चाचा चौधरी और साबू का हथौड़ा – डायमंड कॉमिक्स (Chacha Chaudhary And Sabu’s Hammer – Diamond Comics)
चाचा चौधरी (Chacha Chaudhary): कॉमिक्स के कई पात्र भारत में सृजित हुए हैं लेकिन अगर सबसे प्रसिद्ध किरदार की बात की जाए तो चाचा चौधरी से ज्यादा लोकप्रिय शायद हीकोई और होगा। चाचा चौधरी की प्रेम से लोग ‘चाचाजी’ कहकर बुलाते हैं और बड़े से बड़े मसले वो चुटकियों में हल कर देते हैं। कहते हैं की “उनका दिमाग कंप्यूटर से भी तेज चलता हैं“! अपने जुपिटर वासी मित्र साबू, टिंगू मास्टर और श्वान ‘राकेट’ के साथ उन्होंने बड़े-बड़े सूरमाओं को पटकनी दी हैं। कई कहानियों में उनकी धर्मपत्नी ‘बीनी’, पड़ोसी ‘दीपू’ और उनके हमशक्ल भाई छज्जू चौधरी भी बदमाशों से भिड़ते दिखाई देते हैं। भारत के गौरव पदमश्री ‘कार्टूनिस्ट प्राण’ द्वारा कृत चाचा चौधरी ने डायमंड कॉमिक्स से प्रकाशित होते हुए इस देश के कोने-कोने में अपनी एक विशिष्ट पहचान बन चुके हैं एवं एक काल्पनिक किरादर होते हुए भी यथार्थ में अपनी छाप पाठकों पर छोड़ने में सफल हुए हैं। कॉमिक्स, नॉवेल, बाल पत्रिकाओं से होते हुए विडियो, आडियो और फिर टीवी तक का एक लम्बा सफ़र चाचा चौधरी ने तय किया हैं और उनका एनीमेशन भी बच्चों के मध्य बेहद लोकप्रिय हुआ जिसे हंगामा टीवी और डिज्नी चैनेल ने प्रसारित किया। आज भी भारतवर्ष में चाचा चौधरी के लाखों प्रशंसक हैं और डायमंड कॉमिक्स / डायमंड टून्स जैसे प्रकाशन से लगातार इनकी चित्रकथाएं आज प्रकाशित होती रहती हैं।
चर्चा का विषय – चाचा चौधरी और साबू का हथौड़ा! (Comic Book Review – Chacha Chaudhary and Sabu’s hammer!)
चाचा चौधरी और साबू सुबह-सुबह ‘चाची’ के हांथों बनी ‘कॉफ़ी’ का आनंद ले रहे होते हैं तभी चाचीजी साबू को याद दिलाती हैं की आज उन्हें घर के सामने वाली सड़क के लिए पत्थर लाने हैं। चाचाजी ‘साबू’ के लिए उसी के डील-डौल वाला मिलता जुलता एक हथौड़ा मंगवाते हैं जिसे लेकर दोनों निकल पड़ते हैं पहाड़ तोड़ने। रास्ते में एक नेताजी साबू से अपने हथौड़े से अपनी बिल्डिंग में एक पोल गाड़ने के लिए कहते हैं जिसे चाचाजी पहले तो नकार देते हैं फिर बाद में मान जाते हैं। साबू के एक भारी-भरकम वार से वो लोहे का पोल सीधे बिल्डिंग के मध्य छेद करता हुआ जमीन तक पहुँच जाता हैं और नेताजी अपना सर पीट लेते हैं। आगे बढ़ने पर एक इंजिनियर साहेब साबू से इलेक्ट्रिकल पोल को झुकाने का प्रस्ताव देते हैं, यहाँ भी चाचाजी उन्हें किसी और से यह कार्य करवाने का सुझाव देते हैं पर इंजिनियर साहेब नहीं मानते एवं साबू ‘जय बजरंग बली’ का उद्घोष करते हुए एक बलशाली प्रहार करता हैं जिससे वो पोल सीधा पृथ्वी की गहराईयों तक पहुँच जाता हैं और वहां से ‘तेल’ का फव्वारा फूट पड़ता हैं। इंजिनियर साहेब इस द्रश्य को देखकर खुशी से उछलने लग पड़ते हैं।
थोड़ा आगे जाने पर उन्हें पहाड़ नज़र आ जाता हैं पर उसकी चोटी पर के लड़का बैठा मिलता हैं, चाचा चौधरी उस लड़के को चेतावनी देते हैं की वो वहां से हट जाए पर उस लड़के के कान में जूं तक नहीं रेंगती। साबू अपनी पूरी ताकत से उस पहाड़ की चोटी पर वार करता हैं और वह टीला लड़के को लेते हुए पास की ‘गंगा’ नदी में गिरता हैं जहाँ एक औरत अपने खोए हुए बेटे को खोजने की प्रार्थना करती हैं। सौभाग्यवश वह टीला उस औरत के पास ही गिरता हैं और वह लड़का और कोई नहीं बल्कि उसका खोया बेटा ही होता हैं। बाद में वह औरत और लड़का चाचाजी एवं साबू के पास आते हैं और उनका आभार प्रकट करते हैं।
इस कॉमिक्स में ‘साबू के हथौड़े’ के अलावा भी बहुत सी अन्य छोटी छोटी कॉमिक स्ट्रिप्स हैं जिनके चित्र और कहानी आपको हँसाएगी भी और अंत में नैतिकता का पाठ भी सिखाएंगी। कॉमिक्स का अंग्रेजी प्रिंट देखकर पता चलता हैं की इसे वर्ष 1985 में कभी प्रिंट किया गया था और इनमें से कई स्ट्रिप्स शायद हम पाठकों ने कभी नहीं देखे होंगे (किसी डाइजेस्ट में सम्मलित हो सकते हैं)। गुंडे-बदमाशों से लेकर ‘कवियों’ और डाकू तक इस कॉमिक्स के 48 पृष्ठों में अपने अनोखें अंदाज में चाचा चौधरी और साबू से टकराते नजर आते हैं। इस कॉमिक्स का मूल्य था 6/- और इसे हिंदी एवं अंग्रेजी भाषा में प्राकशित किया गया था। कॉमिक्स के अंत में डाकू की कहानी आपको चकित कर देती हैं और बंबई फिल्म उद्योग की एक चर्चित फ़िल्म की याद भी दिलाती हैं। उसकी चर्चा किसी और दिन, आभार – कॉमिक्स बाइट!!