कॉमिक्स रिव्यु: आज मरेगा स्टील
“Aaj Marega Steel” – वर्ष 1996 राज कॉमिक्स के लिए यादगार साल था, उसी वर्ष आई थी इंस्पेक्टर स्टील की कॉमिक्स – ‘आज मरेगा स्टील‘. उस वर्ष ये इंस्पेक्टर स्टील की रिलीज़ होने वाली 8वीं कॉमिक्स थी, आज सोच कर यकीन नहीं होता! इस्पेक्टर स्टील ‘राज कॉमिक्स’ में तब अपने पैर जमा ही रहा था और पाठकों का भरपूर प्यार भी उसे मिल रहा था.
धातु से बने इस ‘मैटलमैन’ के शरीर में एक इंसानी दिमाग था जो अपनों के लिए चिंतित रहता है और उनकी कद्र करता है, इस बात की पुष्टि ‘आज मरेगा स्टील’ के अंतिम पृष्ठ के आखिरी के कुछ पैनल से भी होती है, अब भले ही वो राजनगर का ‘सुपरकॉप’ हो लेकिन मानवीय संवेदनाओं से परे नहीं है.
नाम: आज मरेगा स्टील संख्या: 732, वर्ष: 1996, प्रकाशन: राज कॉमिक्स
ये राज की जनरल कॉमिक्स थी, वर्ष 1996 ‘नागराज ईयर’ में इसके बाद स्टील की एक और कॉमिक्स जिसका नाम ‘प्रोफेसर भूत’ है रिलीज़ हुई थी जो हमारी कुल गिनती को 9 तक ले जाता है. आज जब महीनों में एक कॉमिक्स भी नहीं मिल रही है तब एक ऐसे सुपरहीरो की 9 कॉमिक्स प्रकाशित करना बड़ी बात थी जिसने पाठकों में अपनी पैठ बनाना अभी शुरू ही किया था.
कॉमिक्स के कवर पे काम किया है श्री ‘दिलीप चौबे’ जी ने जो की बेहद ही कमाल का बना है, लेखक है श्री ‘हनीफ़ अजहर’ जी लेकिन कहानी का ‘प्लाट’ थोड़ा फीका लगा मुझे, चित्रकारी की है श्री ‘नरेश कुमार’ जी ने और बेहद उम्दा चित्रण किया है उन्होंने, कैलीग्राफी की है श्री ‘टी.आर.आजाद’ जी ने और संपादक है श्री ‘मनीष गुप्ता’ जी एवं इन सबके साथ है ‘युगम श्रेष्ठ’ श्री ‘संजय गुप्ता’ जी.
पेश है आज मरेगा स्टील का शानदार कवर आर्टवर्क: दिलीप चौबे जी एवं साभार राज कॉमिक्स.
प्लाट
भविष्य से आया है एक साईबोर्ग जिसका नाम है ‘रोबोकिंग’. ये बड़ा हो ताकतवर अपराधी है और चुन चुन कर राजनगर में मौजूद रोबोटिक्स से संबंध रखने वाली कंपनियों को अपना निशाना बना रहा है, इसी बीच भारत के टॉप वैज्ञानिकों की जानकारी एक विशेष कंप्यूटर से चोरी हो जाती है जिसमें डॉक्टर ‘अनीस’ का नाम भी है एवं उसने इंस्पेक्टर स्टील का निर्माण भी किया है. अनीस के उपर होता है जानलेवा हमला और स्टील उसे बचा लेता है. उस वारदात से मिलती है एक गन जी पृथ्वी की नहीं लगती, ‘स्टील और अनीस’ उस मुजरिम को पकड़ना चाहते है और यहाँ दुश्मन भी ‘स्टील और अनीस’ को मारने की फिराक में बैठा है.
कहानी
जैसा की प्लाट में बताया गया है, ‘रोबोकिंग’ इंस्पेक्टर स्टील और अनीस का दुश्मन है और भविष्य से उन दोनों को मारने आया है क्योंकि भविष्य में बस ये दोनों ही इसे टक्कर दे पायें है तो वो इन्हें अपने भूतकाल में जाकर ही मारना चाहता है, रोबोकिंग एक बेहद ही उन्नत किस्म का साईबोर्ग है जो ‘स्टील’ से भी कई गुना ज्यादा शक्तिशाली है. उसके पास बहोत से हथियार है जिनमें सबसे ज्यादा घातक है उसकी ‘लेज़र गन’. जब ‘रोबोकिंग’ ‘स्टील और अनीस’ को मार नहीं पाता तब वो इंस्पेक्टर सलमा का अपहरण कर लेता है और उन्हें बुलाता है मौत के हवाले करने के लिए, आगे क्या होता है? कैसे अनीस और स्टील इस जंग को खत्म करते है जानने के लिए आपको इस कॉमिक्स – ‘आज मरेगा स्टील’ को पढ़ना पड़ेगा.
आर्टवर्क में ‘नरेश’ जी ने निराश नहीं किया है, पटकथा के ढीलेपन को आप आर्टवर्क से दरकिनार कर सकते है. मेरी पसंद का स्टील तो यही है हालाँकि समय के साथ काफी बदलाव आये है और हाल ही में ‘राजनगर रक्षक’ सीरीज में ‘स्टील’ की बेहद दमदार भूमिका भी है. स्टील को बनाना भी मुश्किल है क्योंकि उसका शरीर ही धातु से बना है जिसमें कई सारे कंप्यूटर इंस्ट्रूमेंट लगे है और आपको हर पैनल में उसका ध्यान रखना होता है और इस कॉमिक्स में आपको वो भरपूर देखने को मिलेगा.
नागराज ईयर 1996: ये साल बेहद खास रहा, हाल ही में हम मित्र इस वर्ष चर्चा कर रहे थे तब भावनाओं से ओत प्रोत होते मन से एक आवाज आयी हमारे अतिथि लेखक श्री ‘सुप्रतिम साहा‘ जी को और उन्होंने उसे शब्दों में पिरों दिया, जाते जाते आपको बताता चलूँ की इस सेट में ‘आज मरेगा स्टील’ के साथ प्रकाशित हुई थी श्रीमान ‘योद्धा’ और वुल्फानो के राजकुमार ‘भेड़िया’ की 2इन1 ‘लड़ाके‘ और साथ ही में तंत्र और तलवार के धनी ‘भोकाल’ की ‘रेत का भोकाल‘.
ये 1996 बड़ा ही गज़ब का साल था, एक से एक धमाकेदार कॉमिक्स, नये एक्सपेरिमेंट, जो निकला वही दिलो दिमाग मे हावी हो जाये, खज़ाना सीरीज बस ख़तम ही हुआ था की टक्कर(1996), खरोंच(1996), मायाजाल(1995), राजनगर की तबाही(1996) और सजाये मौत(1996) ने दस्तक दे दी थी, प्रलय(1997), विनाश(1997), लड़ाके(1996), आई लव यू(1996), विषकन्या(1996) जैसे कॉमिक आने वाले थे, ऐसा दौर और कभी नहीं आया, 1996 और कभी नहीं आया….!!
जब मरने के बाद वापिस आये परमाणु और ले योद्धा से टक्कर,
– सुप्रतिम साहा
जब मौत के चेहरे से तो निकले कमांडो पर मिले नताशा से नफरत,
जब शेर सा दहाड़ना सीखे तिरंगा शेरो शायरी से हटकर,
तब समझना आया था छियानवे(1996)
हर साल से परे हटकर……!!”
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