कॉमिक्स बाइट – कॉमिक्स पर ‘लेबल’ और क्या सिर्फ बच्चों के पढ़ने की चीज़ है कॉमिक्स?
कीनू रीव्स खुद मार्शल आर्ट्स में पारंगत है और 55 वर्ष की उम्र में भी बिलकुल फिट है. कॉमिक्स के लिए उनका प्यार बचपन से है और उन्होंने खुद कहा है की मार्वल कॉमिक्स और डी सी कॉमिक्स के वो अभी भी प्रशंसक है. हम उन्हें फिल्मों से लेकर, विडियो गेम्स, एनीमेशन और कॉमिक्स में भी देख चुके है एवं अब तो वो कॉमिक्स के लेखक भी बन गयें है.
पढ़े हमारा लेख – नया नायक ब्र्जर्क्र
कॉमिक कॉन (Comic Con)
इस बात से ये भी साबित होता है और विदेशों में ये चलन भी है की कॉमिक्स पढ़ने या बनाने की कोई उम्र नहीं होती है, अपने अंदर छुपे नायक को पहचानना ही सही दिशा में एक सुपरहीरो होना कहलाता है.
वहां कॉमिक कॉन (Comic Con) नाम की प्रतिस्पर्धा हर साल अलग अलग शहरों में होती है जहाँ पर बड़े बड़े कॉमिक्स प्रकाशक अपने आर्टिस्ट एवं स्टाल के साथ वहां पर जमा हुए कॉमिक्स प्रशंसकों से मुखातिब होते है, कॉमिक्स एवं उनपे आधारित किरदारों पर चर्चा की जाती है. नई फिल्मों की घोषणाएँ होती है, OTT प्लेटफार्म और टीवी सीरीज़ की भी बातें की जाती है.
ये मान के चलिए की कॉमिक्स के पाठकों एवं प्रशंसकों के लिए ये एक मेले जैसा है. यहाँ पर आपको हर वर्ग, उम्र और सम्प्रदायों के लोग मिलेंगे जिन्हें कॉमिक्स जोड़ता है. लोग ‘कॉसप्ले’ बनते है (एक किरदार का रूप धारण करना, उनके जैसे हाव भाव और बोलचाल अपनाना). आपको अपने जैसे कई जुनूनी कॉमिक्स प्रेमियों से मिलने का मौका मिलेगा.
वहां पे कोई ये नहीं कहता की अरे बच्चें क्या सोचेंगे? बड़े क्या सोचेंगे? बूढ़े क्या सोचेंगे? ये मनोरंजन का जरिया है जो आपको सोचने समझने की शक्ति को और बढ़ाता है और कई बार अच्छी जानकारियां भी प्रदान करता है. भारत में भी कॉमिक कॉन कई वर्षों से आयोजित हो रहा है और पाठकगणों का बेहतरीन प्रतिसाद भी इसे मिल रहा है.
अंतर (Difference)
अंतर समझना बहोत जरुरी है…ना ना… इसे गलत शब्दों में मत समझिये, ‘कामुकता’ और ‘नग्नता’ दो अलग अलग श्रेणियां है. अब अगर आप कुछ गलत परोसेंगे तो वो लोगों को सही कहीं से भी नहीं लगेगा उदाहरण के लिए जैसे ‘नग्नता – किर्टू कॉमिक्स’, बीते दशक ‘सविता भाभी’ बहोत प्रचलित हुआ था जो की एक पोर्नो डिजिटल कॉमिक्स का प्रारूप था, शायद उस प्रकाशक को इस कार्य के लिए कानून की सख्ती भी देखनी पड़ी थी और कार्यवाही भी हुई थी. ऐसी चीज़ें जो इस समाज के लिए घातक भी थी एवं उसकी सजा भी प्रकाशन ने बराबर भुगती.
हम भारतीयों के अपने नैतिक सिद्धांत है, परंपरा है, धर्म है. आप ‘फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन’ के नाम से उससे खिलवाड़ नहीं कर सकते और इंटरनेट का गलत इस्तेमाल कर उसका दोहन नहीं कर सकते है. पर क्या सबको एक तराज़ू में तौलना सही है? बिलकुल नहीं!
आप किरदारों को भव्यता प्रदान कर सकते है, उसे मांसल और सुडौल बना सकते है, सुंदरता को दर्शा सकते है. वो गलत नहीं है और यहाँ पर सबको अपनी सीमा-रेखा का पता होना बहोत जरुरी भी है. नीचे कुछ पाश्चात्य कॉमिक्स के महिला चरित्र –
लेकिन अगर किसी प्रकाशक ने थोड़ा वयस्कों वाला आर्टवर्क बना दिया तो आप उस पर टूट पड़ेंगे की भई क्या अश्लीलता परोस रहा है? अगर ऐसा ही है तो जब देश में पोर्न बैन हुआ तो देश का युवा इतना भावुक क्यूँ हो गया और सोशल मीडिया पर क्यूँ इतना विधवा प्रलाप क्यूँ किया गया? क्यों आज लोग सस्ते हास्य व्यंग के कलाकारों को पैसे देकर सुनते है जो चटखारे लेकर माँ-बहन को याद करते है और लोग वाह वाह भी करते है! अद्भुद है ना?
क्यों आज का युवा टिक-टोक और भद्दे मीम्स के ख्यालों में खोया हुआ है? क्या इन हरकतों से उनके विचार भ्रमित नहीं होते? दिन भर प्ब्जी खेलता बच्चा रात को हार्ट अटैक से मर जाता है, तब कोई सवाल नहीं करता! लेकिन मात्र 100 से 200 रुपये देकर एक कॉमिक्स पढ़ने या खरीदने पर आपको डांट-डपट सुननी पड़ती है तो वाकई इस सोच को मेरा नमन है. कॉमिक्स पढ़ने के भी अपने फायदे है.
पढ़े – कॉमिक्स पढ़ना क्यूँ है अच्छा!
आप को एक उदाहरण देता हूँ जो राज कॉमिक्स के पायजन पोस्ट से है (वर्ष 1996) – वहां किसी मित्र ने लिखा था की उनकी जहर नामक कॉमिक्स सिर्फ इसलिए फाड़ दी गई क्योंकि उसमें स्विमिंग पूल का द्रश्य था. राज कॉमिक्स का वह जवाब ना मैंने और ना ही कई अन्य पाठकों ने भुलाया होगा – प्यारे मित्र अब हम स्विमिंग पूल के द्रश्य की जगह रेगिस्तान तो नहीं दिखा सकते ना! (कुछ ऐसी ही टिपण्णी थी).
भारत में ‘लेबल’ बहोत चर्चा में रहता है चाहे शराब हो, चाय हो या कॉमिक्स! कोई भी इसे ‘लेबल‘ लगा देता है. लोग इसे अक्सर अपने बचपन से जुड़ा पाते है लेकिन बड़ों के लिए कॉमिक्स शायद भारत में बनी ही नहीं है, ऐसा हमारे समाज के एक बड़े तबके का सोचना है!”
कॉमिक्स बाइट
डायमंड कॉमिक्स की 3D कॉमिक्स “जंगल की रानी” या सन कॉमिक्स की “अक्सा“. इन्हीं व्यस्क श्रेणियों में आती है लेकिन यकीन मानिये इसी ‘अक्सा’ कॉमिक्स की ग्रे मार्केट में कीमत कई गुना ज्यादा है, लोगों ने इसके खिलाफ कोई मुहीम चलाई हो इसका मुझे शक है.
लेबल (Label)
बच्चों के लिए बाल पत्रिकाएँ है – चंपक, नंदन, नन्हे सम्राट. युवाओं के लिए सुमन सौरभ व अन्य.इन्हें बच्चों-बच्चों का बोल कर इसकी “लेबलिंग” ना करें, कॉमिक्स हर उम्र के वर्ग द्वारा पढ़ी जाती है. इस भूल का बड़ा खामियाजा कॉमिक्स इंडस्ट्री को भुगतना भी पड़ा है पर अब पाठक वर्ग भी जागरूक हो रहा है और नए कॉमिक्स पब्लिशर जोखिम लेने से भी नहीं कतरा रहें है एवं पुराने प्रकाशक भी काफी प्रयोग कर रहे है.
इसका प्रमाण है याली ड्रीम क्रिएशन की ‘कारवां’ सीरीज़ और फिक्शन कॉमिक्स के ‘अमावास’ सीरीज़ में भी देखा जा सकता है जो ‘Mature Content‘ के सील के साथ बाज़ारों में आई थी. विदेशों में तो कई वर्षों से ये होता आ रहा है और बाकायदा कॉमिक्स की रेटिंग एजेंसी इन्हें प्रमाणित करती है की इस कॉमिक्स के पाठक वर्ग की आयु क्या होनी चाहिए!
भारत में ऐसा कब होगा पता नहीं लेकिन फूहड़ और अश्लील शब्दों के गाने और विडियो आपको रेडियो से लेकर टीवी तक में बहुतायत से देखनें मिलेंगे जिस पर आपका कोई कंट्रोल नहीं है पर कॉमिक्स गलत है, बच्चों के पढ़ने की चीज़ है, क्या सच में?
कॉमिक्स सभी पढ़ते है, ये सारे उम्र वाले लोगों पर लागू होता है. बच्चों को उनके लिए बने कॉमिक्स पढाईये जैसे अमर चित्र कथा या बिल्लू-पिंकी, वैसे ही हर उम्र और वर्ग के हिसाब से कॉमिक्स उपलब्ध है आज बाज़ार में. इसलिए इसे ‘लेबल‘ मत लगाइये नहीं तो बच्चे, युवा या वयस्क जिन्हें आज स्मार्टफ़ोन, गेम्स और यहाँ तक की पोर्न भी जिन्हें एक ऊँगली के स्पर्श पर उपलब्ध है उन्हें कॉमिक्स कैसे बिगाड़ सकती है जबकि ये भी मनोरंजन का एक साधन मात्र ही है.
सही या गलत हर क्षेत्र में मौजूद है, अपने विवेक का इस्तेमाल करें और सही का चुनाव करें, आभार – कॉमिक्स बाइट!!
कारवां हिंदी एडिशन – कॉम्बो
Caravan English Editions