भारतीय कॉमिक्स: साहित्य की दुर्लक्षित धरोहर
Advait Avinash Sowale [अद्वैत अविनाश सोवले (मराठी ‘सोवळे’)]: अद्वैत पुणे के रहनेवाले है । उनका बचपन विदर्भ मे गुजरा। माता पिता शिक्षा के क्षेत्र मे कार्यरत होने की वजह से बचपन से ही उन्हे पढ़ने और लिखने मे विशेष रुचि रही है। घर मे बचपन से ही किताबों का मेला रहता इसकी वजह से सिर्फ मराठी ही नहीं बल्कि हिन्दी और अंग्रेजी साहित्य मे भी उनकी रुचि बढ़ती रही। अद्वैत ने रसायनशास्त्र मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की है। साहित्य मे रुचि होने के कारण उन्होने अंग्रेजी साहित्य मे स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। उनके मराठी लेख और कवितायें काफी पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी है। उनको सूचना प्रौद्योगीकी संबधित लेख और ब्लॉग आंतरराष्ट्रीय माध्यमों मे प्रकाशित हो चुके है। पुणे मेट्रो के लिए घोष वाक्य प्रतियोगिता, विज्ञान वर्ग पहेली निर्मिति प्रतियोगिता उन्होने जीती है। पिंपरी चिंचवड स्थित रामकृष्ण मोरे नाट्यगृह के रंगमच के ऊपर उन्होने लिखा हुआ सुभाषित नक्काशीत किया गया है। फिलहाल वो पुणे एक सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी मे संगणक प्रणाली गुणवत्ता विश्लेषक के पद पर कार्यरत है।
कॉमिक्स: साहित्य की दुर्लक्षित धरोहर (अद्वैत अविनाश सोवले की कलम से)
हाल ही मे के सी शिवशंकरन जी के निधन का वृत्त पढ़ा। चंदामामा बाल पत्रिका के स्थापना काल के वो आखिरी जीवित सदस्य थे। हिंदुस्तान मे शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसका बचपन चंदामामा पढे बिना गया हो। केवल चंदामामा हिन्दी ही नहीं बल्कि ग्यारह भारतीय भाषाओ मे ये प्रकाशित हुआ करता था। सात साल पहले चंदामामा का प्रकाशन बंद हो गया और इसका करीब पैंसठ साल का सफर भी समाप्त हो गया। भारत मे सभी भाषाओं मे विपुल साहित्य संपदा पहले से ही थी मगर कॉमिक्स या बाल पत्रिका के इस खंड में शुरुवात चंदामामा ने ही की और कई सालों तक कॉमिक्स याने चंदामामा यही समीकरण बना रहा।
साठ के दशक मे कुछ नए प्रकाशन आने लगे और उनमे सबसे आगे और व्यापक प्रसिद्धी प्राप्त प्रकाशन था अमर चित्र कथा। चंदामामा ने भारतीय पौराणिक, आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और साथ ही काल्पनिक कथाओं को सीधी भाषा और बाल मनोरंजन के साथ ही संस्कार एवं शिक्षा हेतु से रचित किया था। अमर चित्र कथा भी भारतीय संस्कृती कथाओं का चित्रण करता रहा है।
उसी दशक मे इंद्रजाल कॉमिक्स भी आया और जो काफी लोकप्रिय रहा। उसी के साथ ८ भाषाओं मे प्रकाशित होनेवाली और प्रसिद्ध बाल पत्रिका थी चंपक। जिसमे जंगल, जानवर, पंछी इन सबको किरदार बना कर मनोरंजन के साथ पर्यावरण प्रेम, रक्षा तथा शिक्षा का संदेश भी दिया जाता था और अभी भी यह प्रकाशित होता है।
साठ के दशक के अंत मे आयी कॉमिक्स श्रीमतीजी जिसे प्राण कुमार शर्मा जी ने ही आकार दिया था। यह एक मध्यमवर्गीय महिला शीला के इर्दगिर्द घूमती कहानियों का पिटारा था। उसी दशक के अंत तक लोटपोट, एक नया कॉमिक्स आया जो मायापुरी पब्लिकेशन ग्रुप का था।
लोटपोट मे एक किरदार था चाचा चौधरी जो प्राण कुमार शर्मा जी ने बनाया था। चाचा चौधरी एक मध्यम वर्ग का प्रतिनिधी था। एक आदमी जो किसी भी परेशानी को अपनी होशियारी से मात देता। फिर धीरे धीरे चाचा चौधरी के कई कॉमिक्स आए और उसमे बीनी याने चाचा जी की पत्नी, साबू एक परग्रह वासी जो चाचा जी के साथ ही रहता, रॉकेट चाचाजी का कुत्ता ये किरदार आये। इसके अलावा भी चाचा जी के दुश्मन राका, गोबर सिंग, धमाका सिंग की कहानियाँ भी आती रही। और भी कई छोटे छोटे किरदार इनके साथ जुड़ते गए।
इसके बाद १९७३ मे बिल्लू और कुछ सालों बाद याने करीब १९७७-७८ मे पिंकी ऐसे नए किरदार डायमंड कॉमिक्स के परिवार मे आते गए। इन किरदारो के साथ गब्दू, मोनू और बिल्लू का कुत्ता मोती जैसे छोटे छोटे और किरदार भी थे। इसी श्रृंखला मे रमन एक किरदार था जो मध्यम वर्ग का प्रतिनिधी था जो रोज़मर्रा की मुश्किलों से लड़ता।
आजकल टेलीविज़न पर दो धारावाहिकों का महासंगम करके उसका भाग दिखाया जाता है उसी तरह बिल्लू और पिंकी भी चाचा चौधरी की कहानियों में आते रहे है। सत्तर के दशक मे ‘मधु मुस्कान’ और अस्सी के दशक मे ‘टिंकल’ जैसी कॉमिक्स ने भी अपनी अलग जगह बनाई थी। टिंकल का सुप्पंदी भी एक लोकप्रिय किरदार था और अभी भी प्रकाशाधीन है।
इन हिन्दी कॉमिक्स के अलावा भी मैनड्रेक, फैंटम जैसे अंग्रेजी कॉमिक्स भी हिन्दी मे भाषांतरित होकर आने का सिलसिला जारी था। इनके अलावा चन्नी चाची, पिकलू,पलटू, अंकुर, ताऊ जी, मोटू पतलू, लंबू मोटू, मोटू छोटू, छोटू लंबू, चाचा भतीजा, मामा भांजा आदि किरदार के कॉमिक्स आये। कुछ लंबे समय तक चले तो कुछ जल्दी बंद हो गए, इन मे ज्यादा तर जीवन का विरोधाभास या प्रहसन दिखाई देता था।
फिर आए ऐसे किरदार और कहानियाँ जिन्होने कॉमिक्स विश्व मे रहस्य, मारधाड़, विज्ञान, नयी खोज और नई तकनीक को समाविष्ट किया। वो किरदार थे नागराज, अग्निपुत्र अभय, परमाणु और भी कई। जो नयी सदी के सुपर हीरो थे। वैसे महाबली शाका और फौलादी सिंह जैसे वीर योद्धा पहले से कॉमिक्स मे थे मगर इन नये सुपरहीरो ने कॉमिक्स की दुनिया मे बड़े बदलाव लाएं।
क्रूक बॉन्ड और हवालदार बहादुर नामक किरदार के कॉमिक्स ने भी काफी समय तक अच्छा मनोरंजन किया। दो किरदारों के कुछ कॉमिक्स ऐसे भी थे जिसमे दोस्ती और साहस के कारनामे होते। उनमे मुख्यत: राजन इकबाल, सागर सलीम और राम रहीम की कॉमिक्स श्रृंखला थीं। चाचा चतुरी, बांकेलाल, छुटकी, नानाजी, अटकल पटकल, अंडेराम डंडेराम आदि किरदारो के कॉमिक्स कम समय के लिए और कम संख्या मे आये मगर याद रह गये।
इन सभी कहानियों और किरदारों के लेखक और निर्माता हमेशा प्रसिद्धी से परे ही रहे। “प्राण जी”, “बेदी जी” जैसे कॉमिक बुक आर्टिस्ट को छोड़ भी दें तो बहोत ही कम लोगों का हमें पता हैं जो इस उद्योग एवं कार्यप्रणाली से जुड़े हुए है। डायमंड, राज, मनोज, राधा, तुलसी, नूतन, प्रभात, पवन, गोयल ऐसे कुछ प्रकाशन है जिन्होने इन कॉमिक्स को प्रकाशित कर चुके है या अभी भी कर रहे है।
वो एक सुनहरा दौर था। इतना नहीं पर दूरदर्शन, वीडियो गेम और वीडियो कैसेट के जमाने मे भी कॉमिक्स की लोकप्रियता कम नहीं हुई, मगर जैसे समय बदला और तकनीकी और उन्नत होती गयी तो इलेक्ट्रोनिक, इंटरनेट और मोबाईल माध्यमों ने बड़े पैमाने पर समाज पे अपना प्रभाव डालना शुरू किया कॉमिक्स की लोकप्रियता पिछड़ने लगी मगर अभी भी नये कॉमिक्स आ रहे है।
पढ़ें – क्यूँ है कॉमिक्स पढ़ना अच्छा?
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मेरा यह मानना है के पठन मनुष्य के चौतर्फा विकास का एक जरिया है और यह एक संस्कार का भाग भी है। ये संस्कार बच्चों मे डालने के लिए कॉमिक्स से बेहतर कोई साधन नहीं हो सकता। कॉमिक्स के किरदार और कथाएँ हमेशा ही समाज के बदलते मूल्य तथा व्यक्ति के आदर्शो के प्रतिबिंब हुआ करते थे और है, इसीलिए ये हमारी संस्कृती साहित्य की ही धरोहर है जो संजोना जरूरी है, आभार।
भारतीय कॉमिक बुक इतिहास से परिचय कराता रोचक आलेख। उम्मीद है अद्वैत अविनाश सोवले के ऐसे लेख आते रहेंगे।
जी जरुर, हम कोशिश करेंगे की आगे भी उनके आलेख लाएं जाएं।