बाल पत्रिकाएँ – नंदन और नन्हे सम्राट (Nandan & Nanhe Samrat)
बाल पत्रिकाएँ
क्या आपने बचपन में बाल पत्रिकाएँ पढ़ी है? अगर हाँ तो कौन सी?
अगर मैं अपनी बात करूँ तो ये फ़ेहरिस्त बड़ी काफी लंबी होगी. शुरुवात हुई चंदामामा से, फिर आई चंपक की बारी, इसके बाद मैंने नंदन पढ़ी, फिर बालहंस और नब्बे के दशक में सुमन सौरभ. क्योंकि मेरी खुद की कॉमिक्स और मैगज़ीन की लाइब्रेरी हुआ करती थी मोहल्ले में तो हर महीने इन्हें मंगवाना जरुरी भी होता था. इसके अलावा भी कई अन्य बाल पत्रिकाएँ थी जैसे बाल भारती, अंकल हांथी, नन्हे सम्राट, बाल भास्कर, टिंकल. हालाँकि ये मासिक पत्रिकाएँ थी पर हर महीने मैं इन्हें बदल बदल कर मंगवाता था.

इन मासिक पत्रिकाओं का मेरे जीवन में बड़ा योगदान रहा, कॉमिक्स तो मैं वैसे भी पढ़ता था पर अगर आप इन चिल्ड्रेन मैगज़ीन को देखें तो पाएंगे की इनसे काफी कुछ सीखा और समझा जा सकता है, दुसरे भाषा पर आपकी पकड़ अलग बनेगी. बाल साहित्य में इन पत्रिकाओं का खासा योगदान रहा है. धारावाहिक उपन्यास हो या फिर लघु कथाएं, कविताओं का अद्भुद संसार हो या हास्य व्यंग का चटपटा तड़का. सभी वर्ग के लिए यहाँ कुछ ना कुछ जरुर होता था.
पतन
जैसे जैसे समय चला लगभग सभी पाठक एवं प्रशंसक इन पत्रिकाओं से दूर होते गए, नए पाठक बने पर उनमें वो जुड़ाव ना था. हम आज भी कॉमिक्स पढ़ते है पर हम में से कितने नंदन, चंपक और नन्हें सम्राट पढ़ते है? वक़्त के साथ इन पत्रिकाओं ने भी काफी बदलाव देखा और अंततः वो इस प्रतिस्पर्धा में बने ना रह सके. इसका मुख्य कारण लेकिन ‘कोरोना वायरस’ ही है जिसके लिए ‘लॉकडाउन’ का पालन किया जा रहा है एवं इन पत्रिकाओं की पूछ परख एकाएक कम हो गई.

हो सकता है लॉकडाउन समाप्त होने के बाद कुछ बदलाव हों पर फ़िलहाल बाल साहित्य और बाल पात्रिकाओं का भविष्य अंधकारमय प्रतीत होता है. चंपक और सुमन सौरभ तो आज भी दिख जाते है पर कई बाल पत्रिका कई सालों से बंद पड़ी है जैसे – चंदामामा. इस महीने दो बाल पत्रिकाएँ और बंद हो चुकी है जिनका नाम है नन्हे सम्राट और नंदन. अब आगे क्या होगा इसका कोई अंदाजा नहीं है पर बच्चों को कम दाम में बढ़िया कहानियाँ, रोचक जानकारियाँ एवं मनोरंजन का जो आनंद मिलता था, वह अब धीरे धीरे इतिहास बनता जा रहा है.
नंदन (Nandan)
नंदन एक मासिक बाल पत्रिका थी जिसे हिंदुस्तान टाइम्स मीडिया द्वारा प्रकाशित किया जाता था. इसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहरलाल नेहरु जी की याद में प्रमोचित किया गया था, वर्ष था नवम्बर 1964.

नंदन में परंपरा और आधुनिकता का अच्छा संयोजन था, कहानियों, कविताओं, इंटरैक्टिव कॉलम, दिलचस्प तथ्यों और कई शिक्षाप्रद स्तंभों का मिश्रण के साथ ये करीब 5 दशकों से भारतीय बच्चों को स्वस्थ मनोरंजन प्रदान कर रहा था पर अफ़सोस अगस्त 2020 को नंदन का आखिरी अंक प्रकाशित हुआ और अब शायद ही हम इसे दोबारा प्रकाशित होता देख पाएं.

नन्हें सम्राट (Nanhe Samrat)
वर्ष 1988 को भारत में बच्चों की एक नई मासिक पत्रिका प्रोमोचित की गई थी जिसका नाम था ‘नन्हें सम्राट’. तब भारत में चंपक, बाल भारती, पराग, नंदन एवं अन्य बाल मासिक पत्रिकाओं का बोलबाला था. लेकिन अपने अनोखे और अद्वितीय सामग्री के कारण इस बाल पत्रिका ने बहुत जल्द लोगों में अपनी पैठ बना ली.

नन्हें सम्राट में कहानियों, खेल और कॉमिक्स का एक बेहतरीन संगम था जिसके लिए ये भारत की सबसे प्रीमियर बच्चों की पत्रिका बनी, यह पत्रिका बच्चे के समग्र विकास में मदद करने के उद्देश्य से ही बनाई गई थी. वृक्ष कथा, जूनियर जेम्स बांड, मूर्खिस्तान, हास्य एवं मनोरंजक वर्ग पहेलियाँ. क्या कुछ नहीं था इस पत्रिका में!

इस साल नन्हें सम्राट ने भी अपना प्रकाशन बंद कर दिया, इसका आखिरी अंक अप्रैल 2020 को प्रकाशित हुआ. लगभग ढाई दशक तक पाठकों का स्वस्थ मनोरंजन करने के बाद अब नन्हें सम्राट को भी पाठक मिलना बंद हो गए, इस दौर की कल्पना शायद किसी ने ना की थी.
कही अनकही
कोरोना वायरस, घटती लोकप्रियता और डिजिटल पायरेसी जैसे चुनौतियों के आगे कई कॉमिक्स प्रकाशक पहले ही दम तोड़ चुके है. जो बचे है वह लोग भी अब धीरे धीरे समाप्ति की ओर बढ़ रहे है. अब ना पहले जैसे पाठक है और ना ही पढ़ने का वो जुनून. हमने पाश्चात्यीकरण के चक्कर में अपने नीवं को ही भुरभुरा कर दिया जिस पर टिक पाना बहुत कठिन है.

वर्तमान इतिहास बनता जा रहा है और इसके उत्तरदायी हम खुद है और कोई नहीं. जब हम 1000 रुपये सालाना का सदस्यता शुल्क नहीं दे पाते, कभी नंदन या नन्हें सम्राट की चर्चा नहीं करते, भारत की जनसँख्या के लगभग शून्य के भी सौवें हिस्से का जो प्रतिशत बनता है उसको अगर देखें तो करीब करीब इतनी ही प्रतियाँ आज के तिथि में छापी जा रही थी, फिर ये दिन तो एक ना एक दिन तो आना ही था.

आज सोशल मीडिया पर कुछ मित्र इस बात को साझा कर रहे थे एवं अपना दुःख प्रकट कर रहे थे. मुझे भी काफी दुःख हुआ पर दुखी होने से कुछ बदलने वाला नहीं है. सोच बदलनी होगी, हिंदी के प्रति, बाल पत्रिकाओं के प्रति, कॉमिक्स के प्रति अन्यथा ‘पबजी’, ‘सोशल मीडिया’ और ‘टीवी’ जैसे साधन तो है ही. पर लोग ये नहीं समझ रहे की इन पत्रिकाओं के जगह को भर पाना बहुत मुश्किल होगा.
सोचिए, समय है अभी भी. आभार – कॉमिक्स बाइट!!
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ये मूल्य सामन्य से ज्यादा है अब जिसे भी खरीदनी है वो ज्यादा मूल्य चुका कर खरीदे या फिर बाद में इन्हें और मंहगा खरीदें! यही तो पेंच है जहाँ अब सब घूमेंगे, काश वार्षिक सदस्यता ली होती मैंने भी!! ये काश अब महंगा पड़ेगा.
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सचमुच पढ़ने का शौक काम हुए है जो दुखद लगता है। पता नहीं आने वाला भविष्य कैसा होगा , लोग कैसे पढ़ेंगे? बॉल पत्रिकाएं पहले। जी कम थी अब तो और भी कम होती जा रही है। Internet क्या निगल जाएगा सब कुछ पढ़ने पढ़ने का शौक और रिवाज़? बहुत विचारणीय है ये सब कुछ और इसपर किया जाना चाहिए बहुत कुछ ..
सही कहा ललित जी आपने, अब भविष्य तो लोगों के ही हाँथ में है. जैसा झुकाव होगा वैसे ही प्रयत्न होंगे.