आर्टिस्ट चित्रा (चंदामामा): कॉमिक्स बाइट आर्काइव्ज
चंदामामा की शुरुवात जुलाई 1947 को हुई, पहले संस्करण तेलेगु और तमिल भाषा में छपे, उसके बाद हिंदी का संस्करण अगस्त 1949 को बाज़ार में आया, चंदामामा को और भी कई अन्य भाषाओँ में छापा गया (लगभग 13) एवं इसके 2 लाख से ज्यदा पाठक रहे, इसके जनक रहे एन नागी रेड्डी एवं उनके खास मित्र चक्रपानी जो इसके मुख्य संपादक भी रहे, नागी रेड्डी जी आगे चलकर फिल्म निर्माता बन गए और साउथ की कई फिल्मों का निर्माण किया एवं कुछ एक हिंदी फिल्म का भी जिसमे से सबसे चर्चित थी “जूली”. चंदामामा शायद सबने पढ़ी हो, सन 2013 में इसका आखिरी अंक प्रकाशित हुआ और फिलहाल अभी प्रकाशन बंद है. मेरे ख्याल से आज से करीब 70 साल पहले ये अपने तरह की पहली पत्रिका होगी, जिसने बच्चों का स्वस्थ मनोरंजन किया.
चंदामामा की कहानियां माइथोलॉजी, किवदंतियों, लोक-साहित्य और भारत के गौरवपूर्ण इतिहास पर आधरित होती थी और इसका मुख्य आकर्षण होता था इसका आवरण यानि की कवर पेज, बचपन में मेरी दादी ने जब पहली बार चंदामामा मुझे पकड़ाई तो मै उसके कवर को देखकर मंत्रमुग्ध हो गया, अद्भुद रंगों से सजा वो कवर शायद 1988 के आस पास का होगा जिसमे “श्री कृष्ण” एक हाँथ में बंसी पकडे खड़े है और दुसरे में डमरू. तब पढना तो नहीं आता था पर चित्र देख कर खुश हो जाते थे, वो अंक(हिंदी) आज भी है मेरे पास हालाँकि हालत इतनी अच्छी नहीं है, चित्र उपर संग्लन है गूगल की कृपा से बस भाषा अलग है.
चंदामामा में एक से बढ़कर एक आर्टिस्ट थे जो उसके आधारस्तंभ भी कहे जा सकते है, उनमे से खास थे शंकर, चित्रा, एम टी वी आचार्य और वापा, मेरे पसंदीदा तो शंकर जी और वापा जी का ही आर्टवर्क है (बिलकुल वास्तविक जैसा) लेकिन यहाँ आज बात होगी “चित्रा” जी की जिन्हें मैं अगर भारत की पहली महिला चित्रकार कहूँ जिन्होंने कॉमिक्स या बाल पत्रिका में काम किया है तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, हालाँकि इस तथ्य को जांचना कठिन है. बहरहाल चित्रा जी के कुछ आर्टवर्क मुझे देखने को मिले जिसे मै आप लोगों से साझा कर रहा हूँ, उन्होंने ज्यदातर इलस्ट्रेशन अंदर के पृष्ठों पर जो कहानी होती है उसके अनुरूप ही बनाये है लेकिन मुझे कुछ मुख्य पृष्ठ और बैक कवर भी देखने को मिले, तो आनंद लीजिये आज से कुछ 65 पहले के शानदार चित्रकारी का.
अंदर के पृष्ठों के चित्र नीचे संलग्न है. (आर्टिस्ट: चित्रा, साभार: इन्टरनेट आर्काइव्ज)
चित्रा जी चंदामामा की चीफ आर्टिस्ट हुआ करती थी और उन्हें वेतन के रूप में 350 रूपए मिलते थे! एक समय तो शंकर जी और चित्रा जी में एक खास तरह ही प्रतिद्वंदिता भी थी, लेकिन बाद में दोनों अच्छे दोस्त बन गए. नागा रेड्डी जी के अनुसार “चित्रा और शंकर चंदामामा के दो बैल हैं। दोनों के बिना, बैलगाड़ी गाँव तक नहीं पहुँच सकती” – [द हिन्दू से]. तो मित्रों हमे कमेंट सेक्शन में बताइए अगर आपके पास उनकी और कोई जानकारी हो तो.
कवर पेज आर्टवर्क्स
मेरी जो पसंदीदा है वो है उनके द्वारा बनाये गए बैक कवर्स, जानवरों के इतने सुंदर इलस्ट्रेशन बहोत ही कम देखने को मिलते है. (कलर्ड गैलरी)
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