चाचा चौधरी और मैं
बात शायद १९९१-९२ की होगी जब मई के गर्म महीने में बिलासपुर स्टेशन (छत्तीसगढ़) के व्हीलर्स पर कॉमिक्स के बंडल के बीच मे मैंने एक लाल पगड़ी धारी और सफ़ेद मूछों वाले बूढ़े आदमी को एक राकेट की तरफ भागते देखा जिसको एक बड़े कद के आदमी ने अपने हांथों से पकड़ा हुआ था, सामने एक ईविल साइंटिस्ट जिसका नाम “शटलकॉक” खड़ा हुआ है और उसको देखता हुआ एक और घुंगराले बालो वाला-मोटी मूछों वाला बंदा इन्हें देख रहा था, पब्लिकेशन का नाम डायमंड कॉमिक्स था और मैंने इनके पब्लिकेशन की जायदा कॉमिक्स नहीं पढ़ी थी, असल बात ये भी है की हमरे टाउन मे राज कॉमिक्स का ही बोलबाला था और तब तक नागराज और सुपर कमांडो ध्रुव जैसे करैक्टर मेरे बाल मन मे अपनी पैठ जमा चुके थे, एक नए पब्लिकेशन की कॉमिक्स को हाँथ लगाना जोखिम भरा कदम था जब एक एक रुपये जोड़कर हम १ कॉमिक्स खरीद पाते थे, पर पता नहीं क्यों ये किरदार मुझे अच्छे लगे और मैंने कॉमिक्स झटपट खरीद ली.
अंदर के पृष्ठों को पलटते हुए मुझे पता चला की इनके रचियता श्री कार्टूनिस्ट “प्राण” है एवम् किरदारों का नाम चाचा चौधरी, साबू, प्रोफेसर शटलकॉक और डाकू “गोबर सिंह” है, ये नाम इतने अनोखे थे की पढकर ही मज़ा आ गया मुझे, खैर कहाँनी की चर्चा और किसी दिन करेंगे पर कंप्यूटर से भी तेज़ दिमाग के स्वामी “चाचा चौधरी”, जुपिटर ग्रह का वासी “साबू”, उनका पालतू कुत्ता “राकेट”, चाची “बिनी”, साथी “टिंगू मास्टर” और उनका ट्रक “डगडग” मेरे पसंदीदा किरदारों मे शुमार हो गए, बाद में मुझे ग्यात हुआ की चाचा चौधरी की पहले लोटपोट नमक बाल पत्रिका मे स्ट्रिप्स आया करती थी जिसे बाद मे डायमंड कॉमिक्स ने अपनाते हुए प्रकाशित किया.
प्राण सर के इन किरदारों ने पूरे भारत मे ही धूम नहीं मचाई, अपितु यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका के इंटरनेशनल मयूसियम ऑफ़ कार्टून आर्ट संसथान मे भी इसे स्थाई जगह दी गयी है, बाद के वर्षो मे मैंने उनके द्वारा गढ़े हुए अन्य किरदार जैसे बिल्लू, पिंकी, रमन और चन्नी चाची को भी पढ़ा पर चाचा चौधरी जैसा मन किसी और किरदार से नहीं जुड़ा.
अब विदा लेता हूँ मित्रों और अगले ब्लॉग पर फिर से रूबरू होऊंगा आप लोगो से, अपने कमेंट और विचार आप ब्लॉग पर या फेसबुक पेज पर मुझसे साझा कर सकते है.
आपका – मैनाक
#कॉमिक्सबाइट
Nice sweet writeup
Nice one. Feeling nostalgic
Excellent writing ..
Thanks 🙂