डिजिटल क्रांति और किताब-कॉमिक्स
किताबें और कामिक्स एक समय तक सभी भारतीयों के घरों में आम थीं, पर धीरे धीरे ये कलेक्टर और सीमीत ग्राहकों तक ही सिमट गई है, इनसे सही गलत की सुजबुझ तो प्राप्त होती है अपितु ये मानसिक विकास में भी साहायक होती है।
बहरहाल मैं तो रोज़ कुछ ना कुछ पड़ता ही हूं, भई दिमाग को ताजा-तरीन रखना भी तो है, कल्पना को नई उड़ान भी देनी है।
अच्छा क्या आपको शोले याद है?
जवाब: हाँ भाई क्यों नहीं, अमिताभ बच्चन, धर्मेन्द्र, ठाकुर और गब्बर को कौन भूल सकता है।
उत्तर सही है काफी हद तक पर पूरा नहीं, क्योंकि इस कालजयी फिल्म के पीछे एक कहानी है, जिसे लिखा है सलीम-जावेद की जोड़ी ने, ये जन्मा है एक विचार से, जिसे उकेरा है लेखक ने अपने दिमाग से कागज़ पर, ये सृजन शक्ति कहां से उभर कर आई, इंसान के बुद्धि और विवेक का नतीजा है ये “गेम आफ थ्रोन्स” जैसे वेब सीरीज और शोले जिन्हें नावेल और स्क्रिप्ट के रूप में तराशा गया।
डिजिटल क्रांति जरूरी है पर उतना ही जरूरी है संतुलन।
इंटरनेट युग में किताबों और कामिक्स की महक को गुम मत होने दीजिए, किसी फंक्शन में, जन्मदिन की पार्टी में, रिटर्न गिफ्ट के नाम पर सस्ते प्लास्टिक के उपहार को इन किताबों से बदल कर तो देखिये, सोच बदलने की जरूरत है, समय और समाज भी बदलेगा।
और हाँ, टिंकल स्टार पढ़ रहा था, तो यूँ ही अंदर का लेखक सोते से जाग गया, नहीं तो हमें क्या है, हमें तो बस ………सही समझे। नमस्कार।
मैनाक