कॉमिक्स कनेक्शन: “मुझे मौत चाहिए”, नीलेश मिश्रा (स्टोरीटेलर,स्लो कैफ़े), मानव कौल (अभिनेता,लेखक), अनुपम सिन्हा (कॉमिक बुक आर्टिस्ट) और मैं
नमस्कार दोस्तों, कैसे है आप लोग. आशा करता हूँ सभी स्वस्थ होंगे, दिवाली की तैयारियों में जुटे होंगे, त्योहारों की खास बात यही होती है की हर जगह एक खुशनुमा माहौल होता है. जगमग दीयों की रौशनी में, मिठाइयों के मिठास में और फुलझड़ी और पटाखों के संग इस उत्सव का आनंद सभी मित्रों को अपने परिवार और दोस्तों के साथ मनाना चाहिए (हाँ जहाँ पटाखों पर बैन है वहां बस दीयों और मोमबत्ती से काम चलाएं).
आज अगर आप शीर्षक देखें तो पाएंगे की वहां कई लोगों के नाम आपको दिख रहें है जैसे श्री नीलेश मिश्रा जी जो विख्यात स्टोरीटेलर है एवं स्लो कैफ़े के संचालक भी है, श्री मानव कौल जी जो भारतीय सिनेमा जगत में बतौर अभिनेता कार्यरत है और साथ ही में एक जाने माने लेखक भी, इसके अलावा यहाँ है श्री अनुपम सिन्हा जी जिन्हें शायद ही किसी परिचय की दरकार है और हम सब इन्हें सुपर कमांडो ध्रुव के रचियता के रूप में भी जानते है, यहाँ पर मैं भी मौजूद हूँ और इन सभी से कहीं ना कहीं खुद को जुड़ा देखता हूँ और अंत में यहाँ पर है ‘मुझे मौत चाहिए‘ नामक एक कॉमिक्स जो सभी ‘डॉट्स’ को कनेक्ट करती है.
सबसे पहले निलेश जी ने अपने स्लो कैफ़े में ‘गाँव कनेक्शन’ नामक एक श्रृंखला में मानव जी से विस्तृत चर्चा की जहाँ पर हम सुनते है की बचपन में अपने होशंगाबाद(मध्य प्रदेश) के प्रवास के दौरान मानव जी और उनके भाई मानस जी ‘ब्रदर्स लाइब्रेरी‘ चलाते थे जिसे उन्होंने अपने कॉमिक्स प्रेम के चलते शुरू किया था.
इसके कुछ दिन बाद स्लो कैफ़े में आते है अनुपम जी, जो निलेश जी से कॉमिक्स, सुपर कमांडो ध्रुव और भारतीय कॉमिक्स जगत पर विस्तारपूर्वक चर्चा करते है, कॉमिक्स प्रशंसकों से रूबरू होते है, काफी सवाल जवाब होते है, श्री अलोक शर्मा जी का एक छोटा कैमियों भी हम वहां देखते है. बड़ा ही मनोरंजक ‘वेबिनार’ हमें देखने को मिलता है.
कुछ दिन बाद एक बार फिर मानव जी के साथ चर्चा में निलेश जी एक ‘वेबिनार’ में सभी पाठकों, दर्शकों के सामने होते है. ‘मृत्यु’ के उपर लिखी मानव जी किताब की बात होते होते बात ‘मृत्युंजय’ यानि इंद्रजाल कॉमिक्स के ‘वेताल ‘अका’ चलता फिरता प्रेत’ (फैंटम) पर आती है. वहां मानव जी ‘निलेश जी’ को यह बताते है की ‘फैंटम’ उनके दिवंगत पिताजी का पसंदीदा किरदार था, जो की मेरे पिताजी का भी था जिन्हें मैंने इस साल के शुरुवात में एक बीमारी के चलते ‘खो’ दिया (उनकी एक पुरानी पेटी में कॉमिक्स और नॉवेल्स का खज़ाना था). खैर, चर्चा यहाँ खत्म नहीं होती और निलेश जी ‘मानव जी’ से मुखातिब होते हुए ये कहते है की हाल ही में उन्होंने स्लो कैफ़े में श्री अनुपम सिन्हा जी से काफी बातचीत की.
यह बात सुनते ही मानव जी बड़े ही रोमांचित हो जाते है और सभी के साथ अपना एक किस्सा साझा करते है, वह कहते है की अपने “बचपन में उन्होंने सुपर कमांडो ध्रुव की कॉमिक्स पढ़ी थी ‘मुझे मौत चाहिए’, जिसने उन पर अपना बड़ा प्रभाव डाला“. कॉमिक्स में ‘रूह’ नाम का एक मनुष्य जो सूखा सा हाड़-मास का बना दिखाई देता है और लोगों से खुद को मारने गुज़ारिश करता है पर कोई भी प्रयास उस पर निष्फल साबित होते है, बम-गोले, बारूद और पुलिस के हर संभव कोशिशों एवं नाकामियों के बाद आगमन होता है ध्रुव का और कहानी कई रोचक मोड़ लेते हुए अंत की ओर अग्रसर होती है.
इस कॉमिक्स को मैंने ‘एक्सचेंज’ में लिया था ‘चौरसिया एंड ब्रदर्स‘ से. ये हमारे घर के सामने वाले ग्राउंड से सीधे में रहते थे. घर से उनका ‘बैकयार्ड’ नज़र आता था. सभी घरों की सुरक्षा हेतु ‘एक ईट की दीवाल’ भी थीं जो हमारे एक कूद में यूँ नप जाए. उनके पिताजी मैनेजर थे कोल इंडिया में, दो भाई और एक बहन, माता और पिता. बड़ा ही अच्छा परिवार था, उनके घर में बड़ा कार गैराज था जहाँ पर बड़े बड़े कार्टन में राज कॉमिक्स, डायमंड कॉमिक्स, मनोज कॉमिक्स, नूतन कॉमिक्स, इंद्रजाल कॉमिक्स का जखीरा था जो गैराज में खड़ी सफ़ेद रंग की ‘फ़िएट’ कार के ठीक सामने पड़ा रहता था. अधखुले बक्सों से झांकती कॉमिकों को भला मुझ जैसा कॉमिक्स प्रेमी कैसे छोड़ सकता था और उपर से क्योंकि मैं भी ‘सुमन लाइब्रेरी‘ का संचालक था तो दोनों भाइयों में से छोटे भाई ‘शैलेन्द्र भैया’ के साथ मेरी खूब जमती थी, वो मुझसे उम्र में बड़े थे पर कॉमिक्स का जुनून हमें ‘कनेक्ट’ करता था, उनके साथ अकसर मैं कॉमिक्स एक्सचेंज करता रहता था.
उनके बंगले में हम क्रिकेट खेला करते थे और गर्मियों में छुट्टियों में एक दोपहर मैंने उनसें कॉमिक्स की मांग की, ‘मुझे मौत चाहिए’ मैं पहले ही उनके एक बक्से में ताड़ चुका था. कवर पर एक खंबे से बंधा और आग के बीच में घिरा ‘ध्रुव’ साफ़ नज़र आ रहा था. खंबे के बाजू में एक कंकालनुमा आकृति दो मानवों को मुष्टि प्रहार कर अचेत करते दिखाई पड़ रही थी एवं सामने तीन बदमाश किस्म के लोग ध्रुव को आग में जलता देख रहे थे.
श्री ‘विजय कदम’ जी के आवरण ने ही मुझे इस कॉमिक्स को पढ़ने के लिए रोमांचित कर दिया था. बहरहाल कॉमिक्स लेकर मैं घर लौटा, स्नान करके, भोजन ग्रहण कर अब मैंने तल्लीनता से मैंने कॉमिक्स के पृष्ठ पलटने चालू किए, बता नहीं सकता. मध्य प्रदेश में वैसे भी गर्मी में पारा 45 डिग्री तक यों ही पहुँच जाता है उपर से कोल माइंस का खनन और ओपन कास्ट इसे और उष्णता से भर देता है. देसी ‘नागपुरी कूलर’ अपने पूरे शबाब पर चल रहा था और मैं कॉमिक्स में कहीं खोया ‘गर्मी’ और ‘कूलर की आवाज़’ से बेखबर रूह के कारनामों में.
पिताजी की आवाज़ ने मुझे झंझोड़ा, “ऑफिस जा रहा हूँ, कुछ ठंडा बना दे”. उठने की तो कसम से बिलकुल इच्छा नहीं थी पर पिताजी का कहा भी मानना ज़रूरी था. ‘वोल्टास‘ के फ्रिज से मैंने बनाई हुई ‘रसना ऑरेंज‘ की भरी हुई बोतल निकाली, फटाफट बर्फ के दो टुकड़े ग्लास में डालकर जल्दी से रसना ‘बाबा’ को सर्व किया. मैंने देखा तब तक वो कॉमिक्स को पूरा टटोल चुके थे और अब उनकी भी रूचि उसमें जाग चुकी थी. ऑफिस जाते जाते वो मुझे कह गए आज रात को मैं भी इसे पढ़ता हूँ.
तब कॉमिक्स पढ़ने की गति मेरी तेज़ तो थी और हिंदी भी काफी अच्छी हो चुकी थी लेकिन कॉमिक्स मेरी नहीं थी और यह बात मैं जनता था, इसलिए मैं दो चार बार इसे अच्छे से देखना चाहता था. मैंने कॉमिक्स को पूरा पढ़कर समाप्त किया और इसका अंत इतना झकझोर देने वाला था की मैंने इसे अपने घर में सभी को बताया (बालमन पर प्रभाव). अनुपम जी पर देवी सरस्वती की कृपा है खासकर उनके द्वारा सृजित पात्र ‘सुपर कमांडो ध्रुव’ को जब वो लिखते एवं बनाते है तो लगता है कुछ अलग ही स्तर पर लिख रहें है. मैं तो उनका बड़ा प्रशंसक हूँ, वो किसी भी किरदार पर कार्य करें या कॉमिक्स में मेरी नज़र में वो भारत के सर्वश्रेष्ठ ‘कॉमिक बुक आर्टिस्टों’ में शुमार है.
निलेश जी के स्लो कैफ़े के द्वारा हमें काफी कुछ जानने का मौका मिला और मानव जी के कॉमिक्स प्रेम के बारें में भी हमें पता चला. अनुपम जी द्वारा कृत ‘मुझे मौत चाहिए’ एक ऐसा शाहकार है जिसे हर किसी को पढ़ना चाहिए और कॉमिक्स कलेक्टर्स के पास तो यह कॉमिक्स ज़रूर होनी चाहिए. यह कॉमिक्स एक “कनेक्शन” ही तो है जो इन सभी ‘डॉट्स’ को जोड़ता है.
‘मुझे मौत चाहिए‘ की कॉमिक्स समीक्षा भी आप लोगों के साथ बहुत जल्द कॉमिक्स बाइट पर साझा की जाएगी, क्या आपको भी इस लेख से कोई कनेक्शन जुड़ता दिखाई पड़ा, क्या आप भी इन ‘डॉट्स’ में कहीं जुड़ाव महसूस करते है. अगर हाँ तो हमें कमेंट सेक्शन में अपने विचार ज़रूर बताइये, आशा है ये संस्मरण आपको पसंद आया होगा, और हाँ रात को पिताजी ने भी कॉमिक्स को पढ़कर पूरा समाप्त किया. वो अंग्रेजी में कहावत है ना ” “Like Father, Like Son“, आभार – कॉमिक्स बाइट!!
साभार: श्री निलेश मिश्रा (स्लो कैफ़े), श्री अनुपम सिन्हा, राज कॉमिक्स