कॉमिक्स का उचित मूल्य क्या होना चाहिए? (What should be the fair price of comics?)
नमस्कार मित्रों, कॉमिक्स जगत का परिदृश्य लगातार बदलता रहता है. कभी कोई कॉमिक्स पब्लिकेशन बंद हो जाती है, कभी किसी पब्लिकेशन के 2-3 कॉमिक्स निकलने बाद दुबारा दर्शन नहीं होते, तो कुछ धीरे-धीरे अपने पब्लिकेशन को आगे ले जाते है. यहाँ पर कुछ बड़े कॉमिक्स पब्लिकेशन भी है जो लगातार कई दशकों से पाठकों का स्नेह और प्रेम प्राप्त कर रहें है पर वक्त बदलते वक़्त और गुजरते सालों के साथ कॉमिक्स का मूल्य भी बढ़ता जा रहा है क्योंकि मंहगाई दर भी समय के साथ बढ़ती है, ऐसे में एक सवाल जो आपको पाठकों, प्रशंसकों और ग्राहकों से सुनने को अक्सर मिलेगा की आखिरकार – कॉमिक्स का उचित मूल्य क्या होना चाहिए?
कॉमिक्स का उचित मूल्य क्या होना चाहिए? (What should be the fair price of comics?)
कॉमिक्स का इतिहास भारत में काफी पुराना है, इंद्रजाल कॉमिक्स और अमर चित्र कथा ने इस माध्यम को फलने फूलने में बड़ी मदद की. बाल पत्रिका चंदामामा ने तो आज़ादी के समय से पाठकों पर अपनी छाप छोड़नी शुरू कर दी थीं. उसके बाद डायमंड कॉमिक्स और मनोज कॉमिक्स ने इस दिशा में आगे कदम बढ़ाएं, बीच बीच में छोटे मोटे कॉमिक्स प्रकाशक भी आते रहे जिन्होंने समय समय पर पाठकों पर छाप छोड़ी. फिर आया बड़ा बदलाव जब राज कॉमिक्स का उदय हुआ, इनकी पहुँच और प्रशंसकों की फ़ौज भारत से लेकर नेपाल और बांग्लादेश तक फैली हुई थी. डायमंड कॉमिक्स ने भी भाषा पर ध्यान दिया और प्रादेशिक भाषाओं में कई कॉमिक्स प्रकाशित की.
नब्बें के दशक में कॉमिक्स का जबरदस्त बोलबाला रहा. जो ट्रेंड अस्सी के दशक से चल रहा था उसे प्रतियोगिताओं और अन्य फ्री गिफ्ट्स एवं नॉवेल्टी आइटम्स के माध्यम से पाठक वर्ग को अपनी ओर खींचने का प्रयास भी कॉमिक्स प्रकाशकों ने किया (इस बिंदु पर एक आलेख बहुत जल्द). बाज़ार में तगड़ा मुकाबला था और इस दौर में छोटे प्रकाशकों ने भी अच्छे तरीके से भुनाया. यकीं मानिए, तब के दौर में भी कॉमिक्स के मूल्य को लेकर इतना हाहाकार नहीं था, पता है क्यों?
क्यूंकि तब एक कॉमिक्स पाठक अपने शहर या गाँव के पुस्तकालय से 12/- रुपये या 15/- रुपये की कॉमिक्स ना खरीद कर उस रकम से अच्छी खासी पुस्तकें या कॉमिक्स पढ़ सकता था. इस कारण पुस्तकालय का भी भला होता और पाठक को भी उसकी खुराक मिल जाती. पहले के दशकों में इंद्रजाल कुछ 75 पैसे से डेढ़ रुपये तक मिला करती थी, ऐसे कई अन्य प्रकाशक भी थे जो सिर्फ विदेशी किरदारों पर कॉमिक्स निकालते थे. समय बदला, मूल्य बदले – कीमतें 2/– 2.50/- रुपये से बढ़कर 4/- रुपये -5/- रुपये-6/- रुपये-7/- रुपये-8/- रुपये-10/- रुपये-12/- रुपये-15/- रुपये-16/- रुपये-18/- रुपये-20/- रुपये-25/- रुपये और अधिकतम 40/- रुपये तक पहुंची (कोहराम – राज कॉमिक्स का मूल्य 40/- रुपये था).
सन 2000 से अमूलचूल बदलाव भी हुए. कई बड़े प्रकाशकों जैसे ‘तुलसी कॉमिक्स’ और ‘मनोज कॉमिक्स’ ने कॉमिक्स छापना जहाँ बंद कर दिया वहीँ राज कॉमिक्स धड़ाधड़ कई कॉमिकों की बौछार कर दी. मुझे याद है “राजनगर की तबाही” के लिए मुझे पिताजी को कितना मनाना पड़ा था क्योंकि वर्ष 1996 में प्रकाशित हुई इस कॉमिक्स का मूल्य तब 25/- रुपये था. इसी 20/- रुपये मूल्य के कारण मेरे हाथों से “खलनायक” और “महानायक” निकल गई थी और वर्षों बाद मुझे वो एक कॉमिक्स वाले मित्र से काफी भारी मूल्य चुका कर खरीदनी पड़ी थी. डायमंड कॉमिक्स के डाइजेस्ट भी यदा कदा ही मिलते क्योंकि 15/- रुपये से लेकर 25/- रुपये देना उस ज़माने में कोई मज़ाक नहीं था.
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सुपर कमांडो ध्रुव की “खूनी खिलौने” मैंने अपने दादी से कुछ रुपये मांगकर खरीदी थी. उस दौर में राज कॉमिक्स के डाइजेस्ट 12/- रुपये मूल्य के मिलते थे जिनमें दो कहानियाँ होती थी, मेरे कुल 3 रुपये कम पड़ गए थे और मुंह लटकाकर मुझे घर आना पड़ा. दुखी मन को दादी तुरंत ताड़ गई और अपने पोते का हाथ पकड़ कर उन्होंने मुझे “खूनी खिलौने” दिलवाई. कहने का तात्पर्य ये है की “स्ट्रगल” कल भी था और “संघर्ष” आज भी है. 75/- रुपये, 80/- रुपये, 120/- रुपये, 199/- रुपये, 220/- रुपये, 299/- रुपये, 499/- रुपये से लेकर हजारों तक में अब कॉमिक्स उपलब्ध होने लगी है, ग्राफ़िक नॉवेल आ गए है. कई छोटे बड़े प्रकाशक अब अंग्रेजी में कॉमिक्स निकाल रहें है जिनका मूल्य 120/- रुपये से 499/- रुपये तक है (जैसे फिक्शन कॉमिक्स, फेनिल कॉमिक्स, होली काऊ, याली ड्रीम क्रिएशन्स, बुल्सआई प्रेस).
समय बदला है, फ़िलहाल वर्ष 2020 चल रहा है. पूरा विश्व महामारी के चपेटे में है. महंगाई अपने चरम पर है. कागजों से लेकर छपाई में जाने वाले इंक और कलर तक की कीमतें बढ़ चुकी है. अब तो भारत के आर्टिस्ट विदेशों में और विदेशों के आर्टिस्ट भारत में भी कॉमिक्स प्रकाशकों के लिए कार्य कर रहें है. कहानी, लेआउट, स्क्रिप्ट, डिजाईन, पेंसिलिंग, इंकिंग, शब्दांकन, रंगसज्जा, और भी बहुत कुछ प्रक्रिया होती है कॉमिक्स के छप कर आपके हाँथ में आने तक. कई कॉमिक बुक आर्टिस्ट के नाम से भी कॉमिक्स बिक जाती है तो जाहिर है वो कॉमिक्स बनाने का पैसा भी अच्छा ही लेंगे.
हर इंसान इस इंडस्ट्री से जो जुड़ा हुआ है वो बहुत मेहनत कर रहा है ऐसे में आपको क्या लगता है की – कॉमिक्स का उचित मूल्य क्या होना चाहिए? जवाब आप पर छोड़ता हूँ सोचिए, समझिये और चाहे तो कमेन्ट करके अपने सुझाव भी भेजें. आभार – कॉमिक्स बाइट!!
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Manhgai badhi hui hai ye to har koi janta hai but Jab baat new publication ki ati hai to Mere khyal se 32 pages ki comics Ka mulya Adhiktam 100/- hi hona Chahiye ye na to Kam hai aur na hi bahut zyada Ab RC ki bikri bhi zyada h unki fan following bhi zyada h aur un par log trust bhi krte Hain RC buy krne s pahle ye koi Nahi sochta ki ye Achi hogi paise barbad to Nahi honge wagairah wagairah aur new publication pr logo k dimag m ye sawal pahle hi a jata h aur itna zyada price Dekh Kar bachi kuchi himmat bhi khatm ho jaati h to mere khyal se 32 pages ki comics Ka mulya Adhiktam 100/- hi ho to new publication se bhi log asani se jud sakte Hain.
Ji accha sujhav hai apka. Asha hai naye publishers is baat par gaur karenge. Kafi log comics byte refer karte hai. Aise sujhavo se unhe kam se kam ek anklan toh hoga ki buyers ke man me kya chal raha hai. Sujhav ke liye dhanywaad apka.