कार्टूनिस्ट नीरद – कार्टून, कॉमिक्स & आर्ट (Cartoonist Neerad – Cartoon, Comics & Art)
नमस्कार दोस्तों, श्री नीलकमल वर्मा ‘नीरद’ या उनके प्रचलित एवं प्रसिद्ध नाम से कहूँ तो ‘कार्टूनिस्ट श्री नीरद जी‘ कल आने वाले है आपके पसंदीदा टॉक शो में। जी हाँ बिलकुल वही टॉक शो जहाँ पर हाल ही के दिनों में कई बड़े कॉमिक बुक आर्टिस्ट नजर आए और कॉमिक्स जगत का बेशुमार प्यार इसे प्राप्त हुआ। मित्रों हम बात कर रहें है कॉमिक्स थ्योरी द्वारा प्रतुस्त ‘पल्प गल्प टॉक शो’ की जो पिछले कुछ महीनों से आयोजित किया जा रहा है और जहाँ आपको नजर आ चुके है बॉलीवुड के “एक्टर/प्रोडूसर श्री अभिषेक निश्छल जी”, “कॉमिक्स, कला और संगीत जगत के जाने माने कलाकार श्री संजय अष्टपुत्रे जी”, दर्जनों कॉमिक्स के किरदार रच चुके, मधु मुस्कान और राज कॉमिक्स के लिए कार्य कर चुके एवं आचार्य ‘रजनीश ओशो’ पर फीचर फिल्म बना चुके श्री जगदीश भारती जी”। इसकी अगली कड़ी में अब कल सभी पाठकों और प्रशंसकों से मुखातिब होंगे कार्टूनिस्ट श्री ‘नीरद’ जी।
नीरद जी करीब करीब पिछले पांच दशकों से अपने कार्यों द्वारा ना सिर्फ पाठकों का मनोरंजन कर रहें है अपितु UNICEF और World Bank जैसी संस्थाओं से जुड़ कर समाज में सार्थक बदलाव लाने का भरपूर प्रयास भी कर रहें है। नेशनल अवार्ड विजेता और डेढ़ लाख से भी ज्यादा इलस्ट्रेशन बना चुके नीरद जी ने कॉमिक्स के साथ साथ बच्चों के लिए प्रकाशित होने वाली कई मासिक पत्रिकाओं में भी नियमित रूप से चित्रकथा प्रकाशित की है। नन्हें सम्राट में उनके बनाए किरदार और चित्रकथा ”करामती मीकू” को भला कौन भूल सकता है।
नीरद जी ने डायमंड कॉमिक्स के लिए कई कॉमिक्स बनाई और उनके पात्रों पर कार्य किया एवं हाल ही में उन्होंने इसे अपने फेसबुक टाइमलाइन पर साझा भी किया जिसे बाद में श्री गुलशन राय जी (डायमंड कॉमिक्स के संस्थापक) ने भी पाठकों के साथ साझा किया और नीरद जी के प्रेम एवं सम्मान के लिए आभार भी व्यक्त किया। पेश है वो लेख जिसे लिखा है आपके पसंदीदा कार्टूनिस्ट श्री ‘नीरद’ जी ने।
कैसे आया था डायमंड कॉमिक्स में! – कार्टूनिस्ट श्री नीरद जी द्वारा लिखा एक बेहतरीन आलेख
क्या दौर था वह….हर तरफ दौड़ता ही रहता था! 1978 से 1983 तक की होगी बात। पोलिटिकल कार्टून भी बनाता था, सारे अखबारों के लिए चित्रकथाएं भी बनाता था। दौड़ आकाशवाणी की भी लगाता था, पहले ‘घरौंदा’, ‘बाल मंडली’ फिर ‘युववाणी’! लघु पत्र-पत्रिकाओं ‘हुंकार’, ‘नव बिहार’, ‘वैशाली’, ‘पहुंच’ और ऐसे दर्जनों प्रकाशनों के लिए मुफ्त में लिखता-छपता। उनके स्तंभों के लिए लकड़ी के ब्लॉक भी बनाता। कवि गोष्ठियों में भी भाग लेने का दांव नहीं छोड़ता। राष्ट्रीय स्तर की बड़ी पत्रिकाओं के लिए छोटे कार्टून बनाता, खूब! क्रिकेट और पढ़ाई तो थी ही…कहीं फ्री कहीं सपारिश्रमिक! पूरा धुरंधर था। छूटे न कुछ, यही सवाल था।
पटना में ऐतिहासिक बाल पत्रिका ‘बालक’ पुस्तक भंडार, हिमालय प्रेस से छपती थी। बहुत अच्छी थी पत्रिका, लेकिन वर्षों से प्रकाशन बंद है। कभी आचार्य शिवपूजन सहाय उसके संपादक थे।’बालक’ का मैं परमानेंट क्रिएटिव सप्लायर था, पूरी पत्रिका में मैं ही दिखूं इसका उपाय कर लिया था मैंने। तब ‘बालक’ में मेरी कई चित्रकथाओं के साथ एक चित्रकथा छपती थी- ‘चिम्पू’…नियमित तौर पर! तब एक पेज के 35 रुपये मिलते थे भाई!….एक बार मैं ‘चिम्पू’ लेकर गया, तो आदरणीय संपादक श्री सीताशरण सिंह (उनका विशेष स्नेह था मुझ पर) थोड़े परेशान दिखे। छूटते ही कहा मुझसे, “नीरद, चिम्पू बंद कर दो! तुरंत!…अब नहीं छपेगा ये!”मेरे तो होश उड़ गए! 35/- का घाटा! फिर संपादक जी दिखाए एक पत्र.. बोले,” देखो, ये डायमंड कॉमिक्स दिल्ली वालों की चिट्ठी आयी है। ये चिम्पू उनका कॉपीराइट है। उन्होंने चिम्पू को फौरन बंद करने कहा है। अरे बंद कर दो भाई! कौन पड़ेगा इस केस-मुकद्दमे में!”मैं तो इतना कुछ न समझा, न समझना चाहा। मुझे तो 35 रुपये की चिंता थी..खैर! बंद हो गया, चिम्पू, मगर वह मुझे बहुत बड़ा माइलेज दे गया!
बताता हूँ…….1982 या 1983 होगा। सोचा, चलूं दिल्ली। टारगेट था, डायमंड कॉमिक्स। पैसे कहाँ से आएंगे? तो बैंक में 4 अकॉउंट थे। सबको सीधा बंद कर दिया। कुल जमा हुए तकरीबन 600/- । अपने बड़े भैया को लिया और 600 में पटना दिल्ली का प्रबंध हो गया। ट्रेन थी खटारा 11UP/12DN (अपर इंडिया एक्सप्रेस)। एक खराब टाइप का मोटा ब्रीफकेस था। उसमें कपड़ा, साबुन, तौलिया, चप्पल, ब्रश-जीभी और उसी में छपी किताबें लेकर चला। विजिटिंग कार्ड के नाम पर कार्ड बोर्ड को छोटा-छोटा काटकर उसपर अपना नाम-पता का मुहर मार लिया था।पिताजी मधुबनी में थे, डिस्ट्रीक्ट जज। उनसे एक पैसा नहीं लेने की खुशी थी, तो उन्हें मेरे द्वारा पैसे नहीं मांगने की खुशी थी। साथ था, तो उनका आशीर्वाद! वह भी खूब सारा! पुरानी दिल्ली पहुंचा। ठहरने की जगह तय थी पहले से।मैं वही वाला ब्रीफकेस लेकर 2715, दरियागंज में डायमंड कॉमिक्स के आफिस पहुंचा। वहां मैनेजिंग डायरेक्टर श्री नरेन्द्र कुमार वर्मा जी से मिला। उन्हें तीन बातों से आपत्ति थी…एक, बिहार से कोई कार्टूनिस्ट कैसे हो सकता है? दूसरा, इतना छोटा लड़का इतनी शुद्ध हिंदी कैसे बोल सकता है? और तीसरा, मेरी ‘बालक’ में प्रकाशित अंतरिक्ष विज्ञान की चित्रकथा ‘निकोलस’ को वह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि वह मेरी बनाई हुई है! उनका कहना था कि तुमने विदेशी कॉमिक को कट पेस्ट कर यह चित्रकथा तैयार की है!
दरअसल, वह चित्रकथाएं फ़्लैश गॉर्डन से प्रभावित थीं।उन्होंने कहा, “बनाकर दिखाओ!” मैं ब्रीफकेस से बनाने के लिए कागज निकालने लगा, कि इसी में कभी ब्रश जीभी गिर जाते तो कभी साबुन। उन्हें यकीन हो गया कि बिहार से कार्टूनिस्ट नहीं कार्टून जरूर आया है! मैंने बना दिया फटाफट सामने। वह खुश हो गए। बोले, ”जाओ, हमारे भाई साहब हैं, गुलशन राय। वही बताएंगे कि काम क्या मिलेगा!” और उन्होंने उनका विजिटिंग कार्ड पकड़ा दिया। मैं थैंक यू बोलकर चला वहां से। हालांकि बाद में पता चला कि वहां मेरा साबुन गिरकर छूट ही गया। साबुन का नाम था- ‘लक्स’!….257, दरीबा कलां। तब यहीं बैठते थे श्री गुलशन राय। डायमंड कॉमिक्स के संपादक थे, अभी भी हैं। बहुत विनम्र और खुशमिजाज! उन्हें जब मालूम हुआ कि मैं पटना से वही कार्टूनिस्ट आया हूँ, जो ‘बालक’ में चिम्पू बनाता था! और जिसे उन्होंने कॉपीराइट का लेटर भेजकर अविलंब बंद करवाया था। फिर क्या था, वह इतने खुश हुए कि पूछिये मत! मुझे माइलेज मिल गया था!!फ़ौरन गुलशन जी ने मुझे हर महीने 12 पेज चित्रकथा बनाने का ऑफर दे डाला, ‘पलटू’ नाम की एक शीघ्र प्रकाश्य पत्रिका के लिए! 50 रुपये पर पेज, यानी 600 रुपये महीना। आने-जाने के 600/- का इन्वेस्टमेंट हुआ था, शुक्र है वह सार्थक हो गया था। ….डायमंड कॉमिक्स से मेरा जुड़ना मेरी चित्रकथा यात्रा का एक गौरवशाली इतिहास है। मैने वहां लोकप्रिय चित्रकथा श्रृंखलाओं के तकरीबन 200 पुस्तकबद्ध कॉमिक बनाई (मेरे संग्रह में उपलब्धता के आधार पर)।…मैं अपने तमाम पाठकों, प्रशंसकों के साथ श्री गुलशन राय की रहनुमाई का दिल से आभारी हूँ!
नोट: इस आलेख का व्यवसायिक उपयोग वर्जित है, यहाँ पर यह बस पाठकों की सुविधा के लिए साझा किया गया है। इसके सर्वाधिकार कार्टूनिस्ट श्री नीरद जी के पास सुरक्षित हैं।
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