नब्बें का दौर और काॅमिक्स का जुनून (The nineties and the obsession with comics)
कुछ अच्छा पढें, काॅमिक्स पढ़े। (Read something good, read comics.)
कुछ काॅमिक्स को देखते ही आपका मन आनंदित हो उठता हैं। इस बात को ना समझाया जा सकता है और ना ही जताया। लेकिन एक दूसरा काॅमिक्स पढ़ने वाला पाठक इसे भलीभांति जानता हैं। कोई भी जुनून अपने उफान पर हो तो उसे रोकना बड़ा मुश्किल होता हैं और ऐसा ही समय रहा नब्बें का दशक जब क्या बच्चें, क्या बड़े, सभी कॉमिक्स की दुनिया में खोएं रहते थे। यह काल्पनिकता शायद असिलयत से कहीं बेहतर थीं और भले ही मनोरंजन के लिए ही सही हमारे भारतीय परिवार कोई ना कोई सदस्य इससे जुड़ा जरुर रहता था।
किसी काॅमिक बुक शाॅप/किराना जनरल स्टोर/स्पोर्ट्स शॉप पर इन्हें लटके हुए देखना और दूर से मंद मंद मुस्कुरा कर अपने मन में उसे खरीदने के सपने संजोना बड़ा ही आम था। अगर जेब में पूरे पैसे ना पड़े हों तो फिर लाइब्रेरीज़ में उन अंकों को खंगाला जाता था। नब्बें के दशक ने बहुत बदलाव देखें और उस दौर के बच्चे आज भी किसी को किसी भी वर्ग में टक्कर दे सकतें हैं क्योंकि उन्होंने उस बदलते समय के साथ खुद को बड़े ही निपुण तरीके से ढाला हैं। रंगीन टी.वी., रेडियो एफएम, वीडियो गेम, पर्सनल कंप्यूटर से लेकर स्पलेंडर, आरएक्स 100, पैशन जैसे बाॅईक्स का क्रेज और ना जाने क्या क्या। इतने गतिशील माहौल में भी लेकिन काॅमिक्स हमेशा खास रही और आगे भी रहेगी। काॅमिक्स या कॉमिक बुक सस्ता और स्वस्थ्य मनोरंजन का सबसे शानदार प्रयोग कहा जा सकता था और हम जैसे लाखों बच्चें इनके प्रशंसक हुआ करते थें (आज भी हैं, ही ही ही)। लाइब्रेरी की सुविधा ने इसे आमजन में और ज्यादा प्रचलित कर दिया था। 25 पैसे, 50 पैसे, 1 रूपये तक खर्च करके पाठक हंस हंस कर काॅमिक्स के बंडल घर ले जाया करते थें और पूरा परिवार इन्हें मजे से पढ़ता था। कॉमेडी, एक्शन, एडवेंचर, हॉरर और देशभक्ति से ओतप्रोत यह चित्रकथाएं सामाजिक सीख के साथ-साथ अच्छी और बुरी चीज़ों के बीच का अंतर बताती और किसी ‘दर्पण’ की तरह पाठकों को सच्चाई के पहलू से रूबरू करवाती थीं।
“मिलीमीटर भले ही सेंटीमीटर हो जाए” पर काॅमिक्स के प्रेम को नापने का कोई यंत्र आज तक बना ही नहीं और इस नायाब खोज के लिए थोड़ा सा दीवानापन बिलकुल जायज हैं। ग्रीष्मकालीन छुट्टियों में इन्हें पढ़ने का स्वाद दुगना हो जाता था। नागराज, ध्रुव, चाचा चौधरी, फैंटम और शक्तिमान ने वह शानदार बचपन हमें मुहैया करवाया जिसे आज 5G में 4K वाले वेब सीरीज़ भी न दे पाएं। चंपक, चंदामामा, नंदन एवं नन्हे सम्राट सरीखें बाल पत्रिकाओं ने कुछ वर्ष पहले तक भी अपनी प्रासंगिकता वर्तमान में हो रहें तकनीक के साथ कायम रखी थीं, पर अफ़सोस ‘कोरोना’ ने सिर्फ इंसानों की ही नहीं इन प्रकाशनों की भी ‘जान’ ली हैं और इस मार को नंदन एवं नन्हें सम्राट भी सह ना सके और वर्ष 2020 में बंद हो गए।
काॅमिक्स पढ़े, किसी को उपहार में बांटे या अपने परिवार और आस-पड़ोस के बच्चों को पढ़ाएं, उन्हें जागरूक करें। उनके मन को कल्पना की शक्ति दिजिए, असंभव कुछ भी नहीं पर राह सही होनी चाहिए। उनके पथ को दिशा दें, कुछ अच्छा पढें ‘कॉमिक्स पढ़ें‘।
तो फिर आज क्या पढ़ रहें हैं आप!! आभार – कॉमिक्स बाइट!!
यह पोस्ट डायमंड कॉमिक्स के दिवंगत पूर्व संचालक श्री गुलशन राय जी को समर्पित हैं, कॉमिक्स जगत उनके योगदान को कभी भुला ना पाएगा। उनकी पुण्यात्मा को श्रद्धांजलि एवं नमन।
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