डायमंड कॉमिक्स – लम्बू मोटू का उद्गम (Diamond Comics – Origin of Lambu Motu)
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सुप्रतिम जी इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रहे हैं , साथ ही साथ वें उत्तर भारत के एक प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में शिक्षाविद और प्रशासक की भूमिका भी निभा रहे है। उत्तर पूर्वी शहर अगरतला में जन्मे, एक कॉमिक बुक प्रेमी और युवा साहित्य के प्रति रुझान रखने वाले सुप्रतिम जी भारत के उत्तरी भाग और पूर्वी भाग के साहित्य/कॉमिक बुक प्रकाशकों से समान रूप से जुड़े हुए है। सुप्रतिम जी हिंदी, बंगाली, मराठी और अंग्रेजी बोलने में सक्षम है, तथा वह अपने विचार और ज्ञान से देश के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय युवा साहित्य और कॉमिक बुक उद्योग में योगदान करने की कोशिश कर रहे हैं।
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डायमंड कॉमिक्स – लम्बू मोटू का उद्गम (Diamond Comics – Origin of Lambu Motu)
भारत मेँ भले ही दसियों कॉमिक्स पब्लिकेशन आयी हो लेकिन अगर बात करते हैँ किसी किरदार के उद्गम (ओरिजिन) सीरीज को डिफाइन करने की तो राज कॉमिक्स इसमें अग्रणी रही हैँ। जहाँ बंगाल के कॉमिक्स कल्चर मेँ ओरिजिन पूर्णतया अनुपस्थित हैँ वही डायमंड कॉमिक्स के बारे मेँ भी ये कहा जा सकता हैँ। पर भारत के पसंदीदा युवा जासूस जोड़ी “लम्बू-मोटू” (Lambu-Motu) के ओरिजिन कॉमिक्स को कभी सुर्खियां बटोरने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ।
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डायमंड कॉमिक्स का प्रथम अंक
जैसा की सब जानते हैँ की “लम्बू मोटू मुर्दो की बस्ती मेँ” ना की लम्बू मोटू की बल्कि डायमंड कॉमिक्स की भी पहली कॉमिक्स हैँ।”
पर लम्बू मोटू के लम्बू मोटू बनने की दास्तां जान ने के लिए हमें 537 अंको तक इंतज़ार करना पड़ा। जी हाँ यहाँ बात हो रही हैँ “लम्बू मोटू ओर प्रतिशोध के अँगारे” कॉमिक्स की संख्या थी #537।
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डायमंड कॉमिक्स
हवलदार ‘गिरजा शंकर पांडे’ ओर हवलदार ‘विजेंद्र सिंह चौहान’ को उनके वीरता और निष्ठा के चलते लगातार पांचवी बार परम वीर चक्र तथा अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा था एवं इन्हे सब इंस्पेक्टर पद के रूप मेँ पदोन्नति भी दी जा रही थी। सब खुश थे पर दो लड़के इस ख़ुशी के माहौल मेँ भी आपसी रंजिश ओर वाद विवादों मेँ उलझें हुए थे। पांडे जी के दो पुत्र ओर एक पुत्री मेँ ज्येष्ठ पुत्र का नाम था ‘अजय पांडे’ ओर चौहान जी के दो पुत्रीयां ओर एक पुत्र में ज्येष्ठ पुत्र का नाम था ‘विजय चौहान’।
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डायमंड कॉमिक्स
पुलिस लेन ओर नेहरू एन्क्लेव मेँ रहने का सपने संजोते हुए अजय ओर विजय अपने घर की तरफ जा ही रहे थे की ज्वाला सिंह टाइगर फ़ोर्स नामक आतंकवादी गिरोह से उनकी मुठभेड़ हो जाती हैँ। स्थिति की गंभीरता को समझते हुए अजय ओर विजय जो की एन.सी.सी के टॉप कैडेट्स थे, आपसी मतभेद को भूलकर आतंकवादियों से लोहा लेते हैँ। अपनी इस हार से तिलमिला के टाइगर फ़ोर्स उसी दिन एक और आतंकवादी हमला करवाती हैँ जिसमें अजय ओर विजय दोनों के परिवार मौत के गोद मेँ समा जाते हैँ।
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अजय ओर विजय मास्टर शांईतेन के क्लब मेँ जुडो कराटे सीख रहे होते हैँ और वहां से वापिस लौटने पर इस दिल दहला देने वाली खबर को सुनके वह दोनों एक जुट होकर बदला लेने की ठान लेते हैँ। अपने ट्रेनिंग, सूझबूझ ओर बहादुरी से वो गिरोह को तबाह तो कर पाते हैँ पर बदले की भावनाओं के चलते गिरोह के सरगना की हत्या भी कर देते हैँ। सरगना के आत्मसमर्पण के गुहार को अनदेखा करने की वजह से अजय और विजय को गिरफ्तार कर लिया जाता हैँ, पर न्यायाधीश उन्हें ना सिर्फ बाइज़्ज़त बरी करते हैँ बल्कि उनको वीर चक्र से सम्मानित करने की सिफारिश भी करते हैँ।
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अब अजय-विजय ना तो दुश्मन थे ओर ना ही अपने पुराने नामों से जाने जाने वाले थे, दुनिया अब उनको कहने लगी थी – “लम्बू – मोटू “।
Similar story was for my favorite Ram Rahim whose origin was covered in Apne Desh Ka Dushman Series.
Thanks for sharing it with us.