बंगाल के कॉमिक जगत में छत्रपति शिवाजी महाराज का महत्व – भाग १ संताजी घोरपड़े
सुप्रतिम जी इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रहे हैं , साथ ही साथ वें उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में शिक्षाविद और प्रशासक की भूमिका भी निभा रहे है. उत्तर पूर्वी शहर अगरतला में जन्मे, एक कॉमिक बुक प्रेमी और युवा साहित्य के प्रति रुझान रखने वाले सुप्रतिम जी भारत के उत्तरी भाग और पूर्वी भाग के साहित्य/कॉमिक बुक प्रकाशकों से समान रूप से जुड़े हुए है. सुप्रतिम जी हिंदी, बंगाली, मराठी और अंग्रेजी बोलने में सक्षम है, तथा वह अपने विचार और ज्ञान से देश के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय युवा साहित्य और कॉमिक बुक उद्योग में योगदान करने की कोशिश कर रहे हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज, एक ऐसा नाम जिन्होंने भारतवर्ष में स्वराज की स्थापना करने के लिए अपनी पूरी ज़िन्दगी लगा दी, शायद यही वह कारण है जिसकी वजह से उनका नाम भारत के इतिहास के पन्नो में स्वर्णिम अक्षरों से हमेशा के लिए लिख दिया गया है. उनके साहस, तीक्ष्ण बुद्धि से लैस युद्ध-नीति और पराक्रम के किस्से महाराष्ट्र में ही नहीं पुरे देश भर में मशहूर हैं. बंगाल के कॉमिक्स और किशोर साहित्य जगत में भी शिवाजी राजे के ऊपर कई ऐसे महत्वपुर्ण कॉमिक्स बनी हैं जो हमें प्रेरित करते हैं . (कवर्स साभार: पिनट्रस्ट, एडिट्स-मैडक्लिक्स)
सन 1974 के अप्रैल महीने से दिसंबर महीने तक बंगाल के मशहूर देव साहित्य कुटीर प्रकाशन के सौजन्य से शुकतारा मैगज़ीन में किशोर नायक नाम की एक कॉमिक सीरीज प्रकाशित की गयी, चित्र एवं कथाशिल्पी ‘शक्तिमय विश्वास’ ने अपने सरल लेकिन सधी हुई चित्रकारी से इस ऐतिहासिक चित्रकथा में जान फूंक दी थी.”
ये कॉमिक महान मराठा योद्धा “संताजी घोरपड़े” के ऊपर आधारित हैं. कहानी बहोत ही रोचक हैं, जिसमें महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में रहने वाला किशोर संता, छत्रपति शिवाजी महाराज के सेना में भर्ती होने का सपना देखता हैं, पर उसके पिताजी म्हालोजी घोरपड़े उम्र कम होने की वजह से किशोर संता को इसकी सम्मति नहीं देते, एकबार मौका आता है और किशोर संता छत्रपति शिवाजी महाराज को प्रभावित करता हैं, उसको परखने के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज ‘किशोर संता’ को एक जंगली घोड़े ‘कैलाश’ को काबू करने के लिए कहते हैं. काफी जद्दोजहद के बाद ‘किशोर संता’ घोड़े की लगाम कसने में सफल होते हैं और उनकी कुशल युद्धकला के कुछ निदर्शन के चलते छत्रपति शिवाजी महाराज उन्हें अपनी सेना में लेने के लिए सम्मति दे देते हैं. इसके कुछ समय बाद एक मौका आता है जहाँ मुग़ल सूबेदार शाइस्ता खां के पुणे पहुंचने की खबर मिलने के पश्चात् छत्रपति शिवाजी महाराज ‘किशोर संता’ को शाइस्ता खां के किल्ले के ज़र्रे ज़र्रे से वाकिफ होने के लिए गुप्तचर बनाके भेजते हैं, गौरतलब हैं की ये वही किल्ला हैं जिसमे छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपना बचपन बिताया था.
किशोर संता शाही रसोई के एक नौकर के रूप में शाइस्ता खां के किल्ले में दाखिल होता हैं और सबका विश्वास जीतने के बाद एक दिन किल्ले के रसोई के पीछे के दरवाज़े से छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके सेना की एक टुकड़ी को लालमहल के अंदर दाखिल करवा देता हैं. कहते हैं की छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके साथी, एक शादी में आये बाराती के भेष में 5 अप्रैल 1663 को पुणे शहर में दाखिल हो पाए थे और वही से लालमहल में बिताये हुए अपने बचपन की यादों की सहायता से किल्ले की मुश्किल गलियारों से होते हुए अपने साथियो को रसोई तक ले गए थे.
हालाँकि शाइस्ता खां इस हमले से जान बचके भाग गया था पर उसके बेटे अब्दुल फतेह खां और उनके 40 सिपाहियों को छत्रपति शिवाजी महाराज और उनकी सैनिक टुकड़ी ने मार गिराया था. मराठा सेनाओं के लिए यह एक बड़ी जीत थी और यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी की इस जीत ने किशोर संता को मराठा साम्राज्य के प्रमुख सेना नायकों में से एक का दर्जा दिया और वह कहलाये “संताजी घोरपड़े”!
विशेष धन्यवाद: कॉमिक के संबंध में पूरी जानकारी प्रदान करने के लिए इंद्रनाथ बंदोपाध्याय जी का हार्दिक धन्यवाद!
उम्मीद है आपको ये लेख पसंद आया होगा, फिर मुलाकात होगी इसकी अगली कड़ी में, आभार.
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