बंगाल के कॉमिक जगत में छत्रपति शिवाजी महाराज का महत्व – भाग २ सदाशिव
सुप्रतिम जी इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रहे हैं , साथ ही साथ वें उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में शिक्षाविद और प्रशासक की भूमिका भी निभा रहे है. उत्तर पूर्वी शहर अगरतला में जन्मे, एक कॉमिक बुक प्रेमी और युवा साहित्य के प्रति रुझान रखने वाले सुप्रतिम जी भारत के उत्तरी भाग और पूर्वी भाग के साहित्य/कॉमिक बुक प्रकाशकों से समान रूप से जुड़े हुए है. सुप्रतिम जी हिंदी, बंगाली, मराठी और अंग्रेजी बोलने में सक्षम है, तथा वह अपने विचार और ज्ञान से देश के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय युवा साहित्य और कॉमिक बुक उद्योग में योगदान करने की कोशिश कर रहे हैं।
कॉमिक्स बाइट एक बार फिर प्रस्तुत है अपने अथिति लेखक ‘सुप्रतिम साहा’ जी के साथ और आज हम बात करेंगे हमारे पिछले लेख के अगली कड़ी – “बंगाल के कॉमिक जगत में छत्रपति शिवाजी महाराज का महत्व – भाग २ – सदाशिव” की, अगर आपने पिछला लेख नहीं पढ़ा है तो पहले उसे जरुर पढ़ लें.
पिछला भाग पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिये – “बंगाल के कॉमिक जगत में छत्रपति शिवाजी महाराज का महत्व – भाग १ संताजी घोरपड़े“
इस लेख के प्रथम भाग में हमने जाना की छत्रपति शिवजी महाराज के ऊपर बनी कॉमिक “किशोर नायक” के बारे में, जो कहानी थीं वीर योद्धा “संताजी घोरपड़े” की. इस लेख के दूसरे और आखरी भाग में आज पाठक जानेंगे एक ऐसे किरदार के बारे में जो काल्पनिक होने के बावजूद वास्तविक इतिहास में ऐसे घुलमिल गया था मानो वो सजीव हो. यहाँ हम बात कर रहे है तीक्ष्ण बुद्धि सम्पन्न भारत के चहेते डिटेक्टिव सत्यान्वेषी “ब्योमकेश बक्शी” के रचयिता, प्रख्यात उपन्यासकार ‘शरदिन्दु बंदोपाध्याय’ जी के एक और काल्पनिक किरदार “सदाशिव” के बारे में! जिसके रोमहर्षक कारनामों ने पचास के दशक के अंत में बंगाल के हर घर में सदाशिव को ब्योमकेश बक्शी के बाद चर्चित किरदारों में अव्वल दर्जा दिलाया.
सदाशिव को एक सीधे सादे मराठी युवक से एक योद्धा बनने की कहानी के रूप में ढाला गया था और कुल ५ भाग में प्रकाशित इस श्रृंखला ने अपने प्रकाशन वर्ष १९५७ से ही सफलता के झंडे गाड़ दिए. एक से बढ़कर एक दमदार किरदारों से लैस इस श्रृंखला ने पाठक जनों का मन ऐसे मोह लिया की आज ६३ साल बाद भी इसके किरदार हमारे ज़हन में वही उफान पैदा करते है जो उस समय किया होगा.
कुल ५ कहानिया है इस श्रृंखला में जो इस प्रकार है (हिंदी में अनुवादित) –
१) सदाशिव का आदिकांड
२) सदाशिव का अग्निकांड
३) सदाशिव का दौड़ (दौड़ कांड)
४) सदाशिव का हुल्लड़ कांड
५) सदाशिव का घोडा (घोडा कांड)
ये ५ कहानिया बंगाल के बिभिन्न पत्रिकाओं जैसे की मौचाक, सन्देश आदि में प्रकाशित होते रहे. गौरतलब है पद्म भूषण से सम्मानित लेखक ‘राजशेखर बासु’ जी के कहने पे ‘शरदिंदु’ जी ने पहली बार एक ऐसी ऐतिहासिक कहानी बनाने की सोची जिसमे एक योद्धा के नज़रिए से छत्रपति शिवजी महाराज के शख्सियत का आंकलन किया जा सके और लोग उन्हें जान सके, इसी बात से प्रेरित होके शरदिन्दु बंदोपाध्याय जी ने ५ कहानियो की इस महा श्रृंखला की रचना की.
हलाकि इसके कॉमिक रूपांतर का बीड़ा उठाया प्रख्यात चित्र निर्देशक ‘तरुण मजूमदार’ जी ने और अपने जादुई चित्रकारी से इस महागाथा में जान फूंकने का काम किया प्रख्यात चित्रकार बिमल दास जी ने, अपने अपार सफलता के बावजूद इस श्रृंखला के पहले ४ कहानियों के ही कॉमिक बन पाए जिसमे चौथे का काम अधूरा रहा. ये कॉमिक ‘निरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती’ जी द्वारा सम्पादित आनंदमेला मैगज़ीन में १९७९ से १९८० तक प्रकाशित होता रहा एक धारावाहिक के रूप में. कहा जाता है की शरदिन्दु बंदोपाध्याय जी ने कुल ९ कहानियों के ऊपर इस श्रृंखला की बुनियाद रखी थी पर वो ५ ही सम्पूर्ण करके जा पाए.
आइये अब नज़र डालते है इस कॉमिक श्रृंखला के कहानियो पे और जानते हैं उन किरदारों के बारे में जिनका तानाबाना शरदिंदु जी और बिमल दास जी ने बखूबी इस काल्पनिक चरित्र सदाशिव के साथ जोड़ा और रचना की एक ऐसे महागाथा की जिसे शायद भारत के कॉमिक जगत का पहला ‘पैरेलल सीरीज’ कहा जा सकता हैं.
१) सदाशिव का आदिकांड
इस कहानी में सदाशिव नाम के एक गांव के युवक के छत्रपति शिवजी महाराज के सेना में भर्ती होने की कहानी बताई जाती हैं. इस कहानी के पृष्ठभूमि के तौर पे बीजापुरी आदिलशाही फ़ौज और दौलताबाद में रह रहे मुग़ल फ़ौज के बिच के हिस्से में फंसे गांव वालो के कठिनाइयों से भरे जीवन को इस्तेमाल किया गया हैं.
२) सदाशिव का अग्निकांड
इस कहानी में सदाशिव पहली बार अपना जौहर दिखता हैं और ७००० बीजापुरी सेना से लेस्स लियाक़त खा के पुरे दल से तोरणा दुर्ग की रक्षा करता हैं. एक मासूम चरवाहे के भेष में सदाशिव इस कारनामे को अंजाम देता हैं और छत्रपति शिवजी महाराज का दिल जितने में सक्षम होता हैं.
३) सदाशिव का दौड़ (दौड़ कांड)
इस कहानी में सदाशिव के ऊपर जिम्मा आता है छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता शाहजी को बचाने का जो की आदिल शाही बीजापुरी सेना दल में तैनात थे. जब छत्रपति शिवजी महाराज ने बीजापुरी सेना के किल्ले फ़तेह करने शुरू किया तो उनको लगा की अपने बेटे की इस बगावत की वजह से उनके पिता की जान पे बन सकती हैं. महाराष्ट्र के पहाड़ी इलाको का अचूक वर्णन इस कहानी की खासियत रही.
४) सदाशिव का हुल्लड़ कांड
इस कहानी में सदाशिव को जाना होता है चाकन में स्थित संग्रामदुर्ग किल्ले पे, अपनी चतुराई के बल पे बिना किल्ले में दाखिल हुए ‘अंगारो का त्रिशूल’ बनाके संकेत के सहारे छत्रपति के विश्वस्त सेनानायक फिरंगाउजी नरसाला तक खबर पहुंचाने में सक्षम होता है सदाशिव और बिना रक्तपात के किल्ले की बागडोर चली जाती है छत्रपति के हाथों में. वापसी में अपने गांव से उसके बचपन की दोस्त कुंकु को भी अपने साथ ले आता है सदाशिव जो इस कहानी में रोमांच के साथ प्रेम का रंग भी मिलाता हैं.
अपनी जानदार लेखनी से जिस तरह शरदिन्दु जी एक काल्पनिक चरित्र को सजीव चरित्र जैसे की ‘फिरंगाउजी नरसाला’, ‘येसाजी कंक’, ‘श्रद्धेय जीजाबाई’ तथा ‘तानाजी मालुसरे’ जैसे चरित्रों के साथ एक ही माला के अलग अलग फूल की तरह पिरोते हैं वह अपने आप में अनूठा हैं.
इस श्रंखला के सफलता की वजह से श्रीजाता गुप्ता जी ने इन पांच कहानियों का अंग्रेजी अनुवाद भी किया हैं जो बैंड ऑफ़ सोल्जर्स नाम से प्रसिद्द हैं. यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा की ऐसे किरदारों की वजह से ही भारत का कॉमिक जगत भी विश्व के अन्य कॉमिक जगत के साथ एक ही श्रेणी में स्थापित होने के सम्मान की अपेक्षा करता हैं!
साभार: ‘आनंदमेला मैगज़ीन‘,’एबीपी पब्लिकेशन’ और ‘बिमल दास इलस्ट्रेशन (कवर)‘