कुछ चित्रकथा और ग्रीष्मकालीन अवकाश के विशेषांक भी होते, तो कई बार ‘गेम्स’ भी दिए जाते जिसमें आप अपनी लूडो-सांपसीढ़ी की गोटियों से उन्हें खेल पाते। चंपक में कई प्रतियोगिताओं का भी संगम था और गाहे-बगाहे अकसर कहानी की दरकार इनके द्वारा भी पूरी की जाती जिससे नए लेखकों को भी मौका मिलता और पुरूस्कार स्वरुप थोड़े पैसे भी मिल जाते।

Champak - History
Champak Magazine – History
Credits: Champak

सन 2000 के बाद चंपक भी बदला और मूल्य वृद्धि के साथ चंपक के हर अंक में मुफ्त ‘सी.डी.’ (CD) भी वितरित की जाने लगी जिसमें कई कहनियाँ और जानकारियाँ होती थीं। चंपक तो आज भी छप रही हैं लेकिन शायद अब सब कुछ बदल चुका हैं। बड़े आकर में चंपक का पुराना ‘फ्लेवर’ अब जा चुका हैं, ना चित्र पहले जैसे रहें और ना ही कहानियाँ, शायद पुराने चंपक को मज़ा वक़्त के साथ धीरे-धीरे नदारद हो गया। वैसे उनके वेबसाइट में आज भी ‘सब्सक्रिप्शन’ खुला हैं और पाठक चाहें तो इसे सीधे अपने घर पर मंगवा सकते हैं।

Champak Magazine Subscription Plan
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डिजिटल युग में सब वर्ल्ड वाइड वेब पर आ चुका हैं लेकिन हम जैसे कुछ पाठक आज भी अपनी पुरानी चंपक लेकर रविवार के दिन आराम से उसे पढ़ते हैं और गर्व से उसकी कहानियों को अपने परिवार और मित्रों में बांटते भी हैं। वो क्या हैं ना पुराने पेड़ों के पत्ते भले ही सूख जायें पर उनकी जड़ें बहुत गहरे तक जमीन में धंसी होती हैं और शायद यही प्रभाव चंपक का भी हमारे बचपन पर रहा हैं, आभार – कॉमिक्स बाइट!!

Champak Hindi August 2022 to March 2023 Pack of 6 – Children’s Hindi Magazine Latest Edition

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Comics Byte

A passionate comics lover and an avid reader, I wanted to contribute as much as I can in this industry. Hence doing my little bit here. Cheers!

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