क्रिकेट का मनोरंजन और डायमंड कॉमिक्स के ऑडियो कैसेट – (Entertainment Of Cricket And Diamond Comics Audio Cassettes)
डायमंड कॉमिक्स ऑडियो कैसेट – डायमंड कामिक्स “पुराने विज्ञापन” भाग 18 (Diamond Comics Audio Cassette & Vintage Ads)
नमस्कार मित्रों, गर्मियों के अवकाश का माहौल हैं और ऐसे में लोग अक्सर ‘फलों के महाराजा – आम’ का आनंद लेते पाएं जाते हैं। वैसे भी क्रिकेट की सरगर्मी हैं और 2023 का आई.पी.एल भी अपने अंतिम पड़ाव पर हैं लेकिन क्रिकेट भी ‘आम’ के लोभ से ना बच पाया एवं इसे और प्रसिद्धी पर ले गए अफगानी श्रीमान नवीन उल हक़ जिन्होंने भारत के प्रतिभाशाली क्रिकेटर श्री विराट कोहली से पंगा लेकर और सोशल मीडिया में ‘आम’ की पोस्ट डाल-डाल कर इसे वायरल ट्रेंड बना दिया। हाँ ये और बात हैं की दोनों खिलाडियों की टीम टूर्नामेंट से बाहर हो चुकी हैं और अब अंतिम मुकाबला चेन्नई सुपर किंग्स और गुजरात टाइटन्स के बीच हैं। सेटेलाइट टीवी ने मनोरंजन का तरीका ही वर्तमान में बदल दिया हैं और साथ ही आज का दर्शक इंटरनेट के माध्यम से कहीं भी बैठ कर इन प्रोग्राम्स/एप्प्स को अपने स्मार्टफ़ोन या टैब्स पर इस्तेमाल कर सकता हैं एवं ताजातरीन जानकारियों तक चंद पलों में पहुँच जाता हैं। आम भारत के गर्मियों में ही पाया जाता हैं और इस बात में कोई शक नहीं की यह फलों का ‘राजा’ हैं, ठीक वैसे ही जैसे ‘क्रिकेट’ जिसे भारतीय लोगों के मध्य प्रचलित सभी खेलों का सिरमौर कहा जा सकता हैं। आज तकनीक के सहारे मनोरंजन काफी सुगम हो चुका हैं लेकिन यह शौक आज का नहीं बल्कि बहुत पुराना हैं एवं बीते समय में भी लोगों ने मनोरंजन के लिए तकनीक का भरपूर इस्तेमाल किया हैं।
दीवाने तो बीतें दशकों के दर्शक भी बहुत थें क्रिकेट के, फिर वो सीआरटी टीवी हो या रेडियो में कमेन्ट्री और लाइव स्कोर सुनना। विभिन्न दौर में लोगों ने उपलब्ध साधनों का इस्तेमाल करके मनोरंजन के कोण को यथावत रखा हैं। तब कुछ इलेक्ट्रॉनिक गैजेटस थें जैसे टेप, टेपरिकॉर्डर और कैसेट प्लेयर जहाँ श्रोता अपनी पसंद के फ़िल्मी गाने या संवाद कैसेट के प्लेयर में सुन सकता था। टी-सीरीज कम्पनी के पूर्व निदेशक स्वर्गीय गुलशन कुमार ने भजन और फिल्मों के गानों के साथ-साथ इन कैसेट्स पर काफी अन्य प्रयोग भी किए और शायद इसीलिए आज भी यह कंपनी ऑडियो के क्षेत्र पर शीर्ष पर कायम हैं। दूसरी ओर डायमंड कॉमिक्स ने भी भिन्न-भिन्न नॉवेल्टी के साथ पाठकों को प्रसन्न कर रखा था, कॉमिक्स पढ़ना उस दौर का मुख्य शगल था और अगर कॉमिक्स के साथ कुछ स्टीकर या मैगनेट्स फ्री मिल जाते तो क्या की ही आनंद आता जिसे आज बताना कठिन हैं, पाठक करीने से इन्हें अपने कमरों या अलमारियों में सजाते और बड़े चाव से किसी मेहमान को इनके बारे में बताते। मैगनेट स्टीकर का वाकई में बड़ा क्रेज था उस समय में लेकिन सिर्फ क्या इनसे ही भारतीय पाठक खुश होने वाला था? उत्तर हैं नहीं क्योंकि तकनीक लगातार आगे बढ़ रही थीं और इसी के साथ आगे बढ़ना था डायमंड कॉमिक्स को भी!
कॉमिक्स के साथ कई प्रकार के स्टीकर और 3D चश्मों से तो पाठक रूबरू हो चुके थें लेकिन किसी कॉमिक्स को ऑडियो के रूप में सुनना बड़ा अनोखा था। डायमंड कॉमिक्स हमेशा से नई चीज़ों को अपनाने में आगे रहा हैं और जब पहली बार इसका ‘ऑडियो कैसेट’ (Audio Cassette) विज्ञापन पहली बार पाठकों के समक्ष आया तो एक कौतुहल जाग उठा की क्या हमारे काल्पनिक किरदार सच में ‘बातचीत’ करते और ‘एक्शन करते’ सुनाई पड़ेंगे। आज के युवा जैसे आईफ़ोन ‘फ्लेक्स’ (Flex) करते हैं ठीक वैसे ही तब कैसेट प्लेयर्स का ज़माना था और लोगों का सोनी वॉकमेन (Sony Walkman) को अपने ‘रफ़ एंड टफ’ के जींस की साइड में लगाकर घूमना एक बड़ा ‘स्टेटस’ माना जाता था। ऐसे में पाठकों को श्रोता में बदलने का एक प्रयास डायमंड कॉमिक्स ने भी किया और अपने सबसे प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट प्राण कृत किरदार ‘चाचा चौधरी’ की एक चित्रकथा को ऑडियो कैसेट के रूप में वह लेकर आएं। इन ऑडियो कैसेटस को कई कॉमिक्स के साथ मुफ्त दिया गया था।
उपर दिए गए विज्ञापन और जानकारी से यह ज्ञात होता हैं की ना सिर्फ चाचा चौधरी अपितु महाबली शाका, अग्निपुत्र अभय, फौलादी सिंह, राजन इकबाल, लम्बू-मोटू और ताउजी के कॉमिक्स भी ऑडियो फॉर्मेट में आएं होंगे और इन ऑडियो कैसेट का मूल्य 25/- रुपये था। हालाँकि जहाँ तक हमारी जानकारी हैं वह बताती हैं की इन ऑडियो कैसेट को कॉमिक्स के साथ भी मुफ्त दिया गया था। वह भी सिर्फ उन्हीं कॉमिक्स के साथ जो डाइजेस्ट के प्रारूप में उपलब्ध होती थीं एवं जिनका मूल्य 15/- से 25/- रुपये के मध्य होता था। डायमंड कॉमिक्स के ऑडियो कैसेट के उपर एक शनदार प्रसंग याद पड़ता हैं पर उसकी चर्चा किसी और दिन करेंगे।
डायमंड कॉमिक्स हमेशा वक्त के साथ आगे बढ़ा हैं, आज भले ही ऑडियो कैसेट का बाजार समाप्त हो चुका हैं और संगीत भी डिजिटल फॉर्मेट में उपलब्ध हैं। डायमंड कॉमिक्स आज भी प्रचलन में हैं पर पूर्व की तुलना में ये संख्या नगण्य मात्र हैं! आज भी कई पाठक इन्हें खरीदते हैं और इनका संग्रह करते हैं, कई कॉमिक्स के प्रकाशन भी पूरी कोशिश में लगे हैं की कॉमिक्स के कल्चर को भारत में बढ़ावा दिया जाए लेकिन इसके पाठक संख्या को बढ़ाना होगा। रील्स और टिकटोक के मायाजाल से बाहर निकलना होगा, सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ेंगे तभी एक अच्छे समाज का निर्माण हो पाएगा। चलिये अब समय हो चला क्रिकेट देखने का और आम खाने का, साथ ही शनिवार (वीकेंड) हैं तो एक कॉमिक्स पढ़ने का भी, आप इन तीनों में से क्या करने वाले हैं हमें टिपण्णी में जरुर बताएं, आभार – कॉमिक्स बाइट!!