लघु कॉमिक्स समीक्षा – रहस्यमय नकाबपोश – मनोज कॉमिक्स (One Shot Review – Rahasyamay Nakabposh – Manoj Comics)
मनोज कॉमिक्स द्वारा प्रकाशित कॉमिक्स “रहस्यमय नकाबपोश” की लघु समीक्षा (Unraveling the Mystery: Review of The “Rahasymay Nakabposh” by Manoj Comics)
मनोज कॉमिक्स (Manoj Comics) को किसी परिचय की ज़रूरत नहीं हैं, भले ही आज के युवाओं को इस प्रकाशन के बारें में अधिक जानकारी उपलब्ध ना हो पर इसके लिए बस इतना कहना ही काफी होगा की रेयर और विंटेज कॉमिक्स संग्रह करने वाले कलेक्टर्स की यह पहली पसंद हैं। अपनी सदाबहार चित्रकथाओं के लिए इसे याद किया जाता रहा हैं और हाल के वर्षों में इसके कुछ अंक एक बार फिर से पुन: मुद्रित हुए हैं। इसके कई प्रसिद्ध किरदार रहें जैसे राम-रहीम, त्रिकालदेव, तूफ़ान, इंद्र, हवलदार बहादुर और क्रुकबांड, जिसे कई दशकों तक पाठकों ने अपना स्नेह एवं प्रेम दिया लेकिन इस प्रकाशन की एक खास बात थीं इसके ‘वन शॉट’ कॉमिक्स जिनमें हॉरर, कॉमेडी या राजा-रानी वाली कहानियाँ होती थीं। आपको भले ही इस बात का एहसास ना हो पर इन कॉमिक बुक्स की एक ‘कल्ट’ फॉलोइंग थीं और आज भी हैं। एक ऐसी ही चित्रकथा प्रकाशित हुई थीं मनोज कॉमिक्स में जिसका नाम हैं ‘रहस्मय नकाबपोश’ (Rahasyamay Nakabposh) और इस कॉमिक्स की सबसे विशेष बात हैं इसकी सादगी! इस कॉमिक्स का संख्या क्रमांक था 891 और इसका मूल्य था मात्र 7/- रूपये। जो था मनोरंजन का स्वस्थ, सुलभ और शानदार तरीका!
कॉमिक्स समीक्षा – रहस्यमय नकाबपोश – मनोज कॉमिक्स (Short Review – Rahasyamay Nakabposh – Manoj Comics)
सीतापुर के महाराज कृतवर्मा आखेट पर निकलते हैं और उनके दल को नदी किनारें एक युवती बेदम अवस्था में नजर आती हैं। कृतवर्मा उस युवती को अपने राजमहल ले आतें हैं और राजवैध से उसका उपचार शुरू करवाते हैं। प्रारंभिक जांच के बाद पता चलता हैं की युवती की याददाश्त जा चुकी हैं इसलिए वो उसे अपने राजमहल में ही ठहराते हैं एवं युवती के माता-पिता की खोज प्रारंभ करने का आदेश अपनी सैनिक टुकड़ी को देते हैं, लेकिन काफी खोज-बीन के बाद भी सभी प्रयास असफ़ल हो जाते हैं। राजा कृतवर्मा निसंस्तान थें तो रानी से विचार-विमर्श करने के बाद वो उस युवती को अपने पुत्री के रूप में अपनाने का वचन लेंते हैं और उसका नामकरण – ‘राजकुमारी रूपतारा’ के रूप में करते हैं।
समय बीतता हैं और राजा कृतवर्मा ‘राजकुमारी’ की शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था करते हैं लेकिन राजकुमारी रूपतारा अपनी प्रतिभा से सभी गुरुजनों को अचंभित कर देती हैं। वह राज्य ही क्या जहाँ षड्यंत्र ना हो और ऐसा ही कुछ सीतापुर का सेनापति ‘कौरवसिंह’ भी चाहता हैं जिसका ध्येय हैं सीतापुर की राजगद्दी! उसके एक कुटिल षड्यंत्र को एक ‘रहस्यमय नकाबपोश’ नाकाम कर देता हैं और पड़ोसी राज्य विराटनगर के राजा ‘शत्रुपाल सिंह’ के आक्रमण का राजा कृतवर्मा और रहस्मय नाकाबपोश मिलकर कड़ा प्रतिउत्तर देते हैं। युद्ध में अंततः शत्रुपाल सिंह की हार होती हैं और उसके साथ सेनापति कौरवसिंह को भी बंदी बना लिया जाता हैं। युद्ध खेमे में नकाबपोश राजा शत्रुपाल को क्षमादान देता हैं और राजा कृतवर्मा उस नकाबपोश को अपना रहस्य उजागर करने को कहते हैं।
नकाब के उतरते ही सभी को यह ज्ञात हो जाता हैं कि यह और कोई नहीं बल्कि राजुमारी रूपतारा को देखकर हैरान रह जाते हैं और सभी उसकी भूरि-भूरि प्रशंसा भी करते हैं। सेनापति लेकिन मक्कार था और उसके सैनिक अन्य दलों में मिलें हुए थें, रात को लौटते वक़्त जब वो लोग खेमें में रुकते हैं तो मौके का फ़ायदा उठाकर कुछ सैनिक रूपतारा को नदी में बहा देते हैं। राज्य में हाहाकार मच जाता हैं और कौरवसिंह राजा कृतवर्मा एवं रानी को अपना बंदी बना लेता हैं। रूपतारा नदी में डूबती नहीं हैं और बहते बहते एक योगी परमानंद के आश्रम पहुंच जाती हैं।
योगी परमानंद को यह ध्यान आता हैं की रूपतारा पहले उसकी सेवा किया करती थीं जब वो श्री हरी विष्णु के योगसाधना में लीन थें पर अचानक ही एक दिन वो गायब हो जाती हैं। रूपतारा को होश आता हैं और फिर उसे सभी बातें ज्ञात हो जाती हैं। यह सारा खेल परमानंद के तप का था जिस कारण इंद्रदेव का सिंहासन भी डोल उठा, तब उन्होंने स्वर्ग की एक अप्सरा ‘चन्द्रमुखी’ को परमानंद के योग को भंग करने का आदेश दिया। बाद में चन्द्रमुखी अपने प्रयास में विफ़ल होती हैं एवं वो परमानंद की सेवा करने का निश्चय करती हैं। इंद्र इस बात से कुपित हो जाते हैं और चन्द्रमुखी को नदी में फेंक देते हैं जहाँ वो बाद में सीतापुर के महाराज कृतवर्मा को मिलती हैं।
परमानंद और रूपतारा को सेनापति के कुटिल चालों का पता चलता हैं और तब वो सीतापुर को घाघ शत्रुसिंह से निजात दिलाने की योजना बनाते हैं। सीतापुर में जादूगर ‘गोगा’ का चर्चा बनी हुई हैं, हर नगर वासी उसके प्रदर्शन से चकित हैं। यह खेल कुछ सैनिक देख लेते हैं और जादूगर गोगा एवं उसकी साथी को महाराज शत्रुसिंह के पास ले जाते हैं। गोगा अपने खोपड़ीनुमा यंत्र से सभी दरबारियों को जकड़ लेता हैं और बाद में इस रहस्य का पर्दाफाश होता हैं की गोगा और कोई नहीं बल्कि योगी परमानंद और उसकी साथी राजकुमारी रूपतारा हैं। राजकुमारी ‘शत्रुसिंह’ का अंत कर देती हैं और राजा कृतवर्मा एवं रानी उस दुष्ट के चंगुल से आजाद हो जाते हैं। योगी परमानंद सबको बताते हैं यह सारी माया हमारे पिछले जन्मों के तप का परिणाम हैं जो स्वयं भगवान ‘ब्रम्हा’ जी आशीर्वाद के फलस्वरूप घटित हो रहा हैं। जो हैं वो हमारे कर्मों का फल हैं और बाद में इंद्रदेव भी उन्हें हंसी-ख़ुशी जीवन-यापन करने का आशीर्वाद देते हैं एवं सीतापुर को उनका उत्तराधिकारी भी प्राप्त होता हैं।
निष्कर्ष (Conclusion)
रहस्यमय नकाबपोश की सबसे अच्छी बात यही लगी की इस कहानी का मर्म बेहद अलग हैं जिसे बड़ी ही सादगी से दर्शया गया हैं। कदम स्टूडियोज का आवरण काफी सुंदर बना हैं एवं चित्रकार प्रदीप सोनी जी ने कॉमिक्स के हर फ्रेम्स को अच्छे से दर्शया हैं। हाँ साउंड इफेक्ट्स कुछ कम किए जा सकते थें पर युद्ध में ‘टनाक’ करके तलवार टकराने की आवाज़ ना हो तो मजा नहीं आता हैं। मनोज कॉमिक्स वैसे भी अपने खास साउंड इफेक्ट्स के लिए जानी जाती थीं (ड्रैकुला के पाठक जानते हैं क्यों!)। बहरहाल इस सादगी में भी गूढ़ संदेश देने में यह कॉमिक्स सफ़ल होती हैं।
- एक राजा का पराई युवती को अपने पुत्री के रूप में अपनाना!
- युवती का अपने लालन-पालन का फ़र्ज अदा करना और यह साबित करना की लड़का हो या लड़की, सबके बराबर के अधिकार और दायित्व होते हैं!
- कर्म सबसे प्रबल होता हैं, इसलिए सद्कर्मों में अपना मन लगाना चाहिए, इसका फल अवश्य प्राप्त होता हैं! जो भी हो रहा हैं उसके पीछे भी पूर्व कर्मों का असर जरुर होता हैं!
आशा हैं पाठकों को यह समीक्षा पसंद आई होगी, आपसे फिर मिलते हैं किसी अन्य ‘वन शॉट’ कॉमिक बुक रिव्यु के साथ, आभार – कॉमिक्स बाइट!!
Manoj Comics | Sahsi Sindbad, Aalha-Udal, Neki Ka Farishta and Yamraj Ki Haar | Pack of 4 Comics