बाल पत्रिकाएँ
वैसे ताे कामिक्स से मैं बचपन में ही रूबरू हाे चुका था, रंग बिरंगे चित्र और हीराे का विलेन काे पछाड़ना और जंग जीतना बड़ा रोमांचक अनुभूति देता था पर साथ ही साथ उन वर्षों मे जाे एक और अभिन्न अंग बन गया था मेरे मनोरंजन का, वाे थी बाल पत्रिकाएँ।
ये कामिक्स से अलग हाेती थीं और अलग अलग प्रारूपाें मे आती थी, जैसे चंपक का आकार छाेटा हाेता था, पाकेट साईज में, चंदामामा और लाेटपाेट उससे थाेड़ी बड़ी, नंदन और नन्हे सम्राट मध्यम साईज में और सुमन साैरभ, बालहँस जैसी मासिक पत्रिकाएँ बड़े साईज में।
इन सब पत्रिकाओं की खासियत ये थी की चंपक और लाेटपाेट जैसी पत्रिका महीने मे दाे बार आती थीं (कुछ शायद ४ बार भी) और इनमे बाेध कथा, राजा रानी, सम-सामयिक और ज्ञान कथा का भंडार हाेता था, साथ मे खेल एवं मनोरंजन की भी अलग अलग खबरें हाेती थीं, हर पत्रिका की अपनी एक खासियत थी और एक अलग पाठक वर्ग था।
मनोरंजन के साधन शायद पहले कम थे पर वे चरित्र निर्माण में बेहद सहायक भी, लघु कथाओं से सीख मिलती थी, पहेली से दिमागी कसरत, चुटकुलों से हास्य व्यंग और हंसी के फुहारे, कथा-जीवनियों से आगे बढ़ने की ललक, परी कथाओं-रहस्यमयी कहानियों से बाल मन को उड़ान, और चित्रकथा से विशुद्ध मनोरंजन। हर महीने मेरा काैतुहल बस चित्रकथा मे ही अटका रहता था, बालमन काे रंग बिरंगे पैनल बड़े भाते थे, ऐसी ही कुछ चित्रकथाओं के तस्वीर मैं नीचे संलग्न कर रहा हूँ जाे मेरे पसंदीदा रहे और साथ मे नन्हे सम्राट का आखिरी पृष्ठ जिसमें आपको अपने पसंद के सिनेमा के कलाकार काे रंगने का माैका मिलता था।
मैं खुशनसीब हूँ की कामिक्स एवं पत्रिका जगत के बड़े कलाकारों से जुड़ने का एवं उनसे कुछ सीखने का हमें माैका मिला एवं हार्दिक आभार प्रकट करना चाहूंगा हुसैन जामिन सर और सुखवंत कलसी सर का जिन्होंने हमें एक बेहतरीन बचपन दिया और एक अच्छे समाज की स्थापना करने की सीख दी. कार्टूनिस्ट नीरद जी की चित्रकथा का भी मैं बड़ा प्रशंसक रहा हूँ, सुमन सौरभ हाँथ में आते ही उनके बनाई एवं छपी हुई चित्रकथा को खोजने में मैं जुट जाता था (जहाँ तक याद है शायद सिद्धार्थ या किसी और नाम से एक जासूस था) या उनका बेहद चर्चित पात्र “मीकू”. “चीटू-नीटू” भी काफी लोकप्रिय और गुदगुदाते किरदार थे, नंदन में हर माह उनकी 1 पृष्ठ को चित्रकथा प्रकाशित होती थी जिसके जनक थे स्वर्गीय ‘सुशील कालरा’ जी.
यहाँ पर बात करूँगा बेदी सर की भी, आज भले ही बेदी सर हमारे बीच नहीं है पर उनके किरदार अमर है और हमेशा से हम सब पाठकों के दिलाें पर राज करते आ रहे है, अब भला “बाेदी वाले” एवं “हवालात मे सड़ा दूंगा” जैसे लार्जर देन लाईफ कैरेक्टर्स किसी विज्ञापन के माेहताज नहीं है, सुमित और सुनीता की चित्रकथा भी उस वक्त खासा लोकप्रिय थी.
चित्र १: पत्रिका #चंपक, चित्रकथा #चीकू
चित्र २: पत्रिका #नन्हेसम्राट, #आपहैचित्रकार
चित्र ३: पत्रिका #सुमनसाैरभ, चित्रकथा #सुमितऔरसुनिता
चित्र ४: पत्रिका #लाेटपाेट, चित्रकथा #जाँबाजदेवा
वैसे तो बाल पत्रिकाओं का दौर बहोत लम्बा चला और आगे भी चलेगा पर वक़्त के हिसाब से अभी मांग में कमी आई है, जहाँ पहले लाखों में प्रतियां छपती थी वो अब हजारों में पहुँच चुके है, अब भविष्य के गर्त में क्या है वो इसे पढने वाले ही बता सकते है. अगर इन्हें बढ़ावा न मिला तो हिंदी मासिक बाल पत्रिका का वो दौर शायद धीरे धीरे तकनीक के आगोश में समां जायेगा, इसलिए अगर आप किसी बच्चे को उपहार देना चाहते है तो इन पत्रिकओं और कॉमिक्स से बेहतर कुछ नहीं हो सकता!
अंत में यही कहूँगा की अपने बच्चों, आस पास के किशोर छात्र छात्राओं काे ये समझाइश दें की मात्र स्मार्ट फाेन मे ही पूरी दुनिया नहीं बसी है और इन क्रिएटिव्स के अनाेखे संसार मे एक बार रुचि लेकर देंखें, विश्वास से कहता हूँ की आप जरूर कुछ अच्छा सीख पाएँगे, एक नजरिया बनेगा जाे की मानसिक एवं बौद्धिक विकास मे बहुत सहायक हाेता है, आप लाेगाें के बचपन मे इन पत्रिकाओं का क्या याेगदान रहा इसकी टिप्पणी आप कमेंट सेक्शन मे कर सकते है एवं ये लेख आपकाे कैसा लगी ये भी मुझे जरूर बताइए। आभार – कॉमिक्स बाइट।
बाल साहित्य एवं पत्रिकओं का इतिहास विकिपीडिया पर उपलब्ध है, नीचे दी गई सूची वहीँ से प्राप्त की गई है, कुछ अच्छा पढना चाहते है तो उसे भी एक बार जरुर पढ़िए! (बाल पत्रकारिता)
1960 के बाद प्रकाशित हुई बाल पत्रिकाओं की सूची क्रमवार:
- फुलवारी (१९६१)
- बाल लोक (१९६१)
- बाल दुनिया (१९६१)
- बेसिक बाल शिक्षा (१९६१)
- बाल वाटिका (१९६२)
- रानी बिटिया (१९६२)
- शेरसखा (१९६३,
- नन्दन (१९६४)
- मिलिन्द (१९६४)
- जगंल (१९६५)
- बाल प्रभात (१९६६)
- चमकते (१९६६)
- सितारे (१९६६)
- शिशु बन्धु (१९६७)
- बाल जगत (१९६७)
- बच्चों का अख़बार (१९६७)
- बालकुंज (१९६८)
- चंपक (१९६८)
- ज्ंंत्त्क (१९६८)
- लोटपोट (१९६९)
- नटखट (१९६९)
- चन्द्र खिलौना (१९६९)
- बाल रंग भूमि (१९७०)
- मुन्ना (१९७०)
- गोल गप्पा (१९७०)
- नगराम (१९७२)
- बच्चे और हम (१९७२)
- चमाचम (१९७२)
- गुरु चेला (१९७३)
- हँसती दुनिया (१९७३)
- गुड़िया (१९७३)
- किशोर (१९७३)
- मिलन्द (१९७३)
- बाल बन्धु (१९७३)
- प्यारा बुलबुल (१९७४)
- लल्लू पंजू (१९७५)
- शावक (१९७५)
- बालेश (१९७५)
- बाल रुचि (१९७५)
- देवछाया (१९७५)
- बाल दर्शन (१९७५)
- शिशुरंग (१९७७)
- कलरव (१९७७)
- आदर्श बाल सखा (१९७७)
- ओ राजा (१९७७)
- बाल साहित्य समीक्षा (१९७७)
- बाल पताका (१९७८)
- मुसकराते फूल (१९७८)
- बालकल्पना (१९७९)
- मेला (१९७९)
- देव पुत्र (१९७९)
- राकेट (१९८०)
- बालमन (१९८०)
- बाल रत्न (१९८०)
- कुटकुट (१९८१)
- नन्हें तारे (१९८१)
- नन्हीं मुस्कान (१९८१)
- नन्हें मुन्नों का अखबार (१९८१)
- द चिल्ड्रन टाइम्स (१९८१)
- आनन्द दीप (१९८२)
- बाल नगर (१९८२)
- चन्दन (१९८२)
- लल्लू जगधर (१९८२)
- सुमन सौरभ (१९८३)
- किलकारी (१९८५)
- उपवन (१९८५)
- चकमक (१९८५)
- बाल कविता (१९८५)
- अच्छे भैया१९८६)
- नये फूल धरती के (१९८६)
- बालहंस (१९८६)
- बालमंच (१९८७)
- नन्हें सम्राट (१९८८)
- किशोर लेखनी (१९८८)
- बाल मेला (१९८९)
- बाल विवेक (१९८९)
- समझ झरोखा (१९८९)
- यू.पी.नन्हा समाचार (१९८९)
- हिमांक रतन (१९७७)
- बाल मिलाप (१९९८)
- बाल प्रतिबिम्ब (२००३)
- बाल युग (2014)