बाल विकास में विज्ञान की उपेक्षा – आईवर यूशिअल (Ignoring Science in Child Development – Penned By Ivar Utial)
बच्चे वोट बैंक नहीं हैं! जब हम बाल विकास के बारे में बात करते हैं तो कॉमिक्स में विज्ञान को नजरअंदाज क्यों किया जाता है? (Children are not vote banks! Why science is ignored in Comics Medium when we talked about child development?)
Ravi Laitu (Ivar Utial): कृष्ण की क्रीड़ा स्थली वृन्दाबन में पले-बढ़े एवं तीर्थराज इलाहाबाद में जन्में श्री रवि लायटू जी को बचपन से ही विज्ञान के क्षेत्र में जागरूकता लाने का विचार कौंध चुका था, खासकर गरीब तबकों में विज्ञान के गूढ़ रहस्यों को बाल मन तक पहुँचाने का दृढ़ निश्चय लिए उन्होंने किशोरअवस्था में ही एक किताब प्रकाशित की जिसे पाठकों असीम स्नेह प्राप्त हुआ। बच्चों के लिए लोकप्रिय विज्ञान लेखन, जिनका मुख्य उद्देश्य अपने स्वयं के तैयार किए गए चित्र और रेखाचित्रों के माध्यम से विज्ञान को पाठकों के बाल मन स्थानांतरित करना है। इन्होने कुल 77 से भी ज्यादा किताबें लिखीं हैं जिनकी करोड़ों प्रतियाँ आज तक बेची जा चुकी हैं, इनमें सबसे चर्चित “101 साइंस गेम्स” और “101 मैजिक ट्रिक्स” रही जिसे ‘आइवर यूशियल’ के लेखकीय नाम के साथ प्रकाशित किया गया। फिलहाल रवि जी द्वारा लिखी बाल कहानियों की पुस्तक – “मेरी बाल कहानियाँ” पोथी.कॉम पर जाकर क्रय की जा सकती हैं। वो अपने ट्रेड नाम ‘आइवर युशियल’ से ही ज्यादा जाने जाते हैं जिसकी नींव वर्ष 1981 में पड़ी थी।
रवि जी द्वारा लिखित एक चर्चित लेख को आप कॉमिक्स बाइट पर भी पढ़ सकते हैं – आइवर यूशियल की कलम से: अंकुर और विज्ञान (डायमंड कॉमिक्स)
रवि जी ने लेख में नीचे अपने मन के उद्गार प्रकट किये हैं जब उनसें एक प्रशंसक (बाल मित्र/पाठक) ने “कॉमिक्स के द्वारा विज्ञान संचार” पर कुछ जनना चाहा। कॉमिक्स बाइट की मंशा भी बस इतनी है की इस पक्ष पर सरकार और अन्य संस्थानों को संज्ञान लेना चाहिए, अगर आप(पाठक) किसी को जानते है जो इस क्षेत्र में कार्यरत है तो उन लोगों तक इस विचार को अवश्य पहुंचाइए!
कॉमिक्स के द्वारा विज्ञान संचार (Science Communication Through Comics)
रवि जी कहते है – “आपने मेरी दुखती नस पर हाथ रख दिया l” सबसे पहले तो मैं इस बात के लिए आपका आभार प्रकट कर दूं कि आपने कम से कम इस योजना को बनाते समय मुझे याद तो किया वरना विज्ञान लोकप्रियकरण पर विशेषकर बच्चों से संबंधित, सरकारी/गैरसरकारी संस्थाओं के मोटे-मोटे ग्रंथ छप जाते हैं और चालीस वर्ष से इसी क्षेत्र में पूरीतरह समर्पित इस निरीह बंदे को कहीं अता-पता भी नहीं होता और जब मैं कहता हूँ कि हिंदुस्तान में केवल सम्बन्ध और संपर्क के आधार पर सफलता मिलती है, प्रतिभा और समर्पण के आधार पर नहीं तो लोगों को यह बात हजम नहीं होती l पर इनमें से कोई यह बता नहीं पाता कि मेरे प्रति बरती जाने वाली इस उपेक्षा का आखिर कारण क्या है ? अस्तु !
जहां तक विज्ञान आधारित कॉमिक्स का सवाल है, मेरा यह सपना अधूरा ही रह गया l मेरा सतत प्रयास रहा कि चित्रों के माध्यम से विज्ञान विषय पर पूरी गंभीरता के साथ रोचक व आकर्षक पुस्तको की वैसी ही शृंखला तैयार की जाए जैसी IBM ने अमर चित्रकथा के रूप में प्रस्तुत की थी l
एक ओर देखें तो दिल्ली के हिंदी प्रकाशकों में भला इतना जिगरा ही कहां धरा था, वे सब तो आपके कंधे पर बंदूक चलाना चाहते हैं और दूसरी ओर सरकारी विभागों के अफसर ठहरे पूरे बादशाह सलामत, उनके दरबार में बस कोर्निश बजाते रहिये, काम कब होगा, होगा भी या नहीं होगा, कोई नहीं बता सकता l
अतः इस माध्यम से पुस्तक श्रृंखला तैयार करने की ख्वाहिश दिल की दिल में ही रह गयी l आपने इसतरह के मेरे फीचर्स पत्र-पत्रिकाओं में स्थायी स्तंभों के तौर पर देखे होंगे जिनको मिली सफलता का फलक बहुत विशाल रहा पर फिर भी दुर्भाग्यवश ये किसी ऐसी संस्था की निगाह में नहीं आ पाए जहां से मुझे इस दिशा में कार्य करने का प्रस्ताव व प्रोत्साहन मिल पाता l अब धृतराष्ट्र की कार्य प्रणाली का अनुसरण करने वाले इन उच्च पदासीन महानुभावों को मेरा जैसा निरीह लेखक भला क्या कह सकता है l हां, इनके पक्षधर किसी प्रशंसक को मेरे कार्य के प्रति कोई शंका हो तो उसकी चुनौती मुझे स्वीकार्य है पर देशभर के लाखों बच्चों की ज़रूरतों व अपेक्षाओं के अनुरूप चाहते हुए भी सिर्फ इन बाधाओं के कारण उन्हें उपयोगी व रोचक पुस्तकें न दे पाने की मुझे जो पीड़ा है उसे समझ पाना हरेक के बस की बात कहां है भला !
दिल्ली की राष्ट्रीय साप्ताहिक फ़ीचर एजेंसी ‘कला परिक्रमा’ और देश की पहली साप्ताहिक बाल-फीचर सेवा ‘ज्ञाशिम ‘ के माध्यम से देशभर के छोटे-बड़े समाचारपत्रों में छपे ऐसे ही चित्रित स्तंभों को संकलित रूप में प्रस्तुत करती फिलहाल तो मेरे पास एक ही पुस्तक है जिसका सुझाव दिया जा सकता है आपको और वह है ” ज्ञान-विज्ञान का खजाना ” जो पुस्तक महल, दिल्ली का प्रकाशन है l
बच्चे वोट बैंक नहीं हैं! (Children are not vote banks!)
दौर चाहे कभी कांग्रेस का रहा हो या फिर आज जैसा मोदी राज, मेरे न तो कभी हालात बदले न ही ख्वाहिशें पूरी हुई क्योंकि सरकारें आती जाती रहीं पर अफ़सोस कि अपनी योजनाओं में इन्होंने मंत्रालय चाहे बाल विकास के नाम से बना दिए हों पर असलियत में में इनमें से किसी की भी नियत सच्चे मायने में कभी बच्चों के विकास की रही ही नहीं क्योंकि अगर सच में ऐसा होता तो कम से कम मेरे जैसे व्यक्ति को तो अपनी रचनाशीलता को नया आयाम देने के लिए पूरा का पूरा एक खुला आसमान मिल जाता l
पर बच्चे वोट बैंक नहीं होते इसलिए ये राजनीति के दायरे से हमेशा बाहर रहे हैं और इनके लिए बनाई गई अधिकतर सरकारी संस्थाएं का कुछ कुशल और चतुर मस्तिष्कों द्वारा अंदरूनी तौर पर अपने लाभ व सुख-सुविधाओं के लिए तथा समाज को दर्शाने के लिए और ऊपरी तौर पर बच्चों के कल्याण हेतु हमेशा से दोहन किया जाता रहा है l पद पर आसीन अधिकारी इस क्षेत्र की प्रतिभाओं को अवसर देने की जगह न केवल अपना पूरा कार्यकाल बेहद व्यवस्थित और सुनियोजित ढंग से अपना नाम चमकाने और दाम बटोरने में व्यतीत कर देते हैं वरन अपनी सेवानिवृत्ति के बाद भी इनका पूरा गुट वर्कशॉप और सेमिनार जैसे तरह-तरह के आयोजनों के नाम पर कमाई का यह षड्यंत्र पूर्ववत जारी रखता है l
ऐसे में योग्य और उपयुक्त पात्र को भला कोई बेहतर अवसर मिले भी तो कैसे और अवसरों की इसी अनुपलब्धता का परिणाम है जो चिट पुट प्रयासों की बात छोड़ दें तो विज्ञान को कॉमिक्स के रूप में या कहें कॉमिक्स को विज्ञानाधारित रूप में आज तक प्रस्तुत नहीं किया जा सका है ……ll
आपके स्नेह का एक बार पुनः आभार, आशा है यह स्नेह ऐसे ही बना रहेगा
( पहला चित्र पुस्तक का मुख्यपृष्ठ है और दूसरा वायुयान पर चित्रित फ़ीचर का पहला भाग – केवल अवलोकनार्थ )
आइवर यूशिएल (Ivar Utial)
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