टेप रिकॉर्डर, दुर्गा पूजा और कॉमिक्स: 1993 की वो मासूमियत भरी छुट्टियाँ (Tape recorder, Durga Puja and Comics: Those innocent holidays of 1993)

सुप्रतिम जी इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में पीएचडी हैं, साथ ही साथ वें उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में शिक्षाविद और प्रशासक की भूमिका भी निभा रहे है। उत्तर पूर्वी शहर अगरतला में जन्मे, एक कॉमिक बुक प्रेमी और युवा साहित्य के प्रति रुझान रखने वाले सुप्रतिम जी भारत के उत्तरी भाग और पूर्वी भाग के साहित्य/कॉमिक बुक प्रकाशकों से समान रूप से जुड़े हुए है। सुप्रतिम जी हिंदी, बंगाली, मराठी और अंग्रेजी बोलने में सक्षम है, तथा वह अपने विचार और ज्ञान से देश के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय युवा साहित्य और कॉमिक बुक उद्योग में योगदान करने की कोशिश कर रहे हैं।

“कुछ यादें किताबों में दर्ज नहीं होतीं, बल्कि दिल के पुराने किसी कोने में बजती रहती हैं, टेप रिकॉर्डर की तरह…”
1993 की दुर्गा पूजा कई मायनों में खास थी। एक ओर देश में घटे कुछ बड़े हादसों ने लोगों को भीतर तक हिला कर रख दिया था, तो दूसरी ओर इंग्लैंड के खिलाफ भारत की ऐतिहासिक व्हाइटवॉश जीत ने हर क्रिकेट प्रेमी को एक नया उत्साह और सपना दे दिया था।

मेरे जैसे एक पूर्वोत्तर भारत के छोटे शहर अगरतला में रहने वाले कॉमिक्स प्रेमी के लिए उस साल की दुर्गा पूजा की छुट्टियाँ एक अलग ही सौगात लेकर आईं। पिछली साल रिलीज़ हुई फिल्म सातवाँ आसमान के गाने अब भी टेप रिकॉर्डर्स पर धड़ल्ले से बज रहे थे, लेकिन उस साल की सबसे बड़ी म्यूज़िकल हिट बनकर उभरी फिल्म सलामी। इस फिल्म के गाने – “चेहरा क्या देखते हो” और “तुम्हे छेड़े हवा चंचल”, हर युवा के दिल में बस चुके थे।

उस दौर में, हर मिडिल क्लास घर की शोभा हुआ करता था एक फिलिप्स का टेप रिकॉर्डर, जिसकी रीलें घूमते हुए मानो एक पूरी पीढ़ी की धड़कनों को बजा रही होती थीं। मेरी बड़ी बहन, उस उम्र में जब खुद को पूजा भट्ट समझने लगती है कोई लड़की, सलामी के गानों को दोहराते-दोहराते दीवारों पर पोस्टर चिपकाने लगी थी।

पूरे दिन पूजा पंडालों की रौनक, घर में टेप रिकॉर्डर की धुन और एक छोटे बच्चे का ऊब जाना – यही था मेरा 1993 का दुर्गा पूजा। और तब हुआ एक चमत्कारी खोज, बस 3 रूपय में मिलने वाली ही-मैन की मिनी कॉमिक्स।

डायमंड कॉमिक्स (Diamond Comics) द्वारा हिंदी में अनुवादित ही-मैन कॉमिक्स को हाथ में लेकर, धीरे-धीरे अचार की तरह चखते हुए पढ़ना, ताकि ये खुशी जल्दी खत्म न हो जाए। जैसे-जैसे कॉमिक्स के पन्ने पलटते, मैं किसी दूसरी दुनिया में चला जाता था – जहां न तो स्कूल की चिंता थी, न ही किसी मोबाइल फोन का शोर।
धीरे-धीरे वही सलामी के गाने जो उबाऊ लगने लगे थे, अब बैकग्राउंड म्यूजिक जैसे लगने लगे जैसे ही-मैन के कारनामों में एक भावनात्मक लय बन गई हो। आज जब 2025 में आराम से यूट्यूब पर सलामी के गाने सुन सकते हैं, या उम्मीद कर सकते हैं कि डायमंड कॉमिक्स के मिनी कॉमिक्स फिर से बाजार में आएं, तो भी 1993 की वो मासूमियत, वो सादगी, वो धीमे-धीमे बिताए गए पल अब शायद ही दोबारा लौटें। यादें वापस नहीं आतीं, लेकिन उन्हें लिखना, सुनना और बाँटना हमें उनके थोड़े और करीब ले जाता है। आभार!!
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