बाली- देवेन्द्र पाण्डेय – फ्लाईड्रीम्स कॉमिक्स (Baali – Devendra Pandey – Flydreams Comics)
नमस्कार मित्रों, फ्लाईड्रीम्स कॉमिक्स एक बार फिर प्रस्तुत हैं अपने अगले सेट के साथ जिसकी घोषणा आज ही की गई हैं और इस बार उन्होंने बताया हैं की इस बार सेट 2 में प्रकाशित होने वालीं हैं “बाली’ – अध्याय 1 – युग युगांतर प्रतिशोध” (Baali Yug Yugantar Pratishodh)। बाली को लिखा हैं बहुत ही काबिल लेखक श्री देवेन्द्र पाण्डेय जी ने जिनका यह एक तरह से ड्रीम प्रोजेक्ट ही था जिसे साकार किया ‘सूरज पॉकेट बुक्स’ ने नॉवेल के रूप में। नॉवेल के साथ तो कहानी को पंख मिल ही चुके थें और पाठकों यह बेहद पसंद भी आ रही हैं, वो भी इतनी की देवेन्द्र जी ने इसके 3 भाग अभी तक सूरज पॉकेट बुक्स के माध्यम से प्रकाशित किये हैं।
देवेन्द्र जी हमेशा से इसे एक ग्राफ़िक नॉवेल के फॉर्मेट में लाना चाहते थें जो कारणवश किसी मोड़ पर आकर रुक गया था लेकिन समय हमेशा करवट बदलता हैं एंव बाली अध्याय 1 का प्री आर्डर इस बात का प्रमाण हैं अब उनका ड्रीम प्रोजेक्ट बहुत जल्द फ्लाईड्रीम्स कॉमिक्स के माध्यम से जल्द ही पाठकों के समक्ष होगा। इस कथन से यह बात भी प्रमाणित होती हैं की सपने देखियें और उसे पूरा करने की चेष्टा भी कीजिये, क्या पता अगला दिन आपका ही हो! बाली सभी पुस्तक विक्रेताओं के पास प्री-आर्डर पर उपलब्ध हैं तो कॉमिक्स प्रेमी आज ही अपना आर्डर उन्हें प्रेषित कर सकते हैं।
बाली अध्याय 1 को ‘बड़े आकार’ में लाया जा रहा हैं और इसका मूल्य हैं 179/- रूपये एवं पृष्ठ संख्या हैं 32। यह लेखक देवेन्द्र पाण्डेय जी द्वारा लिखित यह बेस्टसेलर सीरीज़ हैं, चित्रण में योगदान हैं शहनावाज खान जी का, शब्दांकन हैं निशांत पराशर जी के और इसका संपादन किया हैं अनुराग सिंह जी एवं मिथलेश गुप्ता जी ने। इस प्री आर्डर के साथ फ्लाईवर्स के नायकों का एक शानदार पोस्टर भी बिलकुल मुफ्त दिया जा रहा हैं एवं 10% छूट भी। कॉमिक्स 1 मार्च से सर्वत्र उपलब्ध होगी।
देवेन्द्र जी ने बाकायदा इसके प्लाट पर भी एक बेहतरीन अनुच्छेद लिखा हैं जो पाठकों को दंग कर देगा और वो चाहे तो कॉमिक्स के पहले उनके नॉवेल से भी रूबरू हो सकते हैं: –
“यह समाज। यहाँ सभी कलाकार हैं, जो सामाजिक होने का ढोंग करते हैं। किन्तु वास्तविकता क्या है इस समाज की? वास्तविकता यह है कि यह समाज सड़ चुका है, लोग मर चुके हैं, भावनायें मर चुकी हैं, इंसानियत आखिरी साँसे ले रही है। सभी अपने वजूद की लाशें ढो रहें हैं। इन लाशों में यह पशु रुपी कीड़े लग चुके है, जो मुर्दाखोर है। इन्हें इससे कोई मतलब नही है कि ये लाश किसकी है, बस उसे अंदर ही अंदर खाये जा रहे हैं, नोच रहे हैं, खोखला किये जा रहे हैं। इस सभ्य समाज का यही असला चेहरा है, बदबूदार, सड़ांध मारता जिंदा लाशों का कब्रिस्तान है यह समाज। मैं कौन हूँ? इस कब्रिस्तान में जीवित बचा एक इंसान, जिसका जमीर, जिसका वजूद अब भी जीवित है, लेकिन पहचान लाश बन चुकी है!”
बाली से उधृत